- आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आषाढ़ नवरात्रि की होती है शुरुआत

-एक साल में आते हैं चार नवरात्र

-चैत्र और शारदीय नवरात्रि के अलावा होते हैं दो गुप्त नवरात्र

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जुलाई को पुष्प नक्षत्र में देवी के मंत्रों की आराधना के पर्व का होगा शुभारंभ

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जुलाई को रवि पुष्प नक्षत्र के संयोग से नवरात्रि का होगा समापन

चैत्र नवरात्र के बाद अब देवी दुर्गा के भक्तों को गुप्त नवरात्र का इंतजार है। हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह में गुप्त नवरात्रि आते हैं। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आषाढ़ नवरात्रि की शुरुआत हो जाती हैं। इन्हें गुप्त नवरात्र कहते हैं। ज्योतिषाचार्यो के मुताबिक इस बार आषाढ़ नवरात्रि का शुभारंभ 11 जुलाई से हो रहा है। जबकि रवि पुष्प नक्षत्र के संयोग से नवरात्र का समापन 18 जुलाई को होगा। इस बार के इस नवरात्र में एक तिथि कम हो गई है। जिससे यह नवरात्र आठ दिन का ही होगा। ज्योतिषाचार्यो का कहना है कि इस बार छठ तिथि का क्षय होने से गुप्त नवरात्र 8 दिन के ही होंगे। गुप्त नवरात्र के दौरान मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है।

तांत्रिक सिद्धियों के लिए पूजा

ज्योतिषाचार्य पं। बब्बन तिवारी के मुताबिक एक वर्ष में कुल मिलाकर चार नवरात्रि आती हैं। जिसमें से दो गुप्त नवरात्रि के अलावा चैत्र और शारदीय नवरात्रि शामिल हैं। पहली गुप्त नवरात्रि माघ के महीने में आती है और दूसरी गुप्त नवरात्रि आषाढ़ माह में मनाई जाती है। गुप्त नवरात्रि आम नवरात्रि से भिन्न होती है। दरअसल, इसमें तांत्रिक सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए मां भगवती देवी की आराधना की जाती है।

गुप्त नवरात्रि में 10 देवियों की पूजा

चैत्र और शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है। जबकि गुप्त नवरात्रि के दौरान 10 देवियों की पूजा की जाती है। इसमें मां काली, मां तारा देवी, मां त्रिपुर सुंदरी, मां भुवनेश्वरी, मां छिन्नमस्ता, मां त्रिपुर भैरवी, मां धूमावती, मां बगलामुखी, मां मातंगी और मां कमला देवी की पूजा होती है।

आषाढ़ गुप्त नवरात्रि घटस्थापना मुहूर्त

- आषाढ़ घटस्थापना 11 जुलाई को

- घटस्थापना मुहूर्त 05:31 एएम से 07:47 एएम तक

- 02 घण्टे 16 मिनट की होगी अवधि

- घटस्थापना अभिजित मुहूर्त 11:59 एएम से 12:54 पीएम

- प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ 10 जुलाई 06:46 एएम

- प्रतिपदा तिथि समाप्त 11 जुलाई, 07:47 एएम

शंकर के साथ शक्ति की आराधना

पं। बब्बन तिवारी ने बताया कि धाíमक दृष्टि से सभी जानते हैं कि नवरात्र देवी स्मरण से शक्ति साधना की शुभ घड़ी है। इस शक्ति साधना के पीछे छुपा व्यावहारिक पक्ष यह है कि नवरात्र का समय मौसम के बदलाव का होता है। आयुर्वेद के मुताबिक इस बदलाव से जहां शरीर में वात, पित्त, कफ में दोष पैदा होते हैं, वहीं बाहरी वातावरण में रोगाणु जो अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं। स्वस्थ जीवन के लिये इनसे बचाव बहुत जरूरी है। नवरात्र के विशेष काल में देवी उपासना के माध्यम से खान-पान, रहन-सहन और देव स्मरण में अपनाए गए संयम और अनुशासन तन व मन को शक्ति और ऊर्जा देते हैं, जिससे इंसान निरोगी होकर लंबी आयु और सुख प्राप्त करता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार गुप्त नवरात्र में प्रमुख रूप से भगवान शंकर व देवी शक्ति की आराधना की जाती है।

ऋषि श्रृंगी ने बताई थी गुप्त नवरात्र की महत्ता

गुप्त नवरात्रों से एक प्राचीन कथा जुड़ी हुई है। एक समय ऋषि श्रृंगी भक्त जनों को दर्शन दे रहे थे अचानक भीड़ से एक स्त्री निकल कर आई और करबद्ध होकर ऋषि श्रृंगी से बोली कि मेरे पति दुव्र्यसनों से सदा घिरे रहते हैं, जिस कारण मैं कोई पूजा-पाठ नहीं कर पाती धर्म और भक्ति से जुड़े पवित्र कार्यो का संपादन भी नहीं कर पाती। मैं मां दुर्गा भक्ति साधना से जीवन को पति सहित सफल बनाना चाहती हूं। ऋषि श्रृंगी महिला के भक्तिभाव से बहुत प्रभावित हुए और कहा कि वासंतिक और शारदीय नवरात्रों से तो आम जनमानस परिचित हैं, लेकिन इसके अतिरिक्त दो नवरात्र और भी होते हैं, जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरूप का नाम सर्वैश्वर्यकारिणी देवी है, यदि इन गुप्त नवरात्रों में कोई भी भक्त माता दुर्गा की पूजा साधना करता है तो मां उसके जीवन को सफल कर देती हैं।

गुप्त नवरात्रि में प्रयोग में आने वाली सामग्री

मां दुर्गा की प्रतिमा या चित्र, सिंदूर, केसर, कपूर, जौ, धूप,वस्त्र, दर्पण, कंघी, कंगन-चूड़ी, सुगंधित तेल, बंदनवार आम के पत्तों का, लाल पुष्प, दूर्वा, मेंहदी, बिंदी, सुपारी साबुत, हल्दी की गांठ और पिसी हुई हल्दी, पटरा, आसन, चौकी, रोली, मौली, पुष्पहार, बेलपत्र, कमलगट्टा, जौ, बंदनवार, दीपक, दीपबत्ती, नैवेद्य, मधु, शक्कर, पंचमेवा, जायफल, जावित्री, नारियल, आसन, रेत, मिट्टी, पान, लौंग, इलायची, कलश मिट्टी या पीतल का, हवन सामग्री, पूजन के लिए थाली, श्वेत वस्त्र, दूध, दही, ऋतुफल, सरसों सफेद और पीली, गंगाजल आदि। पूजा में इस्तेमाल होने वाली इन सामग्री का भी विशेष महत्व माना जाता है।