देहरादून (ब्यूरो)। समुद्रतल से 10276 फीट की ऊंचाई पर चमोली जिले में स्थित बदरीनाथ धाम के कपाट बंद करने की प्रक्रिया भगवान नारायण के फूलों से शृंगार के साथ सुबह ही शुरू हो गई थी। नित्य पूजा के बाद भगवान को दोपहर का भोग लगाया गया। वैसे दोपहर का भोग लगने के बाद कुछ समय के लिए मंदिर के कपाट बंद रखे जाते हैं, लेकिन कपाटबंदी के मौके पर दिनभर कपाट खुले रहे। इस दिन को यादगार बनाने के लिए मंदिर को 20 क्विंटल गेंदा व अन्य प्रजाति के फूलों से सजाया गया था।

कुंआरी कन्याओं का बुना घृत कंबल ओढ़ाया

शाम को भगवान के तन से फूल हटाकर उन्हें देश के अंतिम गांव माणा की कुंआरी कन्याओं का बुना घृत कंबल ओढ़ाया गया। अब अगले साल कपाट खुलने के मौके पर यही घृत कंबल श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाएगा। इससे पूर्व, धाम के मुख्य पुजारी रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी मां लक्ष्मी को गर्भगृह में लाने के लिए उनकी सखी के वेश में मंदिर परिसर स्थित मां लक्ष्मी के मंदिर पहुंचे। इसी दौरान गर्भगृह में स्थित बदरीश पंचायत से भगवान के बालसखा उद्धवजी व देवताओं के खजांची कुबेरजी की उत्सव मूर्ति और आदि शंकराचार्य की गददी को बाहर लाया गया। जबकि, मां लक्ष्मी को गर्भगृह में भगवान नारायण के साथ विराजित किया गया और इसी के साथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए।

पारंपरिक पौंणा नृत्य की छटा बिखेरी

इस दौरान सेना व भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी) के बैंड की मधुर धुनों पर माणा व बामणी गांव की महिलाओं ने पारंपरिक पौंणा नृत्य की छटा बिखेरी। कपाटबंदी पर उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के अपर मुख्य कार्याधिकारी बीडी सिंह, धर्माधिकारी भुवन चंद्र सती, सुमन प्रसाद डिमरी, पं.मोहित डिमरी, अंकित डिमरी, ज्योतिष डिमरी समेत हक-हकूकधारी व श्रद्धालु मौजूद रहे।

पांडुकेश्वर पहुंचेंगे भगवान नारायण के प्रतिनिधि

भगवान नारायण के प्रतिनिधि के रूप में उद्धवजी व कुबेरजी की उत्सव डोली और आदि शंकराचार्य की गद्दी यात्रा रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी की अगुआई में रविवार सुबह पांडुकेश्वर स्थित योग-ध्यान बदरी मंदिर पहुंचेगी। इसके बाद उद्धवजी योग-ध्यान बदरी मंदिर और कुबेरजी अपने मंदिर में विराजमान हो जाएंगे। जबकि, आदि शंकराचार्य की गद्दी यात्रा योग-ध्यान बदरी मंदिर में रात्रि प्रवास के बाद सोमवार को जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर पहुंचेगी।

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