- आज नहाय-खाय के साथ शुरू होगा छठ पर्व

- वेडनसडे को छठ पूजा को लेकर बाजार रहे गुलजार, लोगों ने जमकर की खरीदारी

DEHRADUN: आस्था का पर्व छठ नहाय-खाय के साथ आज से शुरू होगा। छठ को लेकर दून में तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। घाटों की सफाई कर पूजन के लिए तैयार कर लिया गया है। वेडनसडे को लोगों ने छठ को लेकर बाजारों में जमकर खरीदारी की। सुबह से शाम तक बाजार गुलजार रहे। मान्यता के अनुसार छठ पूजा करने से छठी मैया प्रसन्न होकर सभी की मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

ऐसे मनाते है छठी मैया का पर्व

31 अक्टूबर से शुरू होने वाले आस्था के महापर्व के पहले दिन नहाय-खाय में व्रती शुद्ध सात्विक भोजन करते हैं। शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को खरना का विधान होता है। जिसमें व्रती सारा दिन निराहार रहते हैं। शाम के समय गुड़ वाली खीर का विशेष प्रसाद बनाकर छठ माता व सूर्य देव की पूजा करते हैं। षष्टि तिथि के पूरे दिन निर्जल उपवास रहकर शाम के समय अस्त होते सूर्य को नदी या तालाब में खड़े होकर अ‌र्घ्य दिया जाता है। सप्तमी तिथि के दिन भी सुबह के समय उगते सूर्य को नदी या तालाब में खड़े होकर जल चढ़ाया जाता है।

छठ को लेकर बाजार गुलजार

छठ पूजा में पूजन सामग्री की खरीदारी के लिए वेडनसडे को शहर के बाजार गुलजार रहे। लोगों ने सूपा, कपड़े, मिट्टी के बर्तन जैसे सामग्रियों की खूब खरीदारी की। झंडा बाजार में पूजन सामग्री विक्रेता राम कुमार ने बताया कि छठ को लेकर खरीदारों की भीड़ लगी रही।

टपकेश्वर में हुई सफाई

छठ पूजा के मौके पर शहर के प्राचीन टपकेश्वर महादेव मंदिर में वेडनसडे को सफाई की गई। साथ ही सूर्य को अ‌र्घ्य देने के लिए घाट भी बनाए गए हैं। मंदिर के महंत कृष्णा गिरी महाराज ने बताया कि सूर्य को अ‌र्घ्य देने के लिए घाट बनाए गए हैं। उन्होंने कहा कि छठ पूजा में हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इसके लिए मंदिर सेवा दल की ओर से सुरक्षा के इंतजाम किए गए हैं। कहा कि छठ पूजा के मौके पर मंदिर में विशेष पूजा अर्चना कर विश्व शांति की कामना की जाएगी।

यह रहेगा कार्यक्रम

31 अक्टूबर - नहाय खाय

एक नवंबर - खरना

दो नवंबर - शाम को सूर्य को अ‌र्घ्य

तीन नवंबर - प्रात: कालीन सूर्य को अ‌र्घ्य

घाटों की हुई सफाई

पूर्वा सांस्कृतिक मंच के तत्वावधान में राजधानी के 16 छठ घाटों पर आयोजित की जाने वाली पूजा के लिए छठ मैय्या की स्थापना होने लगी है। उधर, विभिन्न घाटों पर सफाई अभियान को अंतिम रूप दिया जा रहा है। छठ पूजा के लिए बहते पानी का विशेष महत्व है, इसी पानी में खड़े होकर श्रद्धालु भगवान सूर्य को अ‌र्घ्य देते हैं। छठ पूजन को लेकर पूर्वा सांस्कृतिक मंच पिछले दो दिनों से घाटों की सफाई कर रहा है।

पुत्र की रक्षा के लिए की थी छठ पूजा

पौराणिक कथा के अनुसार राजा प्रियवद की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने महर्षि कश्यप से इसके बारे में बात की। तब महर्षि कश्यप ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। इस दौरान यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर राजा प्रियवद की पत्‍‌नी मालिनी को खाने के लिए दी। यज्ञ के खीर के सेवन से रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मृत पैदा हुआ। राजा प्रियवद मृत पुत्र के शव को लेकर श्मशान पहुंचे और पुत्र वियोग में अपना प्राण त्यागने लगे। उसी दौरान ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा प्रियवद से कहा कि वे सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई है, इसलिए उनका नाम षष्ठी भी है। मेरी पूजा के साथ लोगों में इसका प्रचार-प्रसार करो। माता षष्ठी के कहे अनुसार, राजा प्रियवद ने पुत्र की कामना से माता का व्रत विधि विधान से किया, उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी थी। इसके फलस्वरुप राजा प्रियवद को पुत्र प्राप्त हुआ।