इंजीनियर बनेंगे 'मिल्खा सिंह'

- खेलों को बढ़ावा देंगे तकनीकि संस्थान

- एआईसीटीई ने संस्थानों को भेजे निर्देश

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DEHRADUN: तकनीकि संस्थानों में सिर्फ इंजीनियर ही नहीं बल्कि बेहतरीन खिलाड़ी भी तैयार किए जाएंगे। खेलों को बढ़ावा मिले इस मकसद से ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) ने संस्थानों को स्टूडेंट्स के बीच खेल भावना जगाने के लिए आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिए हैं।

प्रतिभाओं को तराशने का होगा काम

स्कूल लेवल पर खेलों के प्रति जागरूकता तो है, लेकिन बजट का भारी टोटा रहता है। यही कारण है कि स्कूलों में बच्चों की खेल प्रतिभा कुछ खास निखरकर नहीं आती है। उत्तराखंड की बात करें तो यहां के सरकारी स्कूलों में तो खेल के लिए बजट न के बराबर है। लेकिन अब स्कूल भले ही स्टूडेंट्स के स्पो‌र्ट्स स्किल्स न निखार पाएं। लेकिन हायर एजुकेशन में उनकी प्रतिभा को तराशने का काम किया जाएगा।

खेल के प्रति करना है जागरूक

एआईसीटीई ने देशभर के संस्थानों को खेल के प्रति सकारात्मक रुख रखने को कहा है। काउंसिल ने सभी तकनीकि संस्थानों को इसके लिए ज्यादा से ज्यादा खेल प्रतियोगिताएं और गतिविधियां आयोजित करने के निर्देश दिए हैं। ताकि स्टूडेंट्स के खेलों के हुनर को भी निखारा जा सके। काउंसिल का मानना है कि स्टूडेंट्स को पढ़ाई के साथ ही खेल को लेकर भी जागरूक करने की जरूरत है ताकि उनके भीतर छिपी प्रतिभाओं को बाहर लाया सके।

एकेडमिक समय से अलग आयोजित करें गतिविधियां

काउंसिल ने संस्थानों को खेल गतिविधियों के लिए अलग से समय निर्धारित करने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा संस्थानों को खेल को लेकर तमाम संसाधन और सुविधाएं भी जुटानी होंगी, ताकि स्टूडेंट्स को उसकी रुचि से जुड़े खेल के लिए पर्याप्त साधन मुहैया कराए जा सकें।

सरकारी स्कूलों में सुविधाओं का टोटा

एथलेटिक्स में मनीष रावत, रविंद्र रौतेला, पंकज डिमरी, आईपीएल क्रिकेट टीम के जाने माने सितारे पवन नेगी, उनमुक्त चंद, पवन सुयाल, इंडियन क्रिकेट टीम में जगह बनाने वाले मनीष पांडे, बॉक्सिंग में स्टेट का नाम रोशन करने वाली कमला बिष्ट, बॉडी बिल्डिंग में अमित क्षेत्री यह वह नाम है जिन्हें नेशनल इंटरनेशनल लेवल पर किसी परिचय की जरूरत नहीं। लेकिन, खेल के मैदान पर अपना जादू चलाने वाले इन खिलाडि़यों से प्रेरणा लेने वाले स्टेट के युवाओं के लिए सरकार खाली हाथ है। आंकड़ों पर गौर करें तो उत्तराखंड सरकार महज भ् रुपए में खिलाड़ी तैयार करने का हुनर रखती है। स्टेट में ब्लॉक स्तर पर होने वाली स्पो‌र्ट्स एक्टिविटीज के लिए महज भ्,7ब्ख् रुपए दिए जाते हैं। जबकि इन एक्टिविटीज में क्,000 से भी ज्यादा खिलाड़ी भाग लेते है। इस हिसाब से हर खिलाड़ी के हिस्से में केवल दस रुपए ही आते है। दूसरी ओर तकनीकि संस्थान सुविधाओं और संसाधनों के मामले में पहले से ही संपन्न होते हैं। ऐसे में तकनीकि संस्थानों में खेल के प्रति जागरूकता खिलाड़ी स्टूडेंट्स के लिए काफी मददगार साबित होगी।

स्कूल में खेल के नाम पर जीरो बजट

बेसिक लेवल के स्कूलों की बात करें तो यहां खेल के नाम पर कोई बजट नहीं रहता। यहां फीस में भी खेल मद में कोई पैसा नही लिया जाता। उस पर आरटीई के कानून की बेडि़यों ने हाल और भी बुरा कर दिया। अब हालात यह है कि चाह कर भी स्कूल्स खेल व्यवस्था को सुधारने के लिए कुछ नहीं कर सकते। इन हालातों में कुछ खेल प्रेमी टीचर्स अपनी जेब खर्च से कुछ सहयोग दे देते है।

वर्जन----

काउंसिल ने मानना है कि खेल को बढ़ावा देने से एमएचआरडी के उन्नत भारत अभियान को भी बढ़ावा मिलेगा। स्टूडेंट्स को खेलों के प्रति जागरूक करने से उनका शारीरिक और मनसिक विकास भी होगा। यह एक अच्छी पहल है।

--- प्रो। पीके गर्ग, वाइस चांसलर, उत्तराखंड टेक्निकल यूनिवर्सिटी

सरकारी स्कूलों में स्थिति खराब

भ्,7ब्ख् रुपए मिलते हैं स्टेट में ब्लॉक स्तर पर होने वाली स्पो‌र्ट्स एक्टिविटीज के लिए।

क्,000 से भी ज्यादा खिलाड़ी भाग लेते हैं इन एक्टिविटीज में।

क्0 रुपए हर खिलाड़ी के हिस्से में आते हैं इस हिसाब से।