कोरोना वॉरियर्स डॉक्टर्स, नर्स और पुलिसकर्मियों से पड़ोसी नहीं कर रहे अच्छा व्यवहार

-कोरोना मरीजों के नजदीक होने से लोगों को लग रहा डर

केस-1

डॉ। शाहिल शहर के एक कोरोना हॉस्पिटल में पीछे कई दिन से कोरोना के मरीजों की सेवा में लगे हुए है। संक्रमित एरिया में रहने की वजह से वो फैमिली मेम्बर्स के पास भी नहीं रह पाते। घर जाने के बाद एक कमरे में बंद हो जाते है। मगर जब वो सुबह घर से निकलते है तो आसपास के लोग उन्हें देखकर सहम जाते हैं और ऐसा व्यवहार करते जैसे उन्हें सबसे दूर रहना चाहिए।

केस-2

स्टाफ नर्स पूजा वर्मा कोरोना मरीजों की सेवा में लगातार लगी हुई है। कभी कभी तो ज्यादा केस बढ़ने पर डबल ड्यूटी करती हैं। परिवार में पति और बच्चे है। फिर भी वे काम पर न आने के लिए कोई बहाना नहीं बनती है। मगर जब घर आती जाती है तो मोहल्ले के लोग उनसे दूर भागने लगते है। जैसे कोरोना हवा में फैला रहीं हो।

ये तो सिर्फ दो कोरोना वारियर्स के साथ होने वाला व्यवहार है। कई ऐसे मेडिकल, पैरामेडिकल स्टाफ और पुलिसकर्मी ऐसे हैं जिनसे रिश्तेदार-पड़ोसी अच्छा व्यवहार नहीं कर रहे हैं। जबकि सरकार से लेकर प्रशासन तक इनका सम्मान करने की अपील कर रही है। कोरोना वायरस के संक्रमण से पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ है। लेकिन इससे लड़ने वालों के हौसले बुलंद है। इनके हौसलों के आगे कोरोना का संक्रमण टिक नहीं पा रहा है। स्वास्थ्यकíमयों की सेवा भाव के आगे कोरोना घुटने टेकने को मजबूर है।

कोरोना की लड़ाई में सबसे बड़ी भूमिका डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ की है। उनकी सराहना जितनी भी की जाए कम होगी। इन्ही फाइटर्स के सम्मान में कुछ दिन पहले भारतीय सेना ने फाइटर्स प्लेन उड़ाकर इनका उत्साहवर्धन किया था। ऐसे में सभी का फर्ज बनता है कि अगर इनका सम्मान नहीं कर सकते तो गलत व्यवहार तो ना करें।

जरा इनका जज्बा भी देखिए

------

पहली बार हमें ऐसी सेवा करने का मौका मिला है। पिछले 14 मार्च से क्वारंटीन सेंटर परमानंदपुर में सेवा चल रही है। यहां के बाद कोविड हॉस्पिटल परिसर स्थित कार्यालय में जाकर वहां का काम भी निपटाना पड़ता है। एक साथ दो जिम्मेदारियों का निर्वहन करने में कभी किसी तरह की कोई परेशानी नहीं हुई। लगातार मरीजों के सम्पर्क में रहने से इनसे नजदीकियां बढ़ती जा रही है लेकिन घर वाले दूर होते जा रहे हैं। बच्चो को ज्यादा समय नहीं दे पाते, संक्रमण का खतरा घर वालों को कम हो इसलिए घर पर क्वारंटीन रहता हूं।

क्वारंटीन सेंटर से मरीज जब स्वस्थ होकर घर के लिए निकलते हैं तो जितनी खुशी होती है उसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। अब अगर मोहल्ले वाले किसी मेडिकल स्टाफ अच्छा व्यवहार नहीं करते तो ठीक नहीं लगता।

डॉ। राहुल सिंह-नोडल ऑफिसर क्वारेंटाइन सेंटर परमानन्दपुर

---------

अपनी ड्यूटी खत्म करके शाम को घर जाने के बाद खुद को क्वारेंटाइन करने के लिए परिवार से अलग होकर अकेले कमरे में रहता हूं। जिससे किसी अन्य के संक्रमित होने की कही कोई गुंजाइस ही न रहे। घर में प्रवेश करने से पहले ग्लब्स और सíजकल कैप को जला देता हूं। सारा दिन मरीजों के बीच रहने की वजह से घरवालों से दूरी बनकर राखी पड़ती है। बच्चो से दूर रहने का मलाल तो रहता है लेकिन हमें जो दर्जा मिला है, उसका फर्ज भी तो निभाना है। सुबह होते ही सेंटर में आने की जल्दी रहती है। क्यों की यहां भी तो सब अपने ही है। हम सेना के जवानो की तरह में डटे हुए है। लोगो को हमारा मनोबल बढ़ाना चाहिए न की गिरना।

डॉ। अब्दुल जावेद- नोडल मेडिकल ऑफिसर आरबीएसके हरहुआ