वाराणसी (ब्यूरो)। शहर को प्रदूषित करने में शिवपुर व सोनारपुरा में रहने वाले लोग सबसे आगे रहे, हालांकि सबसे पॉश कॉलोनी होने के बावजूद रविंद्रपुरी की आबो-हवा सबसे साफ रही। लोगों का पटाखों के प्रति लगाव के चलते शहर की वायु गुणवत्ता 8 गुणा प्रदूषित रही।

तीन वर्ष के रिकॉर्ड तोड़ दिए
तमाम बंदिश, सख्ती और जागरुकता की अपीलों के बावजूद दीपावली पर बम फोडऩे में शिवपर व सोनारपुरा के लोगों ने तीन वर्ष के रिकॉर्ड तोड़ दिए। शहर के दस विभिन्न इलाकों में दीपावली की रात 2 बजे से अगली सुबह 8 बजे तक वायु गुणवत्ता जांच करनी वाली मशीनों से निगरानी की गयी। इस साल भी दीपावली पर पीएम-10 मुख्य प्रदूषक तत्व रहा। शिवपुर क्षेत्र में दीपावली पर पीएम-10 अधिकतम 798 यूनिट प्रति घनमीटर के आंकड़े तक पहुंचा, जो अनुमन्य स्तर की तुलना में 8 गुना अधिक प्रदूषित है। पीएम 2.5 का स्तर 401 पाया गया, जो सामान्य से 6.5 गुना अधिक प्रदूषित है। सोनारपुरा में पीएम-10 और पीएम 2.5 क्रमश: 7 और 6 गुना अधिक प्रदूषित पाया गया। तीसरे नंबर पर पांडेयपुर रहा, जो अनुमन्य स्तर की तुलना में लगभग 7 गुना पीएम 10 व 6 गुना पीएम 2.5 अधिक प्रदूषित रहा।


मौसम इस तरह बना विलेन
पिछले कई दिनों से वाराणसी सहित पूरे पूर्वांचल में हवा की गति बेहद कम बनी हुई है। दीपावली के दिन गति लगभग शून्य हो गई। इसी दौरान दिन-रात के तापमान में गिरावट बनी रही। गुरुवार को दीपावली के दिन का तापमान 28.8 और रात का 14.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज हुआ। जबकि मंगलवार को दिन का तापमान 26.4 और रात का 12.8 डिग्री सेल्सियस था। आतिशबाजी व वाहनों से निकले धुंए और अन्य कारकों से पैदा हुए प्रदूषण भी हवा में पहुंचते रहे। इसी बीच शुक्रवार को न्यूनतम तापमान 12.2 ओर अधिकतम 27.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।


ध्वनि प्रदूषण में वृद्धि
ध्वनि प्रदूषण में शिवपुर व सोनारपुरा न केवल सबसे आगे रहा, बल्कि यहां के लोगों ने तीन साल में सर्वाधित आतिशबाजी की। पिछले दो साल की तुलना में इस साल 4.5 डेसिबल की बढ़ोतरी हुई, जो 5.5 फीसद है। पांडेयपुर व मैदागिन में 2019 की तुलना में इस साल 0.6 डेसिबल की वृद्धि दर्ज हुई, जो एक फीसदी से भी कम है।


प्रदूषण ने सांस के मरीजों की बढ़ा दी परेशानी
दीपावली पर बेकाबू हुए प्रदूषण ने सांस के मरीजों की परेशानी बढ़ा दी है। यह समय सांस के रोगियों के लिए नहीं, सामान्य लोगों के लिए भी खतरनाक है। शनिवार को शहर के फिजिशियन की ओपीडी में सांस के मरीजों की संख्या में अचानक वृद्धि हो गयी। ओपीडी में कुछ रोगी ऐसे भी पहुंचे, जिनको अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।


किसने क्या कहा-

अचानक बढ़े प्रदूषण से सांस के मरीजों का संकट बढ़ गया है। शनिवार को शहर के चिकित्सकों की ओपीडी में ऐसे नए मरीज भी पहुंचे, जिनको पहले कभी सांस से संबंधित कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन अब इन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही है। ऐसे मरीजों की जांच की गई तो इनके फेफड़े कमजोर मिले।
-डा। अभिलाष वीबी, एमएस

प्रदूषण का स्तर बढऩे से सांस के मरीजों में अस्थमा अटैक का खतरा बढ़ जाता है। धूल, धुएं और प्रदूषण से बचाव करें। प्रदूषण के कण हवा के साथ सांस के रास्ते शरीर में पहुंचते हैं, जिससे खून के प्रवाह में रुकावट आने लगती है। इससे व्यक्ति अस्थमा अटैक का शिकार हो सकता है।
-डा। एसके विश्वकर्मा, वरिष्ठ फिजिशियन

प्रदूषण की वजह से आंखों में जलन, लाली के मरीज की संख्या बढ़ी है। प्रदूषण में फैले हैवी पार्टीकल आंखों के संपर्क में आने से नुकसान पहुंच रहे हैं। आंखों पर चश्मे का प्रयाग करें। बाहर से आने के बाद आंखों को पानी से धोएं। खुजली होने से उसे रगड़े नहीं। आई ड्रॉप का प्रयोग करें।
-डा। अनुराग टंडन, आई स्पेशलिस्ट

गले में संक्रण की वजह प्रदूषण
प्रदूषण का स्तर बढऩे के बाद गले में खरास, भारीपन आवाज में बदलाव समेत चेस्ट में संक्रमण से मरीजों की संख्या बढऩे लगी है। ऐसे मरीजों को सलाह है कि वह बिना वजह घर, आफिस से बाहर न निकले। मास्क का प्रयोग करें। सुबह-शाम की सैर फिलहाल एक सप्ताह के लिए बंद कर दें।
-डा। डीडी दुबे, सीनियर फिजिशियन

इन आंकड़ों से साबित होता है कि जिला प्रशासन और क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बनारस की हवा में घुलते जहर एवं मानक स्वास्थ्य पर पड़ते दूरगामी और तात्कालिक प्रभावों को गंभीर समस्या नहीं मानता है। कचरा प्रबंधन में कमी के कारण आम लोग कचरा जलाने को बाध्य हैं। जागरूकता एवं नियमों के कड़ाई से अनुपालन के अभाव में आम जनता प्रदूषित आबोहवा में सांस लेने को अभिशप्त बनी हुई है।
-एकता शेखर, एनवायरमेंट एक्सपर्ट