हम काशी में प्रकट भये हैं, रामानंद चेतायेकबीर दास की लिखी ये पक्तियां हमेशा यह बताती है कि उनका गहरा नाता काशी से रहा है। ऐसी मान्यता है कि कबीर काशी के एक तालाब में मुस्लिम परिवार को मिले थे। आज इस तालाब को लहरतारा तालाब के नाम से जाना जाता है और इसे ही कबीर दास की प्रकाट्य स्थली मानी जाती है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह तालाब अपनी आखिरी सांसें ले रहा है। कबीर की यह अनमोल निशानी जलकुंभी के नीचे दबकर रह गई है। इस निशानी को बचाने के लिये दैनिक जागरण आई नेक्स्ट आज से एक मुहिम शुरू करने जा रहा है। मिटने नहीं देंगे कबीर की निशानी।

मान्यताएं कई, लेकिन तालाब का जिक्र हर कहीं

कबीर दास के जन्म को लेकर कई मान्यताएं है। कुछ कबीरपंथियों की मान्यता है कि उनका अवतरण लहरतारा तालाब में खिले कमल के बीच एक बालक के रूप में हुआ था। वहीं इतिहास के पन्नों में यह भी लिखा है कि उनके माता-पिता उन्हें लहरतारा तालाब के किनारे छोड़ गये थे। वहां से गुजर रहे नीरु और नीमा ने जब बच्चे की आवाज सुनी तो उन्हें गोद में उठा लिया। कुछ लोगों का कहना है कि रामानंद स्वामी ने भूल से काशी की एक विधवा को पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया। जब विधवा को बच्चा हुआ तो वह लोक लाज के डर से उसे लहरतारा तालाब के किनारे छोड़कर चली गई। बाद में यही बच्चा कबीर के नाम से जाना गया।

क्या है यह अभियान

कबीर को लेकर पूरे देश-विदेश में इसकी मान्यता है कि उनका जन्म लहरतारा तालाब में हुआ था। राज्य सरकार ने कई बार इस तालाब की सुध लेना तो चाही लेकिन वह कागजों में ही सिमटकर रह गया। कोका कोला जैसी कंपनी ने भी इसका जीर्णोधार करने का जिम्मा उठाया, लेकिन वह भी तालाब की सूरत न बदल पाया। यह कबीर की वह निशानी है, जिसे बच्चे कोर्स में पढ़ते हैं। ऐसे में हम बनारसवासियों की जिम्मेदारी है कि हम इस निशानी को संजोये। इस अभियान के तहत हम उन लोगों को बेनकाब करेंगे, जिन्होंने आज तालाब का यह हश्र बना दिया। उन योजनाओं के बारे में बताएंगे, जो तालाब के लिये बनीं लेकिन कभी जमीन पर नहीं उतरीं। जिम्मेदारों की जिम्मेदारियां तय होंगी। अंत में हम और आप मिलकर बचाएंगे कबीर की निशानी।

क्यों जरूरी है यह अभियान

एक समय था कि कबीर की प्रकाट्य स्थली 17 एकड़ में फैली हुई थी। तालाब को देखने दूर-दूर से लोग आते थे।

पानी इतना साफ था कि लोग इसे अमृत समझकर पीते थे, लेकिन अब यहां कचरा फेंका जा रहा है। प्रकाट्य स्थली के नाम पर सिर्फ 1.5 एकड़ जमीन ही बची है।

तालाब में आसपास के घरों का सीवरेज गिर रहा है। जलकुंभी से तालाब पट चुका है। अगर अभी इस तालाब को नहीं बचाया गया तो वह दिन दूर नहीं जब केवल हम इतिहास में पढ़ा करेंगे कि एक था लहरतारा तालाब, जहां कबीर दास का जन्म हुआ था।

कबीर साहेब के प्राकट्य स्थल को विकसित करने के लिए लेकर लंबे समय से केंद्र और प्रदेश सरकार के साथ जिला प्रशासन ने कई बार योजना बनाई, लेकिन अभी तक कोई भी योजना धरातल पर नहीं उतरी। वीडीए ने शहर के आठ तालाबों के साथ लहरतारा तालाब के जीर्णोद्धार की योजना बनाई। बस इसी तालाब का विकास नहीं हुआ.-गोविंद दास शास्त्री, प्रबंधक, कबीर प्रकाट्य स्थल, लहरतारा

2019 में मुख्यमंत्री संवर्धन योजना के तहत इस तालाब को संवारने की योजना बनी। वीडीए ने भी इसके जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाया, लेकिन कुछ नहीं हुआ।