- राजघाट पुल पर मौजूद थी भारी भीड़, नीचे रेलवे ट्रैक पर ट्रेन आने के बाद कंपन से मची अफरा-तफरी

-भीड़ में शामिल कुछ लोगों ने पुल गिरने का मचा दिया शोर 1ड्डह्मड्डठ्ठड्डह्यद्ब@द्बठ्ठद्ग3ह्ल.ष्श्र.द्बठ्ठ

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जय गुरुदेव के समागम के दौरान राजघाट पुल होकर पड़ाव जाने वाले रास्ते पर शनिवार को मची भगदड़ ने दो दर्जन लोगों की जान ले ली। इतनी बड़ी घटना की मुख्य वजह पुल के गिरने की झूठी अफवाह रही। हादसे में बाल-बाल बचे कुछ लोगों ने आई नेक्स्ट को बताया कि जिस वक्त हजारों भक्तों का रेला पुल के ऊपर से गुजर रहा था। इसी दौरान नीचे मौजूद टै्रक से ट्रेन गुजरने लगी। इसके पुल पर तेज कम्पन होने लगा। भीड़ में कुछ लोगों ने पुल गिरने का शोर मचाना शुरू कर दिया। बिना कुछ सोचे-समझे लोग इधर-उधर भागने लगे। जिससे अफरा तफरी मच गई और बड़ा हादसा हो गया।

ट्रेन के आने पर हिलता है पुल

125 साल पुराना राजघाट का पुल अपनी उम्र पूरी कर चुका है। दो मंजिला पुल पर नीचे से ट्रेन गुजरती है और ऊपर से वाहनों का आवागमन होता है। पुल के कमजोर होने की वजह से इस पर बड़े वाहनों के आने-जाने पर रोक लगा दी गयी है। जब भी इस पर ट्रेन गुजरती है तो तेज कम्पन होता है। दोपहर में पुल पर जय गुरुदेव के फॉलोवर्स की भारी भीड़ थी। इसी दौरान इस दौरान एक ट्रेन गुजरने लगी। तेज। तभी पुल के गिरने की अफवाह फैल गयी। लोग जान बचाने के लिए एक-दूसरे को धक्का देकर दौड़ने-भागने लगे। इससे भगदड़ मच गयी। जब तक हालात सामान्य हुए तब तब तक कई लोगों मौत के मुंह में समा चुके थे।

हादसा तो होना ही है

मालवीय पुल भारतीय उपमहाद्वीप का पहला पुल माना जाता है। उस वक्त जब इसके ऊपर सड़क और नीचे रेलवे रुट का निर्माण हुआ तो हर किसी को आश्चर्य हुआ। सन् 1887 में अस्तित्व में आया यह पुल पूरे एशिया में अपनी तरह का पहला पुल था। मालवीय सेतु के नाम से जाना जाने वाला यह पुल कई बार कमजोर हुआ और कई बार इसकी मरम्मत की गई। गंगा नदी पर बना यह पुल एक अक्टूबर 1887 में जब पहली बार इकहरी (सिंगल) रेल लाइन और पैदल पथ के लिए खोला गया तो यह डफरिन पुल के नाम से इतिहास के पन्नों में दजऱ् हुआ। आजादी के बाद पांच दिसंबर 1947 को इस पुल का नाम पंडित मदन मोहन मालवीय को समर्पित करते हुए इसका नाम मालवीय पुल रख दिया गया। इस ऐतिहासिक पुल को अवध और रूहेलखंड के इंजीनियरों ने मिलकर बनाया था। जब तत्कालीन महराज बनारस श्री प्रसाद नारायण सिंह की उपस्थिति में इस पुल का उद्घाटन हुआ तो एक नयी इबारत लिखी गयी। वक्त गुजरने के साथ ही यह 1048.5 मीटर लम्बा पुल अब ज्याद कमजोर हो रहा है। कुछ साल पहले इस पुल की उम्र पूरी हो गयी तब इस पर से भारी वाहनों का आवागमन तत्कालीन सरकार ने रोक दिया था। लेकिन दो साल पहले रेलवे और पीडब्ल्यूडी की सहमति से इसकी पैचिंग और बाइंडिंग दोबारा से की गयी। इसके बाद वाहनों का लोड दिनों दिन बढ़ता ही गया। बनारस के सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह के गृह जनपद चंदौली को जोड़ने वाला यह पुल कब तक टिका रहता है यह देखना होगा।