- मामले में 29 जून से लगातार हुई सुनवाई

NAINITAL: हाईकोर्ट ने चार धाम देवस्थानम अधिनियम को निरस्त करने के लिए दायर जनहित याचिका पर सुनवाई पूरी कर सोमवार को निर्णय सुरक्षित रख लिया। मामले में 29 जून से लगातार सुनवाई हो रही थी।

हाईकोर्ट में सुनवाई हुई पूरी

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ में सुब्रमण्यम स्वामी की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के अनुसार अधिनियम संविधान का उल्लंघन करने के साथ ही जनभावनाओं के भी विरुद्ध है। इसमें मुख्यमंत्री को भी शामिल किया है जबकि सीएम का काम सरकार चलाना है। मंदिर के प्रबंधन के लिए पहले से ही मंदिर समिति का गठन किया हुआ है। इससे पहले राज्य सरकार की ओर से दाखिल जवाब में कहा गया कि यह अधिनियम संवैधानिक है। इसे पारदर्शिता के साथ बनाया है। मंदिर में चढ़ावे का पूरा रिकॉर्ड रखा जा रहा है, इसलिए याचिका निराधार है। इसे निरस्त किया जाय। वहीं, रुरल लिटिगेशन एंड इनटाइटलमेंट (रुलक) संस्था के अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता ने बहस करते हुए कोर्ट में मनु स्मृति पेश की। अध्याय सात में कहा गया कि राजा खुद सर्वोपरी है। वह अपना दायित्व किसी को भी सौंप सकता है। उन्होंने एटकिंसन का गजेटियर भी पेश किया, जिसमें कहा गया कि बद्रीनाथ मंदिर में भ्रष्टाचार है, इसलिए वहां एडमिनिस्ट्रेशन की जरूरत है। संस्था ने मदन मोहन मालवीय की ओर से 1933 में लोगों से की गयी अपील भी कोर्ट में पेश की। इसके बाद सेक्युलर मैनेजमेंट और रिलीज एक्ट 1939 में लाया गया, जिसमें सेक्युलर मैनेजमेंट ऑफ टैंपल राज्य को दिया गया था, जबकि धार्मिक प्रबंधन पुरोहित को दिया गया है। संस्था ने अयोध्या मंदिर का निर्णय भी कोर्ट में पेश किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि गजेटियरों को भी साक्ष्य के रूप में माना जा सकता है। नया एक्ट राज्य सरकार की ओर से लाया गया है। इसमें कही भी हिन्दू धर्म की भावनाएं आहत नहीं होतीं। सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया।