- मई में शासन को भेजी गई डीपीआर अब तक जहां की तहां

- मेट्रो के लिए 16 बोर्ड बैठक, 4 विदेश यात्राओं के बाद भी नहीं बनी सहमति

देहरादून,

केबल कार, मेट्रो और रोपवे से होता हुआ दून का वैकल्पिक पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम मेट्रो नियो पर पहुंचने के बाद फिर अटक गया है। पिछले तीन महीने से ज्यादा समय से मेट्रो नियो की डीआरपी कैबिनेट की मंजूरी के लिए शासन में पड़ी हुई है। इस दौरान कई कैबिनेट मीटिंग भी हो चुकी हैं, लेकिन इन डीपीआर पर ध्यान देने की अब तक जरूरत नहीं समझी गई है।

राजनीतिक गहमा-गहमी में भूले

उत्तराखंड मेट्रो रेल, अरबन इंफ्रॉस्ट्रक्चर एंड बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कारपोरेशन लिमिटेड (यूकेएमआरसी) ने मेट्रो नियो की डीआरपी करीब तीन महीने पहले कैबिनेट की मंजूरी के लिए शासन को भेज दी थी। इससे पहले चीफ सेक्रेटरी की अध्यक्षता में हुई यूकेएमआरसी बोर्ड की बैठक में डीपीआर को मंजूरी दी गई थी। उम्मीद की गई थी कि सिटी के लिए ड्रीम प्रोजेक्ट माने जाने वाले इस प्रोजेक्ट को शासन में सबमिट करने के बाद होने वाली पहली कैबिनेट में ही मंजूरी मिल जाएगी। लेकिन, इस दौरान राज्य में लगातार हुई राजनीतिक गतिविधियों ने इस पर ब्रेक लगा दिया।

4 देशों की यात्रा हो चुकी

दून में मेट्रो जैसा पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम डेवलप करने के लिए यूकेआरएमसी कई अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों के दो चरणों में चार देशों की यात्रा कर चुका है। पहले चरण में दर्जनभर अधिकारियों और प्रतिनिधियों ने मेट्रो ट्रेन जैसे विकल्प का अध्ययन करने के लिए जर्मनी के फ्रेंकफर्ट और यूके के लंदन की यात्रा की थी। बाद में इस प्रतिनिधिमंडल ने रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट के आधार पर दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन से डीपीआर भी तैयार करवाई गई। लेकिन बाद में यह प्रोजेक्ट खारिज करके नई संभावना पर विचार करने के लिए कहा गया।

रोपवे के लिए भी विदेश यात्रा

मेट्रो रेल प्रोजेक्ट खारिज होने के बाद रोपवे की संभावनाओं पर विचार होने लगा। इसके लिए एक बार फिर विदेश यात्रा की गई इस बार फ्रांस, कोलंबिया और स्विटजरलैंड की यात्रा की गई। इस टूर में भी कई अधिकारी और जन प्रतिनिधि शामिल थे। अबकी बार कोलंबिया की मेडलिन सिटी के रोपवे सिस्टम पर ध्यान दिया गया। वापस आकर फिर रिपोर्ट तैयार हुई। डीपीआर बनी। रोपवे के रूट भी तय किये गये। लेकिन, एक बार फिर इस प्रोजेक्ट का भी खारिज कर दिया गया।

अब मेट्रो नियो

रोप वे के बाद यूकेआरएमसी के अधिकारियों ने नये विकल्प की तलाश शुरू की तो दूसरी यात्रा के दौरान मेडलिन सिटी में देखे गई मेट्रो नियो पर ध्यान गया। लेकिन, दिक्कत यह थी कि उस यात्रा में मेट्रो नियो पर कोई ध्यान नहीं दिया था, क्योंकि वह यात्रा सिर्फ रोपवे का अध्ययन के लिए थी। लिहाजा मेट्रो नियो के बारे में कोई जानकारी नहीं ली गई थी।

मेडलिन से मांगी मदद

मेट्रो नियो का आइडिया आने के बाद यूकेएमआरसी के अधिकारियों ने मेडलिस सिटी एडमिनिस्ट्रेशन से मदद मांगी। वहां से कई तरह की टेक्नीकल मदद मिली। कारपोरेशन ने इस बार दिल्ली मेट्रो रेल प्रोजेक्ट की मेट्रो रेल के लिए बनाई गई डीपीआर के आधार पर खुद मेट्रो नियो की डीपीआर तैयार की, जो अब कैबिनेट की मंजूरी के इंतजार में है।

हर महीने लाखों खर्च

दून में शुरुआती दौर में दो रूट में मेट्रो नियो चलाने की योजना है। 2051 की जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार की गई इस योजना पर 1500 करोड़ रुपये खर्च आने की संभावना है। लेकिन, इस बीच जिस तरह से बार-बार काम अटक रहा है, उससे हर महीने कारपोरेशन पर हर महीने खर्च किये जा रहे लाखों रुपये बेकार जा रहे हैं। दो दर्जन के करीब अधिकारियों और कर्मचारियों के कारपोरेशन को हर महीने हरिद्वार बाईपास स्थित ऑफिस के किराये, सैलरी और अन्य चीजों पर लाखों खर्च किये जा रहे हैं। अब तक कारपोरेशन बोर्ड की 16 बैठकें हो चुकी हैं। इसके बावजूद अब तक काम डीपीआर तैयार करने से आगे नहीं बढ़ पाया है।

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हम लगातार कोशिश कर रहे हैं कि कैबिनेट जल्दी मेट्रो नियो पर फैसला ले। हाल ही नये सीएम से मुलाकात करके मैंने इस बारे में उनसे बात भी है। चीफ सेक्रेटरी को भी लगातार रिमाइंड करवाया जा रहा है। उम्मीद कर रहे हैं, जल्दी कोई फैसला होगा।

जितेन्द्र त्यागी, एमडी

उत्तराखंड मेट्रो रेल कारपोरेश