देहरादून (ब्यूरो)। इस कार्यक्रम अलग-अगल क्षेत्रों से जुड़े 6 सफाई कर्मचारियों ने हिस्सा लिया। इनमें मसूरी नगर पालिका के संविदा सफाई कर्मी बिश्वनाथ साहनी, सेप्टिक टैंक की सफाई करने वाले नन्हें शर्मा, सार्वजनिक शौचालय का काम देखने वाले गोविन्द, कचरा बीनने वाली रेखा साहनी और सुनीता के साथ ही सरकारी दफ्तर में संविदा पर सफाई कर्मचारी का काम करने वाले सुन्दर शामिल हुए।

पूछे गए कई सवाल
इन सभी कर्मचारियों से कार्यक्रम में उनकी कार्यप्रणाली, सफाई संबंधी कामों के अनुभव, समाज में उनकी स्थिति, सरकारी योजनाओं का लाभ, आय के साथ ही उनकी निजी जिंदगी से जुड़े कई सवाल पूछे गये है। कार्यक्रम में मुख्य रूप से यह बात सामने आई कि कोई और काम करने में इन लोगों की जाति आड़े आ रही थी, जबकि सफाई करने, कचरा बीनने, सेप्टिक टैंक साफ करने जैसे काम उन्हें आसानी से मिले। इन सफाई कार्यकर्ताओं ने माना कि वे शहर के लिए बेहद महत्वपूर्ण काम करते हैं, लेकिन इस बात पर निराशा जताई कि समाज में उन्हें बार-बार अपमानित होना पड़ता है। वे कहते हैं कि हम लोगों को गंदगी साफ करते हैं, इसका यह मतलब नहीं कि उन्होंने अपना आत्मसम्मान गिरवी रख दिया है। सभी ने अपने साथ हुई अपमानजक घटनाओं के किस्से भी सुनाए।

ज्यादातर लोग बाहर के
कार्यक्रम में एक खास बात यह भी सामने आई कि देहरादून में सफाई करने वाले ज्यादातर लोग बाहर के हैं। बिहार और यूपी जैसे राज्यों से वे कुछ करने के सपने लेकर आये थे, लेकिन जातिगत समस्या और अन्य तमाम परिस्थितियों के कारण उन्हें सफाई का काम शुरू करना पड़ा। इनमें से ज्यादातर सफाई कर्मचारी किराये के घरों में रहते हैं या फिर झोपडिय़ों में। प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना में आवेदन ज्यादातर ने किया था, लेकिन आवेदन मंजूर नहीं हुआ। अन्य सरकारी योजनाओं का भी उन्हें लाभ नहीं मिल पाता।