-क्राइ के सर्वे में खुलासा, 82 प्रतिशत होम डिलेवरी वाले बच्चों की असमय हो जा रही मौत

-निमोनिया और श्वास संबंधी बीमारियां बन रही मौत की मुख्य वजह

स्वास्थ्य विभाग के प्रयास के बाद भी घरों में होने वाला प्रसव रुक नहीं रहा है। इसका नुकसान यह है कि घर में पैदा होने वाले कई बच्चे जन्म से कुछ दिनों में ही दम तोड़ दे रहे है। ये हम नहीं चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राइ) की रिपोर्ट कह रही है। वाराणसी, कौशांबी और सोनभद्र में घर में पैदा होने वाले नवजात बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर किए स्टडी से पता चला है कि हर 10 में 8 नवजात शिशुओं की मृत्यु जन्म के 7 दिनों के अंदर ही हो गई। यानी करीब 82 प्रतिशत नवजात की मौत जन्म के एक सप्ताह के अंदर दर्ज की गई। स्टडी रिपोर्ट से यह भी पता चला कि सबसे ज्यादा 58 प्रतिशत नवजातों की मौतें घर पर हुई। वहीं निजी अस्पताल में 20 प्रतिशत और सरकारी अस्पताल में 18 प्रतिशत की मौत हुई। यह स्टडी अप्रैल 2018 से 31 मार्च 2019 तक और फरवरी 2020 में महिलाओं से बातचीत पर आधारित है।

44 परसेंट में हाई रिस्क प्रेगनेंसी

स्टडी में यह भी पता चला कि अधिकतर महिलाओं का सामान्य प्रसव 89 प्रतिशत था। इसमें भी लगभग आधी महिलाओं में करीब 44 प्रतिशत में खून की कमी कम वजन आदि के चलते हाई रिस्क प्रेगनेंसी थी। इन हाई रिस्क प्रेगनेंसी में 29 प्रतिशत मामलों में होम डिलिवरी होने की सूचना दी गई। होम डिलिवरी नवजात शिशुओं के मौत का सबसे बड़ा कारण बना रहा है। वहीं प्रेगनेंट महिलाओं की डिलिवरी आरै उचित जंाच के मामलों में आशा, एएनएम और आंगनबाड़ी कार्यकत्री भी आगे नहंी आ रही है। ऐसी स्थिति बहुत ही चिंताजनक है।

69 परसेंट पहले दिन डिस्चार्ज

स्टडी में शामिल महिलाओं में से 22 प्रतिशत की डिलिवरी घर पर, जबकि 78 प्रतिशत की डिलिवरी संस्थागत हुई। लेकिन डिलिवरी के एक ही दिन में 69 प्रतिशत महिलाओं को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। 28 प्रतिशत माताओं ने बताया कि उनके बच्चे को जन्म के बाद पहले सप्ताह में प्रसवोत्तर जांच हुई। जिन महिलाओं का संस्थागत प्रसव हुआ था। उनमें भी हर 10 डिलिवरी के केस में सिर्फ एक में ही डॉक्टर द्वारा हेल्प की गई थी। यानी केवल 14 फीसदी डिलिवरी ही डॉक्टरों द्वारा करवाए गए। जबकि 86 प्रतिशत डिलिवरी एएनएम ने ही किए। बनारस से ज्यादा स्थिति कौशाम्बी की खराब है। यहां एएनएम ने 88 प्रतिशत और केवल 12 प्रतिशत डॉक्टर द्वारा प्रसव करवाए गए। 17 प्रतिशत प्रसव ही किसी कुशल या प्रशिक्षित स्वस्थ्य कार्यकर्ता की मदद से किए गए।

30 परसेंट की लो वेट से मौत

क्राइ की बोर्ड ऑफ ट्रस्टीस की सदस्य प्रोफेसर ऋतु प्रिया ने बताया कि स्टडी से दो प्रमुख निष्कर्ष निकलकर सामने आए हैं। इसमें पहला कारण महिलाओं में खून की कमी व गरीबी से उत्पन्न मातृ स्वास्थ्य है। ऐसी स्थिति से 30 परसेंट से ज्यादा कम वजन के बच्चों (लो बर्थ वेट) की मृत्यु श्वसन संबंधी रोग की वजह से हो जाती है। जबकि दूसरी वजह सीमित सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं है। जिसके चलते सेवा प्रदाताओं और समुदाय के सदस्यों के बीच अविश्वास पैदा होता है, जो नवजात स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

महामारी से बाल स्वास्थ्य प्रभावित

क्राइ की ओर से जारी आंकड़ों के बाद नवजात स्वास्थ्य के मुद्दे पर एक सत्र भी रखा गया, जिसमें क्राइ की क्षेत्रीय निदेशक सोहा मोइत्रा ने बताया कि शिशुओं को समग्र देखभाल और सुरक्षा प्रदान करने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से क्राइ वाराणसी के 50 गांवों, कौशाम्बी के 60 गांवों और सोनभद्र के 28 गांवों में काम कर रहा है। संस्थान को इस शोध के जरिये नवजात मृत्यु के पीछे के कारण यह हैं कि इसे रोकने के लिए सिस्टम, समुदाय और व्यक्तिगत स्तर पर किए जाने वाले प्रयास को तेज करने की जरूरत है। उन्होंने कहा यह स्टडी ऐसे समय पर आ रही है, जब सिस्टम पहले ही कोविड-19 महामारी जूझ रहा है। इस महामारी ने स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच के साथ बाल स्वास्थ्य और पोषण को सीधे प्रभावित किया है।

ये बन रहे हैं खतरा

-घर पर डिलिवरी

-चिकित्सकों का फोकस न होना

-एएनएम से प्रसव करवाना

-महिलाओं में खून की कमी

-हाई रिस्क प्रेगनेंसी

-शिशुओं में खून की कमी

-लो वेट

कैसे रोका जाए

-संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देना

-झोलाछाप डॉक्टर पर अंकुश लगाना

-एएनएम के बजाए डॉक्टर से प्रसव कराना

-गर्भावस्था के दौरान एएनसी और पोषण से पर फोकस करना

-विस्तारित एएनसी की आवश्यकता

10 में सिर्फ एक को मिला पूर्ण एएनसी

स्टडी में यह भी बताया गया है कि अधिकतर महिलाएं (93 प्रतिशत) ने आंगनबाड़ी केंद्रों में पंजीकृत थी। उनमें 88 प्रतिशत ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ता या आशा कार्यकर्ताओं से परामर्श प्राप्त किया था। हालांकि हर दस महिलाओं में केवल एक ने कहा कि उन्हें पूर्ण एएनसी चेक-अप मिला है। आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं द्वारा सभी 4 निर्धारित एएनसी सुनिश्चित करने में चिंताजनक अंतर देखने को मिला।

नवजात की मृत्यु का ये प्रमुख कारण

-निमोनिया और रेस्पिरेट्री डिस्ट्रेस्स सिंड्रोम यानी सांस लेने में तकलीफ इन दो प्रमुख वजहों से सबसे ज्यादा बच्चों की जान गई। निमोनिया से 27 प्रतिशत और रेस्पिरेट्री डिस्ट्रेस्स सिंड्रोम से 24 प्रतिशत नवजात की जान चली गई।

- 82

प्रतिशत नवजात की हो गई मौत जन्म के 7 दिनों के भीतर )

- 78

प्रतिशत प्रसव संस्थागत हुए

-86

परसेंट में एएनएम ने कराया प्रसव

14

परसेंट डॉक्टर ने करवाए प्रसव

93

परसेंट महिलाओं को आंगनबाड़ी केंद्रों में पंजीकृत किया गया था

88

परसेंट को आंगनबाड़ी या आशा कार्यकर्ता ने स्वस्थ्य संबंधी परामर्श दिया

11.2

परसेंट को पूर्ण एएनसी (प्रसव पूर्व देखभाल) चेकअप मिला

28

फीसदी माताओं को उनके बच्चों को जन्म के पहले सप्ताह में प्रसवोत्तर जांच मिली

(क्राइ की ओर से जारी आंकड़ों के के अनुसार)

शिशु मृत्युदर को रोकने के लिए विभाग लगातार प्रयासरत है। समय-समय पर टीकाकरण कराने के साथ गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर लगातार जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है। होम डिलिवरी न हो इस पर भी फोकस है।

डॉ। वीबी सिंह, सीएमओ