दिलचस्प है महात्मा बनने की कहानी

विलायत से शिक्षा लेकर जब मोहनदास भारत लौटे तो उन्होंने पूरे भारत वर्ष के भ्रमण का कार्यक्रम बनाया। इसी दौरान अप्रैल 1915 में बापू पहली बार हरिद्वार आए। यहां उन्होंने गुरुकुल के संस्थापक महात्मा मुंशीराम से मुलाकात की। महात्मा मुंशीराम कालांतर में स्वामी श्रद्धानंद के नाम से जाने गए। 8 अप्रैल को गुरुकुल के ब्रह्मचारियों ने बापू को एक अभिनंदन पत्र सौंपा। इस दौरान वहां एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इसी कार्यक्रम के दौरान किसी सार्वजनिक मंच से मोहनदास कर्मचंद गांधी को पहली बार 'महात्माÓ कह कर पुकारा गया था। इसके बाद से ही यह शब्द गांधी जी के नाम से अटूट बंधन में बंध गया।

महाकुंभ में आए थे हरिद्वार

गांधी एंड उत्तराखंड जैसे इपॉर्टेंट प्रोजेक्ट को पूरा कर चुके देहरादून के वरिष्ठ इतिहासकार मनोज पंजानी बातते हैं कि जब गांधी जी विलायत से भारत पहुंचे और अपने आंदोलन की रणनीति बनाई तो उनके सहयोगी चार्ली एंड्रयू ने उन्हें सलाह दी कि भारत की तीन महान विभूतियों से मिले बिना आप अपने आंदोलन को मूर्त रूप नहीं दे सकते। ये तीन शख्स थे रविंद्र नाथ टैगोर, गुरुकुल कांगड़ी के संस्थापक मुंशीराम और सेंट स्टीफेंस कॉलेज के प्रिंसिपल एसके रोद्रा। इसी बीच 1915 में हरिद्वार में महाकुंभ लगा था और गांधी जी वहां आए थे। गांधी जी ने अपनी डायरी में भी लिखा था कि हरिद्वार आने का एक और बड़ा उद्देश्य मुंशीराम से भेंट करना था। कालांतर में यह भेंट इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गया। महात्मा नाम पहली बार इसी मुलाकात की देन थी। बाद में रविंद्र नाथ टैगोर ने महात्मा की मानद उपाधी देकर गांधी जी को सम्मानित किया।

गुरुकुल ने दी प्रेरणा

इतिहासकार मनोज पंजानी बताते हैं गुरुकुल कांगड़ी ने महात्मा गांधी को भारत में राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था लागू करने की प्रेरणा दी। सरकारी शिक्षा से आगे बढ़कर राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था के कांसेप्ट पर ही गुजरात विद्यापीठ और काशी विद्यापीठ जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों की नींव पड़ी। दिल्ली का जामिया-मिलिया विश्वविद्यालय भी इसी प्रेरणा की देन थी।