- आज के ही दिन 26 वर्ष पहले 1994 में घटित हुआ था मुजफ्फरनगर कांड

- शहीदों को श्रद्धासुमन के साथ आंदोलनकारियों का धिक्कार दिवस आज

देहरादून,

2 अक्टूबर 1994 को वह काला दिन, शायद ही कोई भूल पाए। पृथक राज्य की मांग को लेकर उत्तराखंड से दिल्ली कूच के दौरान मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे में राज्य आंदोलनकारियों पर हुई बर्बरता व अमानवीयता को शर्मसार करने वाली घटना को आज 26 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इस दिन को याद कर हर किसी का दिल सिहर उठता है। यही वह दिन है, जब गांधी जयंती के मौके पर निहत्थे आंदोलनकारियों पर तत्कालीन यूपी सरकार में मानवीयता की हदें पार कर दी थी। लेकिन इस सबके बावजूद आज भी राज्य आंदोलनकारी की टीस अधूरी है। ढाई दशक से अधिक वक्त गुजर जाने, अलग राज्य बन जाने और कई सरकारें सत्ता काबिज हो चुकी हैं। लेकिन मुजफ्फरनगर कांड दोषियों को सजा नहीं मिल पाई। इतने लंबे समयांतराल में राज्य आंदोलनकारियों ने सुप्रीमकोर्ट तक का दरवाजा खटखटा दिया है। फिलहाल, राज्य आंदोलनकारी मायूस हैं। आज आंदोलनकारियों ने शहीद स्थल पर धिक्कार दिवस मनाने का फैसला लिया है।

दिल्ली कूच के दौरान पुलिस ने दिखाई बर्बरता

आज से 26 वर्ष पहले नब्बे के दशक में वर्ष 1994 में पृथक उत्तराखंड राज्य का आंदोलन जारी उफान पर था। इसी दौरान एक अक्टूबर 1994 की रात उत्तराखंड के हजारों लोगों ने दिल्ली कूच का फैसला लिया। आधी रात में जब राज्य आंदोलनकारियों की बसें रुड़की से आगे पहुंची, मौजूद पुलिस फोर्स ने बेरिकेडिंग लगाकर आंदोलनकारियों को रोक दिया। इसी बीच अचानक आगजनी और पथराव का दौर शुरू हो गया। सत्ताधारी दल के समर्थकों ने दुश्मनों की तर्ज पर आंदोलनकारियों को खूब दौड़ाया। निहत्थे आंदोलनकारियों ने विरोध भी किया। लेकिन तत्कालीन यूपी की तत्कालीन सरकार ने पुलिस बल का प्रयोग करते हुए आंदोलनकारियों को हर तरह से रोकने का प्रयास किया। फिर क्या था, मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर वो तांडव हुआ, शायद बयां करने लायक न हो। जान बचाने के लिए महिलाएं गन्ने की खेतों की तरफ निकले। लेकिन महिलाओं तक को नहीं छोड़। उनके साथ दुष्कर्म तक की घटनाएं हुई। राज्य आंदोलनकारियों की मानें तो अब तक इस घटना में 6 आंदोलनकारियों को अपनी जान गंवानी पड़ी। कई आज तक लापता हैं। इस भीभत्स घटना के बाद तो पूरे प्रदेश में आंदोलन में आग में घी डालना जैसा हो गया।

राज्य आंदोलनकारियों टीस आज भी नहीं बुझी

इस घटना के बाद वर्ष 1995 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने मुजफ्फरनगर कांड की जांच शुरू की। 28 पुलिस कर्मियों पर दुष्कर्म, लूट, महिलाओं से बदसलूकी व हिंसा भड़काने के केस दर्ज हुए। राज्य गठन के बाद वर्ष 2003 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह को नामजद किया। वहीं निर्दोष जनता पर गोली चलाने का दोषी मानते हुए तीन पुलिस कर्मियों को सजा सुनाई गई। 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। राज्य आंदोलनकारियों के सपने आज पर अधूरे हैं। उम्मीद थी कि मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को सजा मिलेगी। लेकिन यहां भी मायूसी हाथ लगी। राज्य आंदोलनकारियों ने सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया। 20 सालों के सफर में सरकारों के दरबारों तक दस्तक दी। लेकिन कुछ नहीं हुआ। इसको लेकर अब आंदोलनकारियों ने मुजफ्फरनगर कांड की बरसी को धिक्कार दिवस मनाने का फैसला लिया है।

आंदोलनकारियों के सवाल।

-दोषियों को सजा क्यों नहीं मिली।

-10 परसेंट क्षैतिज आरक्षण क्यों नहीं।

-आंदोनलकारियों का चिन्हीकरण बंद क्यों।

-पलायन, पर्यटन और रोजगार की ठोस नीति क्यों नहीं