- जरूरत का एक तिहाई बजट भी नहीं मिलता जंगलों की आग बुझाने की लिए

- 110 करोड़ रुपये का फायर प्लान, केवल 30 करोड़ मिलने की उम्मीद

देहरादून

जंगलों में आग लगने का सिलसिला थम नहीं रहा है। पिछले 24 घंटों के दौरान एक बार फिर राज्यभर में जंगलों में आग की 150 से ज्यादा घटनाएं दर्ज की गई हैं। हालांकि बुधवार को राज्य के कुछ हिस्सों में हल्की बारिश हुई थी। इसके बाद भी आग लगने की घटनाओं में कमी नहीं आई है। ऐसे समय में जबकि आग लगने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं, वन विभाग को आग बुझाने के लिए कोई बजट नहीं मिल पाया है। विभाग में कर्मचारियों की भी भारी कमी बनी हुई है।

8 अप्रैल की घटनाएं

सुबह शाम

इंसिडेंट 1508 1565

एरिया 2031 हे। 2128 हे।

लॉस रु 53.31 लाख रु। 57.31लाख

एक तिहाई बजट भी नहीं

जंगलों को आग से बचाने के लिए वन विभाग को जरूरत से एक तिहाई अमाउंट भी राज्य सरकार से उपलब्ध नहीं हो पाती। वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार इस वर्ष 110 करोड़ रुपये की फायर प्लान राज्य सरकार को भेजा गया था। राज्य सरकार ने 20 हजार करोड़ रुपये देने की मंजूरी दी है, जबकि कैंपा से 10 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है। केंद्र सरकार से 1 करोड़ रुपये मंजूर हुए हैं। हालांकि अभी तक कहीं से कोई अमाउंट नहीं मिली है। कुल मिलाकर वन विभाग में 31 करोड़ रुपये की पूरी व्यवस्था करनी है।

कर्मचारियों की भी कमी

वन विभाग के पास आग बुझाने के लिए कर्मचारियों की भी भारी कमी है। अधिकारियों के अनुसार फॉरेस्ट गार्ड के कुल मंजूरशुदा पदों में से करीब 1000 पद खाली पड़े हुए हैं। वनों की आग को लेकर वेडनसडे को हाई कोर्ट में हुई बहस में भी फॉरेस्ट गार्ड की कमी का मुद्दा उठा था। हाई कोर्ट ने जल्द से जल्द खाली पद भरने का आदेश दिया है।

नहीं हुई वन प्रहरियों की नियुक्ति

पिछले दिनों सीएम तीरथ सिंह रावत ने फॉरेस्ट फायर को देखते हुए राज्य में 10 हजार वन प्रहरियों की नियुक्ति करने की घोषणा की थी। उन्होंने यह भी कहा कि इनमें 5 हजार महिलाएं होंगी। लेकिन, इन दिनों जबकि फॉरेस्ट फायर की घटनाएं पीक पर हैं, एक भी वन प्रहरी की नियुक्ति नहीं हो पाई है।

इक्विपमेंट भी कम

वन विभाग के पास आग बुझाने के लिए इंक्विपमेंट भी भारी कमी है। फॉरेस्ट गार्ड में आग बुझाने और अपनी सुरक्षा करने के लिए कोई भी उपकरण उपलब्ध नहीं करवाया गया है। ऐसे में वे छोटी आग को झाडि़यों आदि का इस्तेमाल करके बुझा देते हैं, लेकिन बड़ी आग पर काबू पाना उनके लिए संभाव नहीं हो पाता।

ये उपकरण हैं विभाग के पास

- फायर फाइंडर दूरबीन

- ब्रश हुक

- मक्लायड

- पुलास्की

- साबल

- फायररॅक्स

- डबल कीटेक्स

- वाटर बॉटल

- फेस मास्क

- हेलमेट

- टॉर्च

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बिना आम जनता की भागीदारी के जंगलों की आग बुझाना संभव नहीं है। 1980 से उत्तराखंड में जंगलों पर लोगों के हक-हकूक बंद हैं। लोगों का लकड़ी और घास तक वनों से नहीं मिलती। पहाड़ के लोगों का वनों से जो अपनत्व होता था, वह खत्म हो गया है। चीड़ को धीरे-धीरे खत्म करना भी जरूरी है।

पदमश्री कल्याण सिंह रावत मैती

पर्यावरणविद्

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ज्यादातर मामलों में लोग खुद आग लगाते हैं। उनकी मजबूरी है। पिरुल के कारण घास नहीं होगी तो पशुपालन कठिन हो जाएगा। स्थानीय लोगों की मदद से हर साल गर्मियां आने से पहले पिरुल इकट्ठा की जाए। इससे स्थानीय लोगों को कुछ पैसा भी मिलेगा और चीड़ के जंगलों में घास भी होगी। चीड़ को पूरी तरह खत्म करना संभव नहीं।

राजेन्द्र महाजन, पूर्व वन प्रमुख

उत्तराखंड

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इस बार 110 करोड़ रुपये का फायर प्लान सरकार को भेजा था। अभी कोई पैसा नहीं मिला है। पिछले वर्ष 19 करोड़ रुपये राज्य सरकार ने और 2 करोड़ रुपये केंद्र सरकार ने दिया था। 10 करोड़ कैंपा से मिले थे। इस बार भी इससे ज्यादा उम्मीद नहीं है।

मान सिंह, नोडल ऑफिसर

फॉरेस्ट फायर, वन विभाग