-फादर्स डे पर i next ने सिटी के बेटों और उनके पिता से की बात

हर पिता अपने बेटे की खुशी ही चाहता है। अपने भले ही कितना भी दुख तकलीफ में रहे लेकिन बच्चों को हमेशा खुशियां ही देने की हर वक्त प्रयास में रहता है। बदलते जमाने में बेटों का भी अपने पिता के प्रति उतना ही प्यार है। यही वजह है कि अपने पिता को स्मार्ट फोन चलाने से लेकर फेसबुक, ट्विटर व व्हाट्सअप तक यूज करने की कोचिंग दे रहे हैं। फादर्स डे पर कुछ ऐसे ही बेटों से जब हमने उनके पिता के बारे में राय जानी तो क्या कहा उन्होंने आइये हम बताते हैं।

पिता बन गए कोच

बनारस के संत रघुवर नगर कॉलोनी निवासी शशांक त्रिपाठी उम्र ख्0 साल शूटिंग में नेशनल चैम्पियन है। पिता शैलेंद्र त्रिपाठी उम्र भ्0 साल रायबरेली थाने में इस समय इंस्पेक्टर पोस्ट पर तैनात हैं। शशांक बताते हैं कि मेरे लिए पापा अपने में बहुत बदलाव किए। पुलिस विभाग में होते हुए इतनी बिजी लाइफ उनकी है लेकिन फिर भी मेरे लिए अपने बिजी शेड्यूल से समय निकालकर मुझे गाइड करते हैं। अपने एक्सपीरियंस मेरे साथ शेयर करते हैं, एक तरह से मेरे कोच की भूमिका में हैं।

बदली पापा की ड्रेसिंग स्टाइल

वैसे तो पापा कोई भी कपड़े पहनते हैं तो उन पर खूब फबता है। हालांकि अधिकतर वर्दी में ही रहते हैं। जब कभी पार्टी में जाना होता है तो कुर्ता-पायजामा ही पहनते हैं, वर्दी और कुर्ता-पायजामा के अलावा कोई ड्रेस उन्हें पसंद नहीं आती थी लेकिन हमारे कहने पर पापा ने सूट पहनना शुरू कर दिया। शर्ट-पैंट के अलावा टी शर्ट और जींस भी पापा पहनते हैं।

मेरे दोस्त हैं मेरे बच्चे

चंद्रिका नगर सिगरा के रहने वाले राजेंद्र दुबे भ्0 साल को दो बेटे हैं। सबसे बड़ा बेटा हिमांशु दुबे ख्0 साल बीएचयू में बीकॉम फाइल ईयर का स्टूडेंट और छोटा बेटा ऋषि दुबे क्फ् साल का है। हाईटेक युग में राजेंद्र दुबे पुराने ख्यालातों के थे लेकिन बच्चों की दोस्ताना संगत ने उन्हें मॉडर्न बना दिया है। स्मार्ट फोन यूज करने से लेकर हर वह काम बखूबी से करते हैं जिसे करने के लिए पहले उन्हें हिचक झिझक महसूस होती थी।

बच्चों पर होता है प्राउड फील

राजेंद्र दुबे बताते हैं कि बड़े बेटे के दोस्त के फादर फेसबुक, व्हाट्सअप, टिव्टर पर हैं, वह जब भी मुझसे मिलता था तब ये बात बताता था। लेकिन मुझे इन सबसे से कोई मतलब नहीं था। या यह कह सकते हैं कि फेसबुक-ट्विटर से अंजान ही था। लेकिन बड़े बेटे ने मेरा फेसबुक एकाउंट बनाया और मुझे फेसबुक पर एक्टिव रहने का एक तरह से ट्यूशन देने लगा। बच्चों की खातिर अपने लाइफ स्टाइल में बहुत बदलाव करना पड़ा। लेकिन यह बदलाव बच्चों को जहां खुशियां देता है तो वहीं अपने को भी काफी सुकून मिलता है। अब बच्चों पर प्राउड फील होता है।

बेटे की खातिर की कम्प्यूटर की पढ़ाई

परेड कोठी स्थित सुभाष नगर कॉलोनी निवासी शम्भू नाथ म्0 वर्ष पेशे से व्यवसायी हैं। चार बेटे हैं। आज सभी अपने-अपने पैरों पर खड़े हैं। सबसे छोटे बेटे शशांक ख्फ् वर्ष बताते हैं कि पापा ने मेरे लिए जितना किया है उसे लफ्जों में कहना कम होगा। इतना समझ लीजिए कि घर में सबसे छोटा होने के कारण सबका दुलारा तो था ही थोड़ी नादानी भी भरी हुई थी। यही वजह थी कि पढ़ाई में मन नहीं लगता था और सीबीएसई बोर्ड के दसवीं के एग्जाम में फेल हो गया। मेरी लापरवाही से आजिज पापा व्यवसाय को छोड़कर मेरे कॅरियर पर फोकस करने लगे। कोर्स मैटीरियल की स्टडी करने के साथ ही मुझे समय देने लगे। मुझे अपडेट करने के लिए उन्होंने खुद कम्प्यूटर की पढ़ाई की।

पापा के सपनों को किया साकार

शशांक बताते हैं कि पापा ने मेरे लिए जो सपने देखे थे मैंने साकार भी कर दिखाया है। पापा ने इंजीनियर बनाने का सपना जो देखा था उनके त्याग, परिश्रम की बदौलत ही ये साकार भी हुआ। नोएडा में एक मल्टीनेशनल कंपनी में बतौर सीनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर पोस्ट पर हूं।

मतलबी दुनिया की नहीं सुनी

शैलपुत्री के रहने वाले लालबहादुर गुप्ता म्0 साल के हैं। पुलिस विभाग से हाल ही में रिटायर हुए हैं। तीन बेटे और दो बेटियों की परवरिश उन्होंने इस कदर की कि आज सभी अपने-अपने क्षेत्र में एक अच्छे मुकाम पर हैं। बेटों में सबसे बड़े सोनू गुप्ता फ्क् साल बताते हैं कि मेरे लिए पापा ने बहुत कुछ चेंज किया। शुरू से ही मुझे फिल्म इंडस्ट्रीज में जाने का शौक था, एक्टिंग और डांस में एक अच्छे मुकाम पर हूं तो उन्हीं की बदौलत। शुरू-शुरू में एलबम में काम शुरू किया तो पास पड़ोस के लोगों ने बहुत कुछ बोला लेकिन पापा सब बातों को इग्नोर करते हुए मेरी खुशी के लिए मुझे प्रोत्साहित करते रहे।

पापा ने खरीदी है सेल्फी स्टिक

सोनू बताते हैं कि पापा के पास पुराना मोबाइल था लेकिन उन्हें स्मार्ट जेनरेशन में ढालने के लिए स्मार्ट फोन गिफ्ट किया गया। फिर पापा को व्हाट्सअप चलाना भी सिखाया गया। कुछ ही दिन में पापा ने सेल्फी स्टिक भी खरीदा। हमारी फोटो अब पापा सेल्फी से ही लेते हैं।

बच्चों के लिए सीखा कैरेम, चेस

अन्नपूर्णा नगर कॉलोनी स्थित विद्यापीठ के निवासी महेंद्र गुप्ता फ्फ् वर्ष के पेशे से बिजनेसमैन हैं। दो बेटे सार्थक गुप्ता म् साल और शास्वत गुप्ता 9 साल हैं। दोनों बेटों के लिए महेंद्र गुप्ता अपने में बदलाव ही बदलाव किए हैं। यानि कि कभी उन्होंने कैरेम व चेस गेम नहीं खेला था लेकिन बच्चों की खुशी के लिए उन्होंने कैरेम और चेस खेलना सीखा। यहां तक कि स्मार्ट फोन खरीदे और उसमें ये सब गेम डाउनलोड किये और अब बच्चों के संग बाहर घूमने के दौरान भी खेलते हैं।

बच्चों के संग बन जाता हूं बच्चा

महेंद्र बताते हैं कि बच्चों की खुशी से बढ़कर कुछ नहीं है। खेल-खेल में उनके साथ बच्चा भी बन जाता हूं। इसमें ही सब स्वर्ग नजर आता है, लाइफ तब से चेंज हुई जब से पिता का ओहदा मिला।