वाराणसी (ब्यूरो)मलेशिया और पॉम आयल का कचरा इस समय पूरी दुनिया में चर्चा का विषय हैइसके अनुसार इस देश की 10 परसेंट जमीन पर पॉम आयल के वेस्टेज का कब्जा हो चुका है और जल्द ही इसकी क्लीनिंग नहीं हुई तो ये समस्या लाइलाज होने की तरफ बढ़ जाएगीलेकिन मलेशिया के लिए काशी से राहत की खबर हैयहां आईआईटीबीएचयू के सिरामिक साइंटिस्ट डॉप्रोप्रीतम सिंह ने बॉयोमास से हाइड्रोजन बनाने की तकनीक विकसित की हैइस तकनीक से मीरजापुर में बीजल ग्रीन एनर्जी नामक संस्था ने प्लांट लगाया और वहां हाइड्रोजन के साथ ही जीरो कार्बन इमीशन वाला शुद्ध कोयला प्राप्त किया जा रहा हैयहां धान की भूसी और पराली से सबसे सस्ता हाइड्रोजन बन रहा हैअब इसी तकनीक पर पॉम ऑयल वेस्टेज से हाइड्रोजन का उत्पादन करेगाइसके लिए बीजल ग्रीन एनर्जी और मलेशियन कंपनी के बीच करार हुआ है.

बीजल ग्रीन एनर्जी का प्लांट

आईआईटी बीएचयू के सिरामिक साइंटिस्ट डॉप्रीतम सिंह के आविष्कार पर मीरजापुर में बीजल ग्रीन एनर्जी के प्लांट में किसानों से वेस्ट मैटेरियल लेकर हाइड्रोजन बनाया जाता हैप्लांट पहुंचे मलेशिया के सदन स्पीकर और वहां के पीएम के सहयोगी शिवादास ने बॉयोमास से हाइड्रोजन बनाने वाले प्लांट को देखकर कहा, ये तकनीक काफी अच्छी हैमलेशिया में एक प्लांट बनाकर वहां भी हाइड्रोजन तैयार की जाएगीये प्लांट क्रॉप वेस्ट से हाइड्रोजन के साथ ही बॉयो गैस और उच्च ज्वलनशीलता वाला इको फ्रेंडली कोयला भी बना रहा हैशिवादास ने डॉप्रीतम सिंह की सहमति से बीजल ग्रुप के साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का एग्रीमेंट भी किया हैएग्रीमेंट के तहत डॉप्रीतम सिंह मलेशियन स्पीकर को प्लांट की तकनीक शेयर करेंगे और मलेशिया जाकर ट्रेनिंग देंगे.

70 परसेंट पॉम आयल

डॉप्रीतम सिंह ने बताया, मलेशिया और इंडोनेशिया दुनिया के 70 परसेंट से ज्यादा पॉम ऑयल का उत्पादन करते हैंलेकिन उनकी ये खासियत अब परेशानी बन गई है, क्योंकि मलेशिया की करीब 10 परसेंट जमीन पर पॉम ऑयल वेस्ट का पहाड़ बन चुका हैइसे जल्द खत्म नहीं किया गया तो वहां की जमीनें पॉम ऑयल वेस्ट में ही खप जाएंगी

मलेशिया में थी उधेड़बुन

डॉसिंह ने बताया, अभी तक मलेशिया में हाइड्रोजन बनाने की बात ही चल रही थीकैसे बनेगा, इस पर काफी उधेड़बुन थीवैज्ञानिक होने की वजह से मलेशिया और बाकी देशों का दौरा होता रहता हैइस समस्या को समझकर हमने स्पीकर के सामने हाइड्रोजन बनाने का प्रस्ताव रखाकाशी आए स्पीकर शिवादास मीरजापुर में हाइड्रोजन प्लांट पहुंचेप्लांट का काम देखने के बाद उन्होंने अपने देश में प्लांट खोलने का फैसला लियामलेशिया में अभी तक पैडी यानी धान की भूसी से डायजेस्टर तकनीक पर मीथेन बनाने का काम किया जा रहा हैहाइड्रोजन तक अभी उनकी पहुंच नहीं हैजबकि, मीरजापुर के प्लांट में पराली और फसल वेस्ट से हाइड्रोजन के साथ ही बायो फ्यूल और सबसे उच्च कोटि के इको फ्रेंडली कोयले का भी उत्पादन हो रहा हैइस तकनीक को देखकर स्पीकर ने ऐसा ही प्लांट मलेशिया में शुरू करने पर हामी भरी.

जापान और साउथ कोरिया में खपत

जापान और साउथ कोरिया हाइड्रोजन के दो बड़े खपत वाले देश हैंजापान मलेशिया के तट से पानी से हाइड्रोजन बनवाकर मंगाता हैइससे उनका खर्च काफी बढ़ जाता हैजापान के पास इतना बॉयोमास भी नहीं है कि उससे हाइड्रोजन बना सकेजबकि भारत के पास न तो फसल अवशेष की कमी है और न ही मलेशिया के पास पॉम आयॅल वेस्ट की कमी हैऐसे में जापान के हाइड्रोजन का मार्केट मलेशिया और भारत में भी तैयार किया जा सकता है.

पेट्रोल से पड़ेगा सस्ता

डॉप्रीतम सिंह ने बताया, एक लीटर पेट्रोल से जितनी एनर्जी मिलती है, उससे कम पैसा खर्च कर हाइड्रोजन से एनर्जी प्राप्त कर सकते हैंवाराणसी में एक लीटर पेट्रोल करीब 95 रुपए में मिलता है और इससे 3.54 मेगा जूल एनर्जी मिलती हैएक सामान्य 100 सीसी की बाइक 60 किलोमीटर तक जा सकती हैवहीं, 3.54 मेगा जूल ऊर्जा के बराबर हाइड्रोजन मार्केट में 80 रुपए में मिलेगाबीएचयू में ऐसे हाइड्रोजन बाइक भी बनी हैंइनसे प्रदूषण भी नहीं फैलताहालांकि, हाइड्रोजन व्हीकल की मैन्यूफैक्चरिंग अभी बड़े स्तर पर संभव नहीं है.

ढूंढ़ रहे थे सीएनजी, मिला हाइड्रोजन

साल 2018 में अमेरिका से आए डॉप्रीतम सिंह ने पराली-पुआल, गेहूं, गन्ने का छिलका और काष्ठ अवशेष लेकर हाइड्रोजन बनाना शुरू कियासफलता मिलने पर मीरजापुर में बीजल ग्रुप के माध्यम से पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर प्लांट बना लियाउनका कहना है कि सीएनजी पर काम करते-करते उन्हें हाइड्रोजन पर सफलता मिल गईडॉसिंह ने हाइड्रोजन थर्मल एसॉर्टेड एनारोबिक डाइजेशन (टाड) तकनीक की मदद से 4 रिएक्टर बनाए हैंइसके अलावा रिएक्टर में मीथेन, एलएनजी, सीएनजी, और विश्व के सबसे बेहतर क्वालिटी वाला कोयला बाई प्रोडक्ट के रूप में तैयार होता है.

क्या है टाड तकनीक

डॉप्रीतम के साथ काम कर रहे आईआईटी बीएचयू के ही डॉनीरज मिश्रा ने बताया कि आज जो पेट्रोल और गैस हमें फ्यूल के तौर पर मिल रही है, वो आज से हजारों साल पहले कभी वनस्पतियां वाली जीवाश्म ही रही होंगीउनको धरती नेचुरली फ्यूल के तौर पर तैयार करती हैलेकिन, टाड ऐसी तकनीक है, जिसकी मदद से इस हजारों साल के टाइम को महज 36 घंटे में ही समेट सकते हैंइस तकनीक में पराली को जलाने की बजाय उसकी गैस निकाल ली जाती हैएक बार में एक रिएक्टर में 1500-2000 किलोग्राम बॉयोमास छोड़ा जाता है.

टैंक में करते हैं स्टोर

डॉनीरज ने बताया, रिएक्टर में टेंप्रेचर बढ़ते ही सबसे पहले कार्बन और आक्सीजन के बांड टूटने लगते हैंइससे कार्बन डाईआक्साइड गैस रिलीज होती हैइस गैस को एक चैंबर में कलेक्ट कर लेते हैंइसी तरह से हाइड्रोजन भी टूटकर अलग होता है और कार्बन के साथ मिलकर मीथेन बना लेता हैतब फिर से रिएक्टर का तापमान बढ़ाया जाता हैतापमान बढऩे पर हाइड्रोजन मीथेन से अलग होता हैहाइड्रोजन को बेहद कम तापमान पर कंप्रेस करके एक क्रायो स्टोरेज टैंक में स्टोर किया जाता हैइस प्रक्रिया के बाद बायो प्रोडक्ट के तौर पर जीरो कार्बन इमीशन वाला शुद्ध कोयला और गैस प्राप्त होता है.

बीजल ग्रीन एनर्जी के माध्यम से मलेशिया गवर्नमेंट के साथ वहां प्लांट लगाने का करार हुआ हैप्लांट में पॉम आयल के वेस्टेज से हाइड्रोजन तैयार किया जाएगा.

डॉप्रोप्रीतम सिंह, सिरामिक साइंटिस्ट, आईआईटी बीएचयू