-हमेशा किताबों की करीब रहने वाली इंजीनियरिंग की स्टूडेंट विदुषी ने शुरू किया है अलग स्टार्टअप
-यहां पहुंचने वाले युवा कॉफी, चाय, फूड के साथ शांतप्रिय माहौल में करते हैं अपनी पढ़ाई

देहरादून, 13 मार्च (ब्यूरो)। जहां वह न केवल खुद को बुक्स के करीब पाती है, बल्कि यहां स्टूडेंट्स की भी आवाजाही लगी रहती है, जो प्रोफेशनल कोर्स से संबंधित तैयारी के लिए पहुंचते हैं। इस बुक कैफे का नाम मौल्यार दिया गया है। मौल्यार यानि उत्तराखंड में वसंत ऋतु के आगमन मौल्यार कहा जाता है।

इंदिरानगर में बनाया बुक कैफे
दून के वसंत विहार के इंदिरा नगर में विदुषी ने मौल्यार बुक कैफे की शुरूआत की है। यहां पर पहुंचने वाले हर कोई चाय-कॉफी व कॉन्टिनेंटल फूड के साथ कैफे में मौजूद करीब 3500 किताबों के कलेक्शन को करीब से पढ़ सकते हैं। विदुषी के मुताबिक ये ऐसा स्थान है, जहां सोशल मीडिया से परे बुक्स युवाओं को अपनी ओर खींच कर लाती हैं। कॉम्टिीशन से लेकर हर प्रकार की बुक्स यहां संकलन है। जिसका युवा बखूबी लाभ उठा रहे हैं।

इंजीनियरिंग से मौल्यार का सफर
इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाली विदुषी कहने के लिए अपनी जॉब कर सकती थी। लेकिन, उन्हें बचपन से ही बुक्स का बड़ा शौक रहा। बकौल विदुषी बुक्स से उनकी नजदीकी रहे, उन्होंने इस फील्ड में खुद का स्टार्टअप शुरू करने का फैसला लिया और शुरू कर दिया नया सफर। फिलहाल, दून में इस प्रकार का ये पहला और इकलौता कैफे है। जहां पर बैठकर कोई भी फूड प्रोडक्ट्स के ऑर्डर देकर मौजूद करीब साढ़े तीन हजार बुक्स की सुविधा भी ले सकता है।

साथ ला सकते हैं अपनी बुक्स
विदुषी बताती हैं कि बुक्स ही किसी के जीवन में बदलाव लाने की क्षमता रखते हैं। इसलिए उन्होंने भी ऐसी नेक स्टार्टअप की शुरुआत की है। खास बात ये है कि कैफे में युवा अपनी बुक्स लाकर भी पढ़ाई कर सकते हैं। पीसफुल माहौल होने के कारण कैफे में पहुंचने वाले युवा खुद को कंसंट्रेट कर पाते हैं।

क्या है मौल्यार का मतलब
विदुषी के मुताबिक बुक कैफे का नाम मौल्यार इसलिए रखा गया। क्योंकि, उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में मौल्यार को वसंत ऋतु के आगमन को मौल्यार कहते हैं। साफ है कि कैफे में मौजूद बुक्स हर किसी की जीवन में वसंत ऋतु जैसे आभास कराए। यही थीम कैफे की रखी गई है।

अंग्रेजों के समय का है ट्रेंड
विदुषी का मानना है कि बुक कैफे का ट्रेंड नया नहीं है। भले ही आज लोग इसको भूल चुके हैं। लेकिन, ब्रिटिशकाल में बुक हाउस हुआ करते थे। बुक कैफे का कॉन्सेप्ट फ्रांस ने सबसे पहले शुरू किया था। विदुषी बताती हैं कि जब भी वह दून के कैफे में जाती थी, तो उन्हें अपनी बुक्स अपने साथ लेकर जानी पड़ती थी। यहीं से उन्हें आइडिया आया कि क्यों न एक ऐसा स्थान तैयार किया जाए। जहां पर स्पेशली युवा चाय-कॉफ़ी और फूड के साथ बुक्स पढ़ सकें और वहीं से बुक्स भी मुहैया हो पाएं।

कैफे में ये बुक्स भी मौजूद
-फिक्शन
-नॉन-फिक्शन
-गढ़वाली साहित्य
-कुमाऊं साहित्य
-हिन्दी लिट्रेचर
-लोकल राइटर्स
-इंटरनेशनल राइटर्स
-हिस्टोरीकल बुक्स

पहाड़ की संस्कृति की झलक
मौल्यार कैफे में पहाड़ की संस्कृति की झलक भी देखने को मिलती है। यहां चारधाम यात्रा के दृश्य, गढ़वाली परिधान और पहाड़ी व्यजंन को भी प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। इसके अलावा कैफे में पहाड़ी नृत्य नंदा राजजात यात्रा हो या पांडव लीला हो या फिर रम्माण के दृश्य। सबको प्रदशित किया गया है। झूमेलो, छोलिया ड्रांस को भी कैफे में दर्शाया गया है।

ये मिलेंगी फैसिलिटीज
-कैफे मे पहुंचने वाले लोगों को बुक्स से जोडऩे के लिए सब्सक्रिप्शन की सुविधा।
-सब्सक्रिप्शन की सुविधा 1 माह, 3 माह, 6 माह व वर्षभर के लिए।
-सब्सक्रिप्शन के साथ फूड पर भी 5 से 20 परसेंट तक का डिस्काउंट।


लंबे समय से मौल्यार बुक्स कैफे में आ रही हूं। यहां मुझे पढ़ाई के लिए पीसफुल माहौल मिलता है। इसके बाद ही मैंने कैफे का सब्सक्रिप्शन लिया है। यहां पर बुक्स की उपलब्धता भी संतोषजक है।
निहारिका, कस्टमर।

पीएचडी की तैयारी कर रही हूं। यहां मैं 6 से 8 घंटे बैठकर पढ़ाई करती हूं। इसके लिए यहां पर न केवल शांत माहौल मिलता है। बल्कि, कॉफी और खाने की सुविधा भी मिलती है। बुक्स की जरूरत पडऩे पर आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
डॉ। प्राची, कस्टमर।
दैनिक जागरण आईनेक्स्ट