-सभी 84 घाटों तक गंगा का पानी हुआ हरा

-पानी में उभरे शैवाल से जलीय जीव व स्नान करने वालों पर मंडराने लगा खतरा

-एक्सपर्ट ने पानी के प्रवाह को रोकना बताया कारण

गंगा किनारे के 84 घाटों पर पानी में हरे शैवाल की समस्या चिंता की वजह भी बनती जा रही है। पहले तो कुछ दिनों की बात मानकर स्थानीय लोगों के साथ ही प्रशासन ने भी इस घटना को हल्के में लिया, लेकिन अब वाराणसी प्रशासन को इससे निजात पाने के लिए गंभीर कदम उठाने पड़े हैं। वहीं एक्सपर्ट भी इसे जलीय जीव व श्रद्धालुओं के लिए खतरनाक बता रहे हैं। उनका कहना है कि इससे गंगाजल के साथ ही जीवों पर भी असर पड़ेगा।

श्रद्धालुओं को होंगी स्किन डिजीज

आईआईटी बीएचयू के नदी विज्ञानी प्रो। यूके चौधरी का कहना है कि ललिता घाट पर सौ फीट लंबा और डेढ़ सौ फीट चौड़ा बनाया गया प्लेटफार्म इसकी बड़ी वजह है। प्रो। चौधरी ने बताया कि ललिता घाट पर ही काशी में गंगा अर्धचंद्राकार स्वरूप लेती हैं। वहीं पर बांधनुमा स्वरूप बनाकर गंगा के फ्लो को अवरुद्ध कर दिया गया है। इससे पानी में शैवाल पैदा हो गए हैं। जो पानी में आक्सीजन के लेवल को कम कर देंगे। इससे जलीय जीवों का जीवन प्रभावित होगा। वहीं इसमें नहाने वाले श्रद्धालुओं को भी कई स्किन डिजीज हो जाएंगीं। कहा कि गंगा की बीच धारा में निर्माण के दुष्परिणाम आने वाले कुछ दिनों में नजर आने लगेंगे। घाटों पर बालू के पहाड़ बन जाएंगे, पंचगंगा के आगे कटाव तेज हो जाएगा और मालवीय पुल पर भी इसका असर पड़ेगा। इससे गंगा के वेग में कमी आएगी और गंगा घाटों को छोड़ देंगी।

गंगा पर आ जाएगा संकट

संकटमोचन फाउंडेशन के अध्यक्ष, संकटमोचन मंदिर के महंत व आईआईटी बीएचयू के अध्यापक प्रो। विश्वंभर नाथ मिश्र ने कहा कि गंगा का व्यावसायिक लाभ उठाने के उद्देश्य से छेड़छाड़ किया जा रहा है। इससे गंगा पर गंभीर संकट उत्पन्न हो जाएगा। प्रो। मिश्र ने कहा कि ललिता घाट पर गंगा के अंदर एक लंबे प्लेटफार्म का निर्माण किया गया है, जिसके कारण गंगा का प्रवाह बाधित हो रहा है। इसके दुष्परिणाम भी दिख रहे हैं। ललिता घाट के अपस्ट्रीम में शैवाल के पनपने के कारण पानी का रंग हरा हो गया है। गंगा में अधिक संख्या में शैवाल का पाया जाना जल एवं गंगा के उपयोग करने वालों के स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं है। इस प्लेटफार्म की वजह से घाटों की तरफ सिल्ट का जमाव बढ़ेगा एवं गंगा घाट से दूर हो जाएंगी। गंगा के पूर्वी घाट पर फ्रेट कॉरिडोर के लिए एक नहर का निर्माण भी किया जा रहा है। जिसके चलते भी गंगा में पानी का बहाव रुक गया है।

प्रवाह बढ़े तो खत्म हो समस्या

महामना मदन मोहन मालवीय गंगा शोध केंद्र का चेयरमैन प्रो। बीडी पांडेय ने बताया कि गंगा में शैवाल नहीं पाया जाता है। यह तालाब व रुके हुए पानी में ही मिलता है। इसके गंगा में दिखने के पीछे उसमें प्रवाह की कमी है। पानी का प्रवाह एकदम कम हो गया है। यह अगर लंबे समय तक रहा तो जलीय जीवों पर इसका दुष्प्रभाव पड़ेगा। इसको रोकना है तो गंगा में पानी के प्रवाह को बढ़ाया जाए, अगर ऐसा नहीं हुआ तो गंगा का पानी पीने व नहाने योग्य नहीं रहेगा। पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने से मछलियों सहित अन्य जीवों के मरने का खतरा भी बढ़ जाएगा।

कम हो रहा आक्सीजन लेवल

गंगा में पानी के हरा होने की वजह का पता लगना अभी बाकी है। लेकिन जब तक पता चलेगा और इसका सॉल्यूशन ढूंढा जाएगा तब तक बहुत देर हो सकती है। गंगा में एक तरफ ललिता घाट पर प्लेटफॉर्म व दूसरी ओर फ्रेट कॉरिडोर के लिए गंगा को खोदने से यह समस्या उत्पन्न हुई है। इससे पानी एक जगह रूक गया है। कई दिनों से पानी के रुकने के कारण सभी घाट पर पूरा पानी हरा हो गया है। इससे पानी में ऑक्सीजन लेवल कम हो गया है। पानी के ठहर जाने से पानी में फास्फोरस और नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ गई और तापमान भी 25 डिग्री के अधिक होने पर ग्रीन एलगी का फार्मेशन होता है। गंगा में डीओ यानी डिसॉल्व ऑक्सीजन की मात्रा 11.2 आई है, जबकि पहले यह 8-9 आती थी।

शासन को भेजी रिपोर्ट

यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम को पिछले 15-20 दिनों से गंगा में हरे शैवाल देखने को मिल रहे हैं। जिसके बाद से रोजाना मॉनिटरिंग चल रही है। अपस्ट्रीम कानपुर से लेकर प्रयागराज, मिर्जापुर और बनारस की सीमा तक बदला हुआ रंग ग्रीन एलगी का है। जिसका अध्ययन करने के लिए रिपोर्ट शासन को प्रेषित भी कर दी गई है। लेकिन तथ्यात्मक अध्ययन के लिए डीएम की ओर से पांच लोगों की टीम गठित कर दी गई है। पांच सदस्यीय यह टीम गंगा नदी की धारा के बीच जाकर हरे शैवाल पाये जाने के सम्बन्ध में उद्गम, श्रोत और गंगा घाटों तक इनके पहुंचने के कारणों को तलाशने में जुटी है।