वाराणसी (अनुराग मिश्रा)। बातचीत की शुरुआत करते हुए निवान सेन बताते हैं कि उनका बचपन बनारस की गलियों में गुजरा है। यहां की हर एक चीज उनके दिल में बसती है। निवान को बचपन से स्पोर्ट का बड़ा शौक था, जो आज भी है। ये थियेटर देखते तो उसमें अपनी प्रतिक्रिया देते, इसी क्रम में एक दिन पक्का महाल की गलियों में एक नाटक के मंचन के दौरान एक कलाकार के न रहने पर संवाद अदा करना पड़ा। बताते हैं कि वह बांग्ला नाटक था, यहां से फिर फिर इंटरेस्ट बढ़ता चला गया। शुरू के दिनों में बनारस में मंचदूत, नागरी प्रचारणी सभा जैसे मंच से जुड़े रहे, इस दौरान विश्वनाथ बोस दादा ने हर कदम पर मार्गदर्शन किया। निवान ने कई सवालों के जवाब भी दिए.

अबतक की जर्नी कैसी रही
करियर की शुरुआत मैंने 2004 में जीटीवी के इंडिया का फस्र्ट एक्टिंग एंड डांस रियलिटी शो जी सिनेस्टार की खोज सीजन वन से किया। इस रियलिटी शो में मुझे बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिला। उसके बाद एकता कपूर की कहानी घर घर की में प्रणय के किरदार को निभाने का मौका मिला। साथ ही मैंने फूल टाइम पास, दो हंसों का जोड़ा, प्यार का दर्द है मीठा मीठा प्यारा प्यारा, खोटे सिक्के, आहट, सावधान इंडिया में एक्ट किया। अभी गुम है किसी के प्यार में सदानंद का किरदार निभा रहा हूं।

कितना संघर्ष रहा जीवन में
आप जैसा सोचते हैं, जीवन में वैसा नहीं होता। घर से बाहर जाएंगे तो कदम-कदम पर संघर्ष करना पड़ेगा। मुझे भी काफी संघर्ष करना पड़ा। मुंबई का रुख करने लगा तो कई लोगों ने रोका, डराया कि काम नहीं मिला तो करियर बर्बाद हो जाएगा, आदी-आदी। लोग आपका मनोबल तोडऩे की कोशिश करते हैं, लेकिन स्वयं पर विश्वास है तो आपको कोई रोक नहीं सकता। फैमिली का भी बड़ा रोल रहता है। बचपन में ही मां के गुजर जाने के बाद पिताजी का पूरा स्पोर्ट रहा, यही कारण है कि आज में यहां हू। मैं यही कहूंगा कि जो सपने देखते हैं, उसे बस सपने न रहने दें, उसे पूरा करने के लिए जी जान लगा दें। इस दौरान लोग आपको गलत बताएंगे, आपकी ओर पत्थर फेंकेंगे, उस पत्थर को मील का पत्थर बना दें।

न्यू कमर्स के लिए इंडस्ट्री में कितना संधर्ष है
ग्लैमर और अभिनय की दुनिया सबको आकर्षित करती है। फिल्मों के साथ वेब व टीवी सीरियल के एक्टर को देखकर भी युवाओं के मन में उनके जैसा बनने की इच्छा होती है। आजकल के यंगस्टर्स तो सीधे ग्लैमर की दुनिया में पहुंच जाते हैं। हालांकि असली स्ट्रगल का दौर यही शुरू होता है। कइयों को लंबा स्ट्रगल करना पड़ता है, लेकिन यह मान लें कि टैलेंट बेकार नहीं जाता।

एक्टिंग स्कूल से कितनी मदद मिलती है
यह आप पर निर्भर है, कि आप किस तरह इस फिल्ड में आते हैं। ऐसे अनेक कामयाब एक्टर हैं, जो कभी किसी एक्टिंग स्कूल नहीं गए, लेकिन यदि आप एक्टिंग स्कूल जाते हैं, तो अभिनय की तकनीकें सीखने में आपको बहुत मदद मिलेगी। आपके कोई गाइड करने वाला होगा।

यूपी में फिल्म सिटी से क्या लाभ होगा
यूपी की फिल्म सिटी हमारी पहचान होगी। हम कलाकारों को इससे काफी उम्मींदे हैं। इससे यूपी का भी फिल्मी दुनिया में नाम होगा। लोकल कलाकारों को घर में काम के साथ रोजगार तो मिलेगा ही साथ ही ऐसे यूथ जो एक्टिंग, फिल्म मेकिंग, सिंगिंग में हुनरमंद हैं उनके लिए विशेष दरवाजे खुल जाएंगे। स्थानीय निर्माताओं की काफी समस्याएं कम होंगी।

ओटीटी या सिनेमाघर
कोविड के दौर के बाद आज सिनेमाघर फुल कैपेसिटी से खुल गए हैं। बावजूद ओटीटी पर आ रही फिल्मों का क्रम बना हुआ है। निर्माता-निर्देशक ओटीटी को प्राथमिकता देने लगे हैं। यह ऐसा दौर है जहां सिनेमाघरों में फिल्मों की रिलीज की अनिश्चितता लगातार बनी हुई है, ऐसे में ओटीटी एक बेहतर और मजबूत विकल्प है। यही वजह है कि लोकप्रिय सितारों की बड़े प्रोजेक्ट ओटीटी पर रिलीज हो रहे हैं।

क्या वेब सीरीज फूहड़पन को बढ़ावा दे रही हैं
आज दर्शकों के साथ साथ भारतीय सिनेमा का परिवेश भी बदला है। स्मार्टफोन के इस दौरा में वेब सीरीज देखने वालों का बड़ा दर्शक वर्ग है। इसकी सबसे बड़ी ताकत बोल्ड और अलग हटकर कॉन्टेंट है। इसने लोगों की पसंद को बदला है। हालांकि यह सही है कि कुछ सीरिज को आप पूरे परिवार के साथ बैठकर नहीं देख सकते।