-दून के आईएसबीटी पर पड़ी कोरोना की मार, व्यापारी दुकान खाली करने में मजबूर

-कई ने अपनी दुकानें खाली कर किया पलायन, करीब तीन माह से बंद बस अड्डा

देहरादून, कोरोना की मार दून के आईएसबीटी पर भी पड़ी है। कभी दिनरात बसों व यात्रियों की आवाजाही से गुलजार रहने वाले आईएसबीटी में आजकल हर तरफ खामोशी है। हाल ये है कि करीब तीन माह से बसों के पहिए न केवल जाम हैं, बल्कि बस अड्डे पर मौजूद दुकानदार भी अपनी दुकानें खाली कर पलायन करने को मजबूर हैं। स्थिति ये है कि कई व्यापारियों ने आईएसबीटी में कारोबार चौपट होने के कारण परिवार की आजीविका चलाने को प्राइवेट कंपनियों में मजदूरी भी शुरू कर दी है। जिन्होंने कोरोनाकाल से उबरने का विश्वास जताया है, उनके दुकानों में मौजूद सामान में भी एक्सपायर हो चुका है। कुल मिलाकर आईएसबीटी में किराए पर दुकान लेकर अपना कारोबार करने वाले व्यापारियों को कोरोना से दोहरी मार पड़ी है। दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट की एक रिपोर्ट

दुकानें बंद होने से खाली करने को मजबूर

दून स्थित आईएसबीटी (इंटर स्टेट बस टर्मिनलल) पूर्व सीएम स्व। एनडी तिवारी सरकार के शासनकाल में शुरू हुआ था। एमडीडीए ने तैयार कर सरकार ने इसके संचालन की जिम्मेदारी प्राइवेट कंपनी रैमके को सौंपी गई थी। तब से लेकर कुछ उतार चढ़ाव के बीच आईएसबीटी का संचालन हो रहा था। लॉकडाउन तक रोजाना तमाम राज्यों व लोकल सौ से अधिक बसों के आने-जाने का सिलसिला जारी रहता था, लेकिन आईएसबीटी पर कोरोना की ऐसी मार पड़ी कि यहां ने केवल बसों के पहिए जाम हो गए, बल्कि दुकानें भी बंद होने के कारण दुकानों में मौजूद खाने-पीने के सामान तक एक्सपायर हो गए। जिस कारण व्यापारियों को इसकी दोहरी मार पड़ी है। यही वजह है कि आगे भी ऐसी स्थिति न बनी रहे, किराए पर दुकानें लेने वाले व्यापारियों ने अपनी दुकानें खाली करनी शुरु कर दी हैं.

इनकी आपबीती सुनिए

1-आईएसबीटी के दुकानदार सुशील चौधरी ने बताया कि आईएसबीटी दुकान बंद होने के कारण परिवार की आजीविका का संकट खड़ा हो गया था। ऐसे में मजबूर होकर सेलाकुई किसी कंपनी में मजदूरी कर परिवार का खर्चा चलाना पड़ रहा है।

2-पीएस अरोड़ा ने बताया कि आईएसबीटी में दो दुकानें किराए पर ली थी। जिनका किराया 31 हजार प्रतिमाह था। लेकिन अब दुकान खाली करने मजबूर होना पड़ रहा है। किराए का संकट खड़ा हो गया है।

::बॉक्स::

खड़ी-खड़ी जंक खा रही कई बसें

हालांकि आईएसबीटी में संचालन कर रही कंपनी की ओर से प्रॉपर सफाई के इंतजाम तो किए जा रहे हैं, लेकिन बारिश के कारण हर तरफ जलभराव की स्थिति बनी हुई है। कई बसें खड़े-खड़े जंग खा रही हैं।

::प्वाइंटर्स::

-हर माह होती थी करीब 75 लाख की कमाई।

-30 दुकानों से आता था करीब एक लाख किराया।

-75 छोटी दुकानों से मिलता था 70 हजार रुपये किराया।

-एक ऑफिस से किराया मिलता था 40 हजार रुपये।

-पार्किंग से होती थी कमाई 50 हजार रुपये तक

-एडवरटाइजमेंट से होती थी कमाई 5 लाख तक।

-मॉल का किराए होती थी 40 लाख तक की कमाई।

-बिग बाजार से किराया 14 लाख रुपये तक।

कंपनी के खर्चे

-सैलरी 17 लाख

-बिजली का बिल 2.50 लाख

-एमडीडीए की हर माह देनदारी 2 लाख

-नगर निगम का टैक्स करीब एक लाख हर माह।

अगर सरकार की ओर से रियायत दी जाती है तो कंपनी भी दुकानदारों के किराए पर विचार करेगी। हमारी ओर से कोशिश है कि किसी को नुकसान न हो।

मेजर वीरेंद्र नेगी, जीएम, रैमके कंपनी।