- गर्मी बढ़ने के साथ बढ़ रहा है बंदरों का आतंक

-घरों में घुसकर कर सामान आदि कर रहे नष्ट, लोगों को बना रहे अपना निशाना

VARANASI

पूरे शहर में बंदरों का आंतक है। दुकान, मकान, मंदिर, पार्क लगभग लगभग हर जगह कब्जा जमाए हैं। घरों में दाखिल होकर सामान आदि नष्ट कर दे रहे हैं। वहीं ऑफिसों का कागजात आदि बर्बाद कर देते हैं। जिसने उनकी हरकतों पर लगाम लगाने की कोशिश तो उनका शिकार बन जाता है। मौका मिलते ही बंदर अपने नुकीले दांत और तेज नाखून बदन में गड़ा देते हैं। शहर को बंदरों के आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए नगर निगम ने जिम्मा उठाया लेकिन खास सफलता नहीं मिली।

इस मौसम में बढ़ गया आतंक

तापमान बढ़ने के साथ बंदरों के लिए रहने, खाने-पीने की समस्या होती जा रही है। कंक्रीट के जंगल में तब्दील शहर में हरियाली नाम मात्र की है। गर्मी से बेहाल बंदरों ने इंसानी बस्तियों को अपना ठिकाना बना लिया है। शहर की पॉश कॉलोनियों से लेकर पुराने मोहल्ले तक में इनके झुण्ड रहते हैं। खाने की तलाश में लोगों के घरों में घुस जाते हैं और जमकर उत्पात मचाते हैं। बन्दरों के आतंक की वजह से लोगों को अपने ही घर में नजरबंद रहना पड़ रहा है। सबसे बुद्धिमान जानवर के डर से बच्चे बाहर खेलने की बजाय घरों में कैद रहने को मजबूर हैं। बंदर इतने स्मार्ट हो चुके हैं कि दरवाजों के लॉक को भी खोल लेते हैं और घर में घुसकर धमाचौकड़ी करते हैं, जिससे लोगों का हजारों और लाखों रुपए के सामान का नुकसान भी हो रहा है। किचन में घुसकर खाने का सामान तक उठा ले जाते हैं।

नहीं मिली कामयाबी

-बंदरों की सही संख्या का पता किसी को नहीं लेकिन लगभग डेढ़ लाख बंदर शहर के अलग-अलग इलाकों में डेरा जमाए हैं

-बंदरों को शहर से दूर करने के लिए नगर निगम ने दो साल पहले मथुरा के एजेंसी को जिम्मेदारी दी थी

-एजेंसी बंदरों को पकड़कर मिर्जापुर के जंगलों में छोड़ देती थी

-कुछ दिनों तक तो एजेंसी ने काम किया लेकिन रुपयों के लेन-देन में उसने काम बंद कर दिया

-एक बार फिर बंदर बेलगाम हो गए और पूरे शहर में बेखौफ होकर उत्पात मचाने लगे

-बंदरों की आबादी नियंत्रण का कोई उपाय नहीं होने की वजह से उनकी संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है

हर ओर है इनकी हरकतों का शोर

- बंदरों के आतंक से लगभग पूरा शहर परेशान है

- घरों की छतों पर दिन रात बंदरों का जमावड़ा होता है

- इसके कारण लोग छतों पर चाहकर भी नहीं जा पाते हैं

- राह चलते खाने पीने के सामान बंदर लोगों के हाथों से छीनकर ले जाते हैं

- अगर घर की खिड़की दरवाजा एक सेकेंड के लिए भी खुला मिल गया तो बंदरों का कहर आपके घर में बरप सकता है

- बालकनी में सूख रहे कपड़ों को भी फाड़ डालते हैं बंदर

खुद को कर रहे कैद

- बंदरों के आतंक के कारण शहर के लोगों की जेब पर भी असर पड़ रहा है

- लोग इनसे बचने के लिए घरों की बालकनी से लेकर दरवाजों तक पर मोटी रकम खर्च कर ग्रिल लगवा रहे हैं

- कटीले तारों से अपने घर की बाउंड्रीवॉल को कवर करवा रहे हैं

- कई कॉलोनी वालों ने तो पर्सनल लेवल पर मंकी कैचर बुलाकर बंदरों को पकड़वाया था लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ

- मंकी बाइट का शिकार हर रोज दर्जन भर लोग हो रहे हैं। जिसके कारण रेबीज के इंजेक्शन का भी खर्च देना पड़ता है

इन क्षेत्रों में है इनका आतंक

दुर्गाकुंड, लंका, साकेत नगर, सुंदरपुर, सोनारपुरा, दशाश्वमेध, सिगरा, महमूरगंज, कैंट समेत शहर के विभिन्न इलाके।

शहर में बंदरों की समस्या है। इससे निजात दिलाने के लिए नगर निगम गंभीर है। बंदरों को शहर से दूर करने के लिए योजना बनायी जा रही है। पूर्व में बंदरों को पकड़ने की जिम्मेदारी दी गयी थी।

श्रीहरि प्रताप शाही, नगर आयुक्त

वाइसेज वाइसेज

बहुत परेशान कर रहे हैं बंदर घर और दुकान कहीं भी सेफ नहीं हैं। चीजें तो बर्बाद करते ही हैं साथ में डर भी बना रहता है कि कहीं काट न लें।

राजीव झा, लंका

इस वक्त तो कुछ ज्यादा ही खौफ है बंदरों का। बंदर आसानी से घरों में घुस जाते हैं बच्चे अक्सर इनका शिकार बन जाते हैं।

दिग्विजय त्रिपाठी, सामनेघाट

आजकल बंदरों का आतंक बहुत ज्यादा बढ़ गया है। अपार्टमेंट में बंदर गमले आदि भी तोड़ देते हैं। हमेशा उन्हें भगाने के लिए एक्टिव रहना पड़ता है

दीपक चौरसिया, दुर्गाकुंड

बंदरों का आतंक बहुत ज्यादा फैला हुआ है। नगर निगम बंदरों को पकड़ने के लिए कोई उपाय नहीं कर रहा है। इनसे बचने के लिए खुद उपाय करना पड़ता है।

आशीष सिंह, लंका

बंदरों के डर की वजह से घर में कैद रहने को मजबूर होते हैं। बच्चे खुली जगहों पर खेलने नहीं जा पाते हैं। बंदर बच्चों को काट लेते हैं। बड़े भी उनका शिकार बन जाते हैं।

आनंद तिवारी, दुर्गाकुंड

बंदरों से आंतक से मुक्ति दिलाने के लिए प्रशासन को गंभीर होना चाहिए। इनकी समस्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। इन पर लगाम न लगाया तो इंसानों का शहर में रहना मुश्किल हो जाएगा।

नवीन, कबीर नगर