-रमजान में झूठ, चुगली, गीबत, गाली देने व किसी को दुख पहुंचाने से बचें

-गलत चीजों को सोशल मीडिया पर पोस्ट न करें, लॉकडाउन का पालन करें

इबाबत के महीने रमजान का रोजा सिर्फ खाने और पीने से दूर रहने का नाम नहीं, बल्कि पाबंदी का महीना है। इस बार तो ये पाबंदी और भी इंपॉटर्ेंट है। क्योंकि कोरोना संक्रमण के दौरान ये पाक महीना आया है। जिसमें किसी के दिल दुखाने वाली बातों, झूठ, चुगली, गीबत, गाली देने व किसी को तकलीफ देने से बचना है। हालांकि ये आम दिनों में भी नाजायज व हराम है। रोजे से भूखों-प्यासों पर मेहरबानी का जज्बा पैदा होता है। रोजे के दौरान कोई ऐसा कदम न उठाएं, जिससे किसी का दिल दुखे, बल्कि हर खाली वक्त को किसी दूसरे फितूरी काम में लगाने की बजाए, परवर दिगार का नाम जपने में लगाएं। वर्तमान दौर में जब कोरोना वायरस के संक्त्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन है तो रोजेदारों को अल्लाह के इबाबत का खूब मौका है। इसे जाया न करें। घर में रहते हुए अल्लाह के जिक्त्र में पल पल उपयोग करें।

घर में रहना भी इबादत

मुफ्ती ए शहर बनारस अब्दुल बातिन नोमानी ने बताया कि रोजा सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का नाम नहीं है, बल्कि खुद पर कंट्रोल करने का बेहतरीन जरिया भी है। असल रोजा तो वह है जिससे अल्लाह राजी हो जाए। जब हाथ उठे तो भलाई के लिए। कान सिर्फ अच्छी बातें सुनने के लिए लगे, कदम बढ़े तो नेक काम करने के लिए। आंख सिर्फ जायज चीजों को ही देखें। माह-ए-रमजान का एहतराम बेहद जरूरी है। शरीअत के लफ्जों में सुबह सादिक से लेकर गुरूबे आफताब तक जानबूझ कर खाने पीने और दीगर गलत चीजों से रुके रहने को रोजा कहते हैं। लॉकडाउन की वजह से हमारी दोहरी जिम्मेदारी है। लॉकडाउन के नियम का पालन करें। जरूरतमंदों की मदद करें। घर में ही नमाज व दीगर इबादत करें। मुल्क में अमन, खुशहाली व कोरोना से हिफाजत की दुआ मांगें।

कई बीमारियों में फायदा देता है रोजा

शिया धर्मगुरु मौलाना नदीम असगर ने बताया कि रोजा रखने में बहुत सी हिकमतें है। रोजा रखने से भूख और प्यास की तकलीफ का पता चलता है। जिससे भोजन और पानी की कद्र मालूम होती है और इंसान अल्लाह का शुक्त्र अदा करता है। रोजे से भूखों और प्यासों पर मेहरबानी का जच्बा पैदा होता है, क्योंकि अमीर अपनी भूख याद करके गरीब मोहताज की भूख का पता लगाता है। रोजे से भूख के बर्दाश्त करने की आदत पड़ती है। बंदे को अगर कभी खाना मयस्सर न हो तो वह घबराता नहीं और अल्लाह की नाशुक्त्री नहीं करता। फाका बहुत सी बीमारियों का इलाज भी है क्योंकि इससे कुव्वते हाजमा की इस्लाह होती है। रोजा ब्लड प्रेशर, कैंसर, फालिज, मोटापा, चमडे़ की बीमारियों और भी बहुत सारी बीमारियों में फायदा बख्श है जैसा की विशेषज्ञों का शोध है। खूब इबादत करें और इस महीने मुबारक के फैज से मालामाल हों। लॉकडाउन का पालन करें। कोरोना से निजात की खुसूसी दुआ करें।

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जबान का रोजा

जबान का रोजा ये है कि जबान सिर्फ और सिर्फ नेक व जायज बातों के लिए ही हरकत में आए। मसलन जबान से तिलावते कुरआन करें। दीनी किताब पढ़े। अल्लाह व रसूल का जिक्त्र करें। रसूल-ए-पाक और अहले बैत पर दरूदो व सलाम का नजराना पेश करें। तस्बीह पढ़े। नात-ए-पाक पढे़ं। सुन्नतों का बयान करें।

हाथों का रोजा

हाथों का रोजा यह है कि जब भी हाथ उठे तो सिर्फ नेक कामों के लिए उठे। मसलन हाथों से कुरआन शरीफ को छुएं, हो सके तो हाथों से किसी अंधे की मदद करें। यतीमों पर शफकत का हाथ फेरें। गरीब व जरूरतमंद की मदद करें वह भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए।

पैर का रोजा

पैर का रोजा यह है कि पांव उठे तो नेक कामों के लिए। मसलन पांव चले तो मस्जिद की तरफ। मजाराते अवलिया की तरफ, सुन्नतों भरे इच्तिमा की तरफ। नेक साहेबतों की तरफ, किसी की मदद के लिए चले। लॉकडाउन है लिहाजा मस्जिद, दरगाह न जाएं। घर से बाहर न निकलें। घर में रहें, सुरक्षित रहें।

आंख का रोजा

आंख का रोजा इस तरह रखना चाहिए कि आंखें जब उठे तो सिर्फ और सिर्फ जायज चीज को ही देखने की तरफ। आंख से कुरआन शरीफ, दीनी किताब देखें। मां-बाप की जियारत करें। लॉकडाउन की वजह से घर से बाहर निकल नहीं सकते लिहाजा यूट्यूब वगैरह के जरिए मुकद्दस मकामात मक्का, मदीना, मस्जिदे अक्शा आदि की जियारत करने में कोई हर्ज नहीं है।

कानों का रोजा

कानों का रोजा ये है कि सिर्फ जायज बातें सुनें मसलन कानों से तिलावत, नात सुनिए, सुन्नतों का बयान सुनिए। अजान, इकामत सुनिए, सुनकर जवाब दीजिए। किरत सुनिए, अच्छी-अच्छी बातें सुनिए।

वर्जन----------

सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का नाम रोजा नहीं है, बल्कि अपनी इंद्रियों पर कंट्रोल करने का बेहतरीन माध्यम भी है। असल रोजा तो वह है जिससे अल्लाह राजी हो जाए। सिर्फ भलाई, अच्छे कामों, गरीब और बेसहारा लोगों की जितनी मदद हो सकें, वह करें। घर से बाहर न निकलें।

अब्दुल बातिन नोमानी, मुफती ए शहर बनारस

यह पाक महीना एक तरह से ट्रेनिंग का माह होता है। साथ ही जहां अल्लाह से इबाबत का नाम है वहीं बंदों से एहसासे हमदर्दी का भी महीना है। फरिश्ते और दीगर मख्लूक इसमें शामिल नहीं और रोजा रखने की सबसे बड़ी हिकमत यह है कि इससे परेहजगारी मिलती है जैसा कि अल्लाह का फरमान है।

मौलाना नदीम असगर, शिया धर्म गुरु