आई स्पेशल

अब तक कोई भी विधायक नहीं बन पाया सीएम

-उपचुनाव ने ही तय किए अब तक के सीएम

-हमेशा पैराशूट से ही उतरा सूबे में सीएम

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देहरादून

16 साल के उत्तराखंड में चौथी सरकार बनने जा रही है। आज तस्वीर साफ हो जाएगी कि कौन सा दल सूबे में सत्ता संभालेगा। इस बार नौवां सीएम कुर्सी पर काबिज होने जा रहा है। लेकिन सूबे की सियासी कहानी बड़ी ही रोचक है। अब तक उत्तराखंड में 12 बार सीएम बदल चुके हैं। हालांकि चौथे विधानसभा चुनाव के बाद नया सीएम नौवां ही गिना जाएगा। इस बार सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या इतिहास बदलेदगा? दरअसल अब तक सूबे में कोई भी ऐसा सीएम नहीं बना जो डायरेक्ट विधायक चुनकर विधानसभा में आया हो। इसमें रमेश पोखरियाल निशंक एक अपवाद हो सकते हैं लेकिन वो भी तब सीएम बने थे जब बीजेपी ने अपने एक सीएम को हटाया था। यानि निशंक भी विधायकी जीतकर सीधे सीएम नहीं बन पाए थे।

उपचुनाव के बाद ही बने सीएम

अब तक के सूबे के सियासी इतिहास में जो भी सीएम बना वो उपचुनाव लड़कर ही विधायक बना। पहली अंतरिम सरकार में पहले सीएम नित्यानंद स्वामी बने, जो गढ़वाल डिविजन से यूपी में एमएलसी थे। उनके बाद भगत सिंह कोश्यारी को कुर्सी मिली। भगत दा कुमाऊं डिविजन से एमएलसी थे। इसके बाद सूबे में पहला आम चुनाव 2002 में हुआ। इस चुनाव में कांग्रेस जीती। तब नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने। वे यूपी से इंपोर्ट किए। बाद में उन्होंने रामनगर सीट से विधानसभा का उपचुनाव जीता। इसके बाद 2007 के चुनाव में बीजेपी सत्ता पर काबिज हुई। तब मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाया गया। उन्हें भी दिल्ली से इंपोर्ट किया गया। वे पौड़ी से सांसद थे। सीएम बनने के बाद उन्होंने धुमाकोट सीट से विधायकी का उपचुनाव लड़ा। खंडूड़ी के बाद रमेश पोखरियाल निशंक को सीएम बनाया गया। लेकिन निशंक को डायरेक्ट चुनाव के बाद कुर्सी नहीं मिली थी। 2012 के चुनाव की बात करें तो तब कांग्रेस सत्ता में आई। इस बार विजय बहुगुणा को कमान सौंपी गई। वे भी दिल्ली से इंपोर्ट किए गए। वे तब टिहरी से सांसद थे। सीएम बनने के बाद बहुगुणा के सितारंगज सीट से उपचुनाव लड़ा और विधायकी जीती। दिलचस्प बात ये है कि बहुगुणा को सत्ता से हटाने के बाद कांग्रेस ने कुर्सी हरीश रावत को सौंपी और तब वे भी हरिद्वार से सांसद थे। यानि उनको भी दिल्ली से इंपोर्ट किया गया और बाद में रावत ने धारचूला सीट से उपचुनाव लड़कर विधायकी जीती।

इस बार क्या होगा?

इस बार की रणनीति पर बात करें तो कांग्रेस ने पहले ही साफ कर दिया कि अगर वो जीती तो हरीश रावत ही सीएम होंगे। यानि विधायक ही सीएम बनेगा। इधर, बीजेपी के प्रदेश प्रभारियों की तरफ से भी ऐलान कर दिया गया था कि इस बार अगर बीजेपी सत्ता पर काबिज होती है तो विधायकों में से ही सीएम चुना जाएगा। यानि ये पहली बार होगा जब सूबे में किसी विधायक को प्रदेश की कमान सौंपी जाएगी।

दो-दो साल में बदले सीएम?

इसे महज संयोग कहा जाए या कुछ और। जब भी प्रदेश में जोड़तोड़ की सरकार बनी तब दो-दो साल में सीएम बदल दिए गए। कांग्रेस के शासन में भी यही हुआ और बीजेपी के राज में भी। शुरुआत बीजेपी के राज में हुई। खंडूड़ी सीएम थे। उनहें दो साल के कार्यकाल के बाद हटा दिया गया और निशंक को कुर्सी सौंप दी गई। ये बात अलग है कि आखिरी वक्त में खंडूड़ी को फिर वापसी दे दी गई। ऐसा ही कांग्रेस में भी हुआ। विजय बहुगुणा को दो साल सीएम रहने के बाद हटा दिया गया और हरीश रावत को ताज पहना दिया गया।