वाराणसी (ब्यूरो)काशी ही ऐसी जगह है जहां बाबा श्मशान पर चिता भस्म की होली खेलते हैंयह परंपरा अनादिकाल से चली आ रही हैयह कहना है बाबा संंग चिता भस्म की होली खेलने वालों कावे कहते हैं अरे भइया पहिले श्मशान रहल, अब त मसाने क होली हो गयल हौइतना अधिक लोगों ने ब्रांडिंग कर दिया हैं कि अब चिता भस्म की होली खेलने के लिए शहर ही नहीं बाहर से भी लोग आने लगे हैंदेशी हों या विदेशी उस दिन हर अड़भंगी का चेहरा भस्म की होली से सराबोर रहता हैकाशी के महाश्मशान पर होने वाली इस होली में दाह संस्कार में आए लोग भी मातम को भूल मस्ती में डूब जाते हैं.

भैरव संग खेलते हैं भक्त

एकादशी के दिन बाबा भैरव संग घाटवासी हो या फिर देशवासी सभी चिता भस्म की होली खेलने को आतुर रहते हैंइसके लिए एक हफ्ता पहले से ही लोग होलियाना मूड में आने लगते हैंश्मशान घाट पर चिता भस्म की होली की परंपरा आज से नहीं है अनादिकाल से चली आ रही है

4 सौ साल पुरानी परंपरा

फिलहाल पुरनियों का कहना है कि श्मशान घाट पर चिता भस्म की होली खेलने की परंपरा चार सौ वर्षों से भी अधिक पुरानी हैलोग बताते हैं कि जब रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ मां पार्वती का गौना कराकर काशी पहुंचे तो उन्होंने अपने गणों के साथ होली खेली थीतब से चिता भस्म की होली खेलने की परंपरा शुरू हुई.

पुरनिए ही खेलते थे होली

दस से 15 साल पहले चिता भस्म की होली पुरनिए ही खेलते थेलेकिन धीरे-धीरे इसका इतना अधिक प्रचार-प्रसार हुआ कि अब एक हफ्ता पहले से ही बाजा, लाउडस्पीकर लगाने की तैयारी शुरू हो जाती हैश्मशान घाट किनारे बदन में चिता भस्म को लगाते और एक दूसरे पर उड़ाते होलियारों की टोली की रंगत देखने लायक रहती है

1999 से भव्य हुआ स्वरूप

विजय शंकर पाण्डेय का कहना है कि 1999 से चिता भस्म की होली का स्वरूप और भव्य हो गयाअब लाखों लोग चिता भस्म की होली खेलने के लिए आने लगे हैंपहले परंपरागत तरीके से सिर्फ साधु-संत ही शामिल होते थे अब साधु-संत के साथ यूथ, देशी और विदेशी भी चिता भस्म की होली खेलने के लिए आते हैं.

घंट-घडिय़ाल की गूंज

चैनू गुप्ता बताते हैं कि रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन होनी वाली चिता भस्म की होली में घंटा, घडिय़ाल, डमरू के डम-डम की आवाज और शंख के मंगलध्वनि के बीच भक्तों के हर-हर महादेव के जयघोष से श्मशान घाट पर होली खेली जाती हैकाशी के महाश्मशान पर होने वाली इस अनोखी होली से पहले बाबा मशाननाथ की विशेष पूजा और आरती होती हैइसके बाद पूरा श्मशान होली की मस्ती में सराबोर हो जाता है.

बाबा खेलते हैं अदृश्य रूप में

मान्यताओं के मुताबिक, रंगभरी एकादशी पर गौरा की विदाई के बाद बाबा विश्वनाथ अपने बारातियों के साथ काशी के महाश्मशान में होली खेलने आते हैंबाबा महाश्मशान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने बताया कि आज भी भगवान शंकर काशी के इस महाश्मशान में अदृश्य रूप में आते हैं और अपने गणों के साथ होली खेलते हैं.