वाराणसी (ब्यूरो)कोरोना काल की चुनौतियों से बनारसी लगातार जूझ रहे हैंपिछले दो लॉकडाउन, महामारी-मौत के खौफ और काम-धाम छिनने के हालातों ने न जाने कितनों को मानसिक रोगी बना दियाइससे प्रभावित लोग अभी तक उबर नहीं पाए हैंक्या बच्चे, क्या बूढ़े और क्या जवानकोई साइकोसिस का पेशेंट बन गया तो कोई डिप्रेशन के नेक्स्ट लेवल मेनिया का शिकार हो गयाजब मानसिक हॉस्पिटल वाराणसी में पड़ताल की गई तो लाइन लगी दिखीयहां एक हफ्ते के अंदर 3060 पेशेंट इलाज के लिए पहुंचे

हौसले पर किया प्रहार

कोरोना वायरस ने समूची दुनिया को हर तरह से प्रभावित कियासेकेंड वेब में मौत का मंजर देख चुकी पब्लिक को अपनी पीड़ा भूलाना आसान नहीं हैहालांकि कोरोना कानया वैरिएशन ओमिक्रॉन ज्यादा खतरनाक तो नहीं साबित हुआ, लेकिन विंटर सीजन में लॉकडाउन से इसका बड़े पैमाने पर नाकारात्मक असर देखने को मिलामनोरोग एक्सपर्ट के अनुसार दिसंबर और जनवरी में हल्के लक्षण वाले पेशेंट को परेशानी होती है और उचित इलाज नहीं मिलने से ऐसे पेशेंट क्रिटिकल कंडीशन में भी जा सकते हैैंबनारस में मानसिक पेशेंट को रोग से उबरने के हौसले पर एक के बाद एक यानी फस्र्ट, सेकेंड और थर्ड वेब ने करार प्रहारा किया

सामाजिक दूरी से बढ़ा तनाव

वाराणसी मानसिक हॉस्पिटल के प्रमुख अधीक्षक डॉअमरेंद्र कुमार के अनुसार मानसिक रोगी के लिए एकांत नुकसानदायक होता हैयही नहीं हल्के लक्षणों वाले पेशेंट को लंबे समय तक सामाजिक मेल-मिलाप से अलग-थलग रखने पर इनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता हैनशाखोरी भी एक कारक हैकोरोना वायरस से बचाव के लिए एक के बाद एक लगे लॉकडाउन ने बनारस में मनोरोगियों की संख्या बढ़ा दी हैइलाज के लिए आ रहे पेशेंट में सबसे अधिक साइकोसिस (डिप्रेशन) के हैैं

उभरा कोविड साइकोसिस

ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि कोरोना के 153 मरीजों में से 10 मरीजों में कोरोना का नया रूप मिल चुका हैइसी बीच कोरोना संक्रमितों में बेहद ही गंभीर मानसिक रोग (कोविड साइकोसिस) के केसेज भी देखने को मिल रहे हैैंअमेरिका, भारत और ब्रिटेन समेत दुनिया के कई देशों में साइकोटिक लक्षण वाले मरीज मिले हैं

जांच की व्यवस्था नहीं

मनोचिकित्सक डॉअरविंद सिंह बताते हैैं कि ऐसे मरीजों को अचानक सुनाई देता है कि उन्हें खुद को मारना है, तो कभी अपने बच्चों को मारने के लिए कोई कहता हुआ सुनाई देता हैऐसे पेशेंट का इलाज किया जा रहा हैलेकिन, अभी बनारस में कोविड साइकोसिस के जांच की कोई सेप्रेट व्यवस्था नहीं है

केस-1

कोविडकाल में लॉकडाउन लगने से चेतगंज के 42 वर्षीय मोहन (बदला हुआ नाम) का काम-धंधा बंद हो गयाजो पूंजी थी परिवार के भरण-पोषण पर खर्च कर दियाआमदनी और लडक़ी की शादी को लेकर चिंता ने इनको कब मनोरोगी बना दिया, किसी को इसका भान ही नहीं हुआइस समय ये अधिकतर चुप रहते हैैं और जब बोलना शुरू करते तो ठहरने का नाम ही नहीं लेतेइनका इलाज जारी है

केस-2

लंका क्षेत्र की 30 वर्षीय मोना (बदला हुआ नाम) केंद्रीय कर्मचारी हैैंकोविड से पहले इनमें हल्के लक्षण थेइलाज चल रहा था, इसी बीच कोविड का लॉकडाउन लगा तो परिजनों की लाख कोशिशों के बाद भी स्थिति सुधरने का नाम नहीं ले रही हैइन्हें सदैव डर लगता है, भीड़ में जाने से घबराहट, उल्टी-सीधी बातें, रात में घूमने का प्लान, अचानक जोर-जोर से हंसना और रोने लगनाइनका इलाज जारी है

इस लक्षण के बढ़े पेशेंट

- अभी-अभी की बात को भूल जाना

- कन्फ्यूजन या भ्रम की स्थिति में पड़ जाना

- एकांत का आदी होना

- हाईफाई रहना, अचानक से रोना और अचानक से हंसने लगना

- रात में हंसना और रोना

-अपनी बात किसी पर थोपना, नहीं मानने पर हिंसा पर उतर आना

- भीड़ में जाने से घबराहट

- काम में मन नहीं लगना और बेचैनी का बढऩा

- नींद नहीं आने और भूख की कमी

- रात में अचानक नहाना और कपड़े धोना

आंकड़ों पर एक नजर

डेट पेशेंट संख्या

22 जनवरी 443

24 जनवरी 558

25 जनवरी 544

27 जनवरी 610

28 जनवरी 496

29 जनवरी 421

कुल- 3071 पशेंट

(मानसिक चिकित्सालय वाराणसी)

कोरोनाकाल में मानसिक विकार के पेशेंट में इजाफा हुआ हैयहां इलाज को आए पेशेंट में रोग की गंभीरता की वजह से टाइम टेकिंग हैऐसे लोग पेसेंस के साथ समय पर दवा लेते रहेंअन्य रोगों की तरह ही मानसिक रोग भी हैहल्के मानसिक विकार की अनदेखी ना करेंतत्काल मनोचिकित्सक को दिखाएंअंधविश्वास के चक्कर में न पड़ेंसमय पर उचित इलाज से मानसिक रोग को जड़ से मिटाया जा सकता है

डॉ अमरेद्र कुमार, निदेशक व प्रमुख अधीक्षक, मानसिक चिकित्सालय वाराणसी