क्रांतिगुरु पर गैंग रेप के आरोपों में पुलिसिया खेल

दो पीडि़ताओं की एक एफआईआर दर्ज की गई

दो अलग-अलग वर्ष की घटनाओं में एक केस कैसे

सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइंस का खुला उल्लंघन

देहरादून

क्रांतिगुरु चंद्रमोहन पर गैंगरेप की एफआईआर दर्ज करने में देहरादून पुलिस ने बड़ा खेल कर दिया। क्रांतिगुरु पर दो महिलाओं ने अलग-अलग समय पर रेप के आरोप लगाए। दोनों साथ थाने पहुंची तो पुलिस ने दोनों महिलाओं की शिकायतें सुनी जरूर मगर दो अलग अलग मामलों की एक एफआईआर दर्ज की। एक पीडि़ता की एफआईआर में दूसरी का नाम और बयान भी दर्ज कर लेने का आंकड़ा लिया गया। अब दोनों महिलाओं को एक साथ नक्शा-मौका और बयानों के लिए बुलाकर उनके बयानों में विरोधाभास बताकर कहीं पुलिस मामले को रॉन्ग ट्रैक पर ले जाने रही है।

अलग अलग पीडि़ता, अलग अलग आरोप:

पुलिस के मुताबिक सहस्त्रधारा रोड पर शेरा गांव में स्थित क्रांतिगुरु के आश्रम में दो महिलाओं ने अलग-अलग समय पर रेप के आरोप लगाए हैं। एक महिला ने पिछले वर्ष 22 जून को और दूसरी ने इस वर्ष 17 जून को रेप होने की बात कही। पुलिस इस मामले में जांच की स्पीड तेज होने का दिखावा तो कर रही है लेकिन जरूरी एविडेंस कलेक्ट करने और पीडि़ताओं के मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराने में भी जान बूझकर देरी कर रही है। ऐसे में सवाल यह है कि जिन पीडि़ताओं को लंबे समय तक धमकाकर चुप रखा गया, उन्हें अब पुलिस की मदद से डरा-धमकाकर केस वापस लेने का साजिश तो नहीं हो रही।

161 में बयान दर्ज कर टरकाया

रेप की एफआईआर दर्ज कराने वाली महिलाओं को राजपुर थाना पुलिस ने मंडे को देहरादून बुलाकर भी मजिस्ट्रेट के समक्ष उनके धारा 164 के बयान दर्ज नहीं कराए। पुलिस ने एफआईआर में जो आरोप लगाए हैं, उन्हें फिर से रिपीट कराते हुए थाने में ही महिलाओं के 161 सीआरपीसी के तहत बयान लिखे, जिनकी कोई कानूनी मान्यता नहीं है। फिर दोनों पीडि़ताओं को सहस्त्रधारा स्थित क्रांतिगुरु के आश्रम में ले जाकर वहां रह रही अन्य महिलाओं से रूबरू कराया गया। वहां पीडि़ताओं पर रेप की एफआईआर को वापस लेने के लिए पुलिस की मौजूदगी में आश्रम की अन्य सेविकाओं ने करीब दो घंटे तक दबाव बनाया। जबकि पुलिस इसे मौका तस्दीक का नाम दे रही है। मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दर्ज कराने से पहले पीडि़ताओं से मौका तस्दीक का अर्थ समझ से परे हैं।

डंडे का नया फंडा, पीडि़ताओं के बयानों में विरोधाभास:

पीडि़ताओं की एफआईआर, उनके थाने में तीन दिन बाद बुलाकर फिर से बयान दर्ज करना और मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान कराने से पहले ही वारदात स्थल पर ले जाकर मौका तस्दीक कराने के बाद पुलिस ने पीडि़ताओं के बयानों में विरोधाभास बताया है। पुलिस का कहना है कि फिलहाल मामले की गहन पड़ताल की जा रही है, रेप के आरोप पुख्ता साबित होने पर ही मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराए जाएंगे। क्रांतिगुरु के खिलाफ दो महिलाओं ने रेप के अलग-अलग आरोप लगाए हैं। यही नहीं दोनों महिलाओं ने रेप की वारदातों में एक वर्ष का अंतर बताया है। एक महिला की एफआईआर में क्रंातिगुरु के सहयोगी कुलदीप भी आरोपी है। दूसरी महिला ने सिर्फ क्रांतिगुरु पर आरोप लगाए हैं। दो अलग अलग घटनाएं, फिर भी पुलिस ने दो मामलों को ज्वाइंट मानते हुए एक एफआईआर दर्ज की है।

सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस का उल्लंघन:

रेप के मामलों में दो अलग अलग पीडि़ताओं की एक एफआईआर दर्ज कर पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट की विशाखा गाइड लाइन का उल्लंघन किया है। साथ ही दोनों महिलाओं को मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान से पहले आरोपियों के ठिकानों पर ले जाकर आरोपी और उनके सहयोगियों से रूबरू कराना गंभीर मामला है। सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन है, कि रेप की एफआईआर दर्ज होते ही तुरंत पीडि़ता के 164 के बयान दर्ज कराए जाने चाहिए। इससे पीडि़ता का पक्ष मजबूत हो जाता है। भविष्य में पीडि़ता किसी के दबाव में बयानों से मुकरने का खतरा टल जाता है।

कानूनी पक्ष

- दो पीडि़ताएं अलग अलग है, समय अलग है, घटना अलग है, तो दो एफआईआर दर्ज होनी चाहिए। दो पीडि़ताओं से रेप की एक एफआईआर यह विधि विरूद्ध है। एफआईआर दर्ज कराते ही पीडि़त महिलाओं के 164 सीआरपीसी के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दर्ज करने चाहिए।

संजीव शर्मा, क्रिमिनल लॉयर

नींद में अफसर

पुलिस ने जो भी किया होगा वह कानून सम्मत होगा। दो महिलाओं की एक एफआईआर दर्ज करना गलत नहीं है। दोनों के बयान दर्ज कर एक साथ जांच कर लेंगे। जांच में कोई धांधली या पीडि़ताओं को डराने धमकाने जैसा कुछ नहीं होने दिया जाएगा।

अजय रौतेला,आईजी गढ़वाल रेंज