वाराणसी (ब्यूरो)संकटमोचन मंदिर इन दिनों ज्यादा गुलजार हैज्यादा गुलजार होने से आशय है कि यह एक ऐसा धार्मिक स्थल है, जहां 100 साल से गीत-संगीत के साथ ही भाईचारा, कौमी एकता और सौहाद्र्र का संगम देखने को मिलता हैगंगा-जमुनी तहज़ीब को जिंदा रखने के लिए इस मंदिर ने हमेशा नई इबारत लिखीसंकटमोचन मंदिर के इस समारोह की खासियत है कि बिना निमंत्रण श्रोताओं का हुजूम जुटता हैयहां गीत-संगीत की ऐसी सरिता हिलोरे मारती है, जिसमें आस्तिक तो आस्तिक, नास्तिक भी संगीत सुनने आते हैं। 27 अप्रैल से शुरू हुए संकट मोचन संगीत समारोह का यह 101 वर्ष हैचार दिन में परतिकांत महापात्रा, साजन मिश्र, शिवमणि, विश्वमोहन भट्टï, हरिप्रसाद चौरसिया, अभय सोपोरी, मालिनी अवस्थी, मधुमिता राय, अनूप जलोटा जैसी संगीत की तमाम हस्तियों ने प्रस्तुति देकर हनुमत दरबार में हाजिरी लगाई.

हनुमान की ड्योढ़ी पर सजा था पहला मंच

हनुमत दरबार में सार्वभौम रामायण सम्मेलन की शुरुआत 1923 में हुई थीतीन दिन सार्वभौम सम्मेलन का समापन चौथे दिन संगीत समारोह से होता थातब उस समय संगीत समारोह का पहला मंच संकट मोचन बाबा की ड्योढ़ी पर सजा थागर्भगृह के ठीक बाहर कलाकार गायन-वादन करते थेयह क्रम 25 वर्षों तक चलारामायण समारोह का पूरा दायित्व बड़े महंतजी निभाते तो संगीत समारोह की कमान तत्कालीन छोटे महंत पंअमरनाथ मिश्र संभालतेसमारोह में श्रोताओं की बढ़ती भीड़ को देखते हुए 1948 में तत्कालीन बड़े महंत पंबांकेराम मिश्र के निर्देश पर मंदिर परिसर स्थित कुएं की जगह मंच के रूप में इस्तेमाल की जाने लगीआयोजन की लोकप्रियता का ग्राफ धीरे-धीरे बढऩे लगाकबीरचौरा और रामापुरा के कलाकारों का जुड़ाव तेजी से बढऩे लगापखावज वादक पंअमरनाथ मिश्र और पंकिशन महाराज की घनिष्ट मित्रता ने आयोजन के स्वरूप को और विस्तार दिया

तो बदलना पड़ा मंच

पहली बार 25 साल बाद मंच बदला, बढ़ती भीड़ को देखते हुए दोबारा अगले 15 साल बाद ही मंच का स्थान बदलने की जरूरत महसूस की गईसंगीत समारोह में बाहर के कलाकारों के आने का सिलसिला 1962 में शुरू होने के बाद इस समारोह की ख्याति भी बनारस से बाहर बढ़ गईश्रोता ही नहीं कलाकार भी बढऩे लगेनतीजा यह रहा कि अगले नौ साल में ही पुन: मंच बदलने की जरूरत आन पड़ीवर्ष 1971 में तीसरी बार मंच का स्थान बदला गयासंगीत समारोह का चौथा मंच गर्भगृह के उत्तर स्थित आंगन के पश्चिमी बरामदे में बनाया गयातब से आयोजन भी तीन दिन का हो गया.

मंच पर टूटी ट्यूबलाइट

1966 के कार्यक्रम में पंगोपाल मिश्र और बीच में पंकिशन महाराज बैठे थेवादन के दौरान मंच पर अचानक एक ट्यूबलाइट गरम होकर फूट गईतेज आवाज के साथ शीशे इधर उधर बिखर गए लेकिन दोनों में से किसी कलाकार के चेहरे पर शिकन नहीं आईजैसे उन्हें पता नहीं चला कि मंच पर कुछ टूटा-फूटा भी हैइस दौर में संगीत समारोह का समापन प्रख्यात तबला वादक पंकंठे महाराज की प्रस्तुति से होता थादो दिनों में जितने भी कलाकारों ने प्रस्तुति दी होतीसब के सब आगे की पंक्ति में बैठ कर उनका वादन सुनते थे.

40वें साल में 3 बड़े बदलाव

संगीत समारोह के 40वें साल 1962 में तीन बड़े बदलाव हुएपहला संगीत समारोह के मंच में हुआकुएं की जगह से हटाकर मंच व्यवस्था गर्भगृह के दक्षिणी छोर स्थित बरामदे में की गई, जहां इन दिनों महिला दीर्घा हैइसी वर्ष से संगीत समारोह को दो दिन कर दिया गयातीसरा बदलाव यह था कि पहली बार बनारस से बाहर के कलाकार के रूप में पंजसराज के बड़े भाई पंमणिराम बाबा दरबार में आए। 1966 में वायलिन वादक वीजी जोग दूसरे बाहरी कलाकार बनेवीजी जोग के साथ सारंगी पर पंगोपाल मिश्र (पंराजन-साजन के चाचा एवं गुरु) ने जुगलबंदी की थी.

शुरू हुआ महिलाओं का प्रवेश

सत्तर का दशक भी संकटमोचन संगीत समारोह के लिए बेहद महत्वपूर्ण रहाइस दशक में न सिर्फ उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों से कलाकारों के आने का क्रम शुरू हुआबल्कि अचानक हुए एक वाकये के बाद मंच पर महिलाओं के प्रवेश की राह खुल गईसंकटमोचन संगीत समारोह की स्वर्ण जयंती वर्ष 1973 में हुआ.

पंजसराज से शुरू हुआ

ठीक एक वर्ष बाद पंजसराज का प्रवेश हुआबेशक बनारस के बाहर के कलाकारों के आगमन का क्रम 1962 से शुरू हो गया था लेकिन यह सिलसिला पंजसराज की दूरदर्शिता से परवान चढ़ाअगले ही साल जयपुर के नामी गायक गोविंद प्रसाद जयपुरवाले का आना हुआकुछ ऐसा सुखद संयोग बना कि पूर्व काशीनरेश महाराज डॉविभूतिनारायण सिंह की प्रेरणा से तुलसी घाट पर ध्रुपद मेला की नींव पड़ीमहाशिवरात्रि पर पक्की गायिकी के मेले ने कई अन्य कलाकारों के संकटमोचन से जुडऩे की राह खोली.

1978 कंकणा बनर्जी ने की थी प्रस्तुति

वर्ष 1978 में कोलकाता की कंकणा बनर्जी संकटमोचन संगीत समारोह में गायन करने वाली पहली महिला कलाकार बनींवर्ष 1977 में पंप्रताप नारायण का गायन हो रहा थाकाशी के अरुण चटर्जी उनके साथ संगत कर रहे थे और कंकणा बनर्जी तानपुरा संगत कर रही थीकंकणा ने अचानक बीच में सुर लगा दिए थेउनके सुर लगाते ही मंदिर परिसर में श्रोताओं के बीच कानाफूसी शुरू हो गईकुछ ने महिला ने गा दिया महिला ने गा दिया का शोर भी किया, लेकिन प्रोवीरभद्र मिश्र का संकेत पाकर सभी शांत हो गए और गायन सुनने लगेगायन के अंत में प्रोमिश्र ने कंकणा बनर्जी के स्वतंत्र गायन की घोषणा कर दीगायन में महिलाओं के प्रवेश के नौ साल बाद 1987 में नृत्य में भी अवसर मिलापहली नृत्यांगना के रूप में संयुक्ता पाणिग्रहि ने ओडिसी की प्रस्तुति कीउसके बाद उमा शर्मा और सोनल मानसिंह का आना हुआ.

1979 में राजन-साजन ने दी प्रस्तुति

पंराजन साजन के पिता पंहनुमान प्रसाद मिश्र और चाचा पंगोपाल मिश्र ने पंअमरनाथ मिश्र से आग्रह किया कि क्यों न हमारे बच्चों की भी शुरुआत यही से हो। 1979 में पंराजन-साजन को पहली बार इसी मंच से लॉन्च किया गयासूर्योदय से पहले दोनों भाई राग ललित गा रहे थेउस दिन पंरविशंकर साठ साल के हुए थे। वह दर्शन करने आएदर्शन के बाद पंरविशंकर ने मंच पर बैठ कर दोनों भाइयों का गायन सुना था.

इन कलाकारों ने दी प्रस्तुति

तबला वादक किशन महाराज, पंशारदा सहाय, पंशामता प्रसाद, पंलच्छू महाराज, पंईश्वर लाल मिश्र, पंछोटे लाल मिश्र, माणिक वर्मा, नृत्यांगना, कुमार गंधर्व, मालिनी अवस्थी, सोनू निगम, तबला वादक संजू सहाय, भजन सम्राट अनूप जलोटा, पण्डित विश्व मोहन भट्ट, ड्रम वादक शिवमणि, कविता कृष्णमूर्ति, हरीश गंगानी, रविकांत महापात्रा, उल्लास कलाशकर समेत कई नामचीन कलाकार प्रस्तुति दे चुके हैं.

फैक्ट एंड फीगर

1923 में एक दिवसीय आयोजन से हुई थी संकट मोचन संगीत समारोह की शुरुआत

1965 में पंजसराज के बड़े भाई पंमणिराम समारोह में प्रस्तुति देने वाले पहले बाहरी कलाकार थे

1979 में पहली बार संकट मोचन संगीत समारोह में अपने अग्रज पंसाजन मिश्र के साथ शरीक हुए थे। 2019 तक दोनों भाई साथ साथ गाते रहे। 2021 में कोरोना संक्रमण से पंराजन मिश्र का निधन हो गया

1978 में कोलकाता की कंकणा बनर्जी ने संकटमोचन संगीत समारोह में गायन करने वाली पहली महिला कलाकार थीं

संकट मोचन संगीत समारोह में देश-विदेश के कलाकार प्रस्तुति के लिए आते हैंकोई अच्छा संगीत तो कोई अच्छा वादन कर प्रभु के चरणों में समर्पित करते हैंयह परंपरा सौ वर्षों से चली आ रही हैइसी बहाने लोग मंदिर से जुड़ते हैं.

प्रोविश्वम्भर नाथ मिश्र, महंत, संकटमोचन