शहर की बदहाल व्यवस्था ने रैंकिंग में बनारस को र दिया पीछे

27

वें पायदान पर रहा पीएम कासंसदीय क्षेत्र वाराणसी

30

लाख से अधिक है वर्तमान में शहर की जनसंख्या

10

टॉप शहरों की सूची में नहीं आ सका जीवन जीने की सुगमता की रैंकिंग में बनारस

::: इंट्रो:::

केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने 'इज ऑफ लिविंग इंडेक्स' यानी रहने के लिहाज से बेहतर शहरों की रैंकिंग 2020 जारी कर दी। इसमें बनारस को 27वां रैंक मिला है। वहीं 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में रहने के लिए बेंगलुरु सबसे बेहतर शहर माना गया है। साथ ही 10 लाख से कम आबादी वाले शहरों में शिमला सबसे बेहतर है।

10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहरों की श्रेणी में वाराणसी 'इज ऑफ लिविंग' की रैंकिंग में 27वें पायदान पर है, जबकि मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने वाले सभी विभागों ने पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी को टॉप टेन में लाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी। शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, आवास और आश्रय, महिला सुरक्षा व्यवस्था, आíथक विकास, रोजगार पर बेहतर काम किया गया, लेकिन ट्रांसपोर्ट, पर्यावरण, सफाई और सीवर की लचर व्यवस्था ने पूरे प्रयास पर पानी फेर दिया। अगर शहर में टै्रफिक जाम नहीं लगता, नियमित डोर-टू-डोर कूड़ा उठान, सीवर और पर्यावरण अच्छा होता तो वाराणसी जीवन जीने की सुगमता की रैंकिंग में प्रदेश में पहले पायदान और देश के टॉप-10 शहरों की सूची में जरूर आता।

शहर में टै्रफिक सिस्टम फेल

शहर की आबादी वर्तमान में 30 लाख से अधिक है। इसके अलावा पूर्वाचल के जिलों से भी हर दिन दो से ढाई लाख लोग शहर में आते हैं। इसके चलते शहर में हर वक्त टै्रफिक का जबर्दस्त दबाव रहता है। आबादी के हिसाब से शहर की सड़कों का चौड़ीकरण नहीं हुआ, जिसकी वजह से शहर में हर दिन नहीं, बल्कि हर वक्त प्रमुख मार्गो पर जाम की स्थिति रहती है। हालांकि टै्रफिक विभाग ने ट्रैफिक सिस्टम को बेहतर करने के लिए काफी प्रयास किया, लेकिन घनी आबादी होने के कारण ट्रैफिक सिस्टम फेल हो गया।

सफाई-सीवर की समस्या बरकरार

नगर निगम ने सभी वार्डो में डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन के लिए गुजरात की कम्पनी एजी इनवायरो से करार किया। 2 अक्टूबर को वरुणापार जोन से इसकी शुरुआत हो गई और दिसंबर से पूरे शहर में इसे लागू कराने के लिए कम्पनी ने कहा था, लेकिन मार्च शुरू हो गया, लेकिन कम्पनी वरुणापार जोन से आगे नहीं बढ़ पाई। इसके चलते स्वच्छता एप हर दिन अन्य जोन से गली या मोहल्ले में कूड़े पड़े होने की शिकायत आती है। इसके अलावा सीवर ओवरफ्लो और जाम की समस्या खत्म नहीं हुई। इज ऑफ लिविंग की रैंकिंग में इन सुविधाओं की समीक्षा विशेष तौर से होती है।

प्रदूषण ने किया बेड़ागर्क

नगर निगम और विकास प्राधिकरण की तमाम कोशिशों के बावजूद शहर की आबोहवा कभी अच्छी नहीं हो पाई। नगर निगम की ओर से सड़कों की नियमित सफाई नहीं होती है। वाहनों के आवागमन से अक्सर धूल उड़ते हैं। इसी तरह भवन निर्माण के दौरान ग्रीन पर्दा का इस्तेमाल जरूरी है। बावजूद इसके मात्र दस फीसद लोग ही वीडीए के निर्देश का पालन करते हैं। बिल्डिंग मैटेरियल से भी पर्यावरण दूषित हो रहा है।

बॉक्स :::

इज ऑफ लिविंग इंडेक्स सर्वे में देश भर के 111 शहरों को शामिल किया गया था। शहरों को दो कैटेगरी में बांटा गया। पहली कैटेगरी में वैसे शहर शामिल किये गये थे, जिनकी आबादी 10 लाख से ज्यादा थी। दूसरी कैटेगरी में उन शहरों को शामिल किया गया, जिनकी आबादी 10 लाख से कम थी। पहली कैटेगरी में 49 शहर शामिल किये गये। इन शहरों में देखा गया कि यहां रहने की गुणवत्ता किस स्तर की है। साथ ही जो विकास कार्य हुए, उनका लोगों के जीवन पर क्या असर पड़ रहा है और पड़ा है।

::: कोट :::

स्वच्छता सर्वेक्षण में वाराणसी को नंबर वन पर लाने के लिए नगर निगम ने मुहिम शुरू कर रखी है। इज आफ लिविंग में सभी विभागों की भूमिका होती है। अगर सभी विभाग कलेक्टिव वर्क करते तो इसमें भी वाराणसी को अच्छी रैंकिंग आती।

-एनपी सिंह, नगर स्वास्थ्य अधिकारी