देहरादून (ब्यूरो) दुनियाभर में वल्चर की संख्या संकट में हैं। जानकार बताते हैं कि समय रहते इनकी गिरती संख्या पर नियंत्रण न पाया जा सके, तो विलुप्त प्रजाति में शामिल हो जाएगा। जबकि, नेचर में गिद्ध एक खास स्थान रखता है। जिसको नेचर का सफाई कर्मी भी कहा जाता है। खास बात ये है कि मरे हुए जानवरों को भोजन के रूप में इस्तेमाल करने वाले वल्चर बीमारी फैलने तक से रोकते हैं। जाहिर है कि उत्तराखंड में राजाजी टाइगर रिजर्व व कार्बेट टाइगर रिजर्व वल्चर के लिए खास स्थल माना जात है।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ का सहयोग
वल्चर की गिरती संख्या को देखते हुए डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के सहयोग से पार्क प्रशासन ने संस्थाओं के माध्यम से साइंटिफिक स्टडी शुरू कर दी है। जिसके तहत इन वल्चर पर सेटेलाइट टैग लगाए जा रहे हैं। बाकायदा, इसके लिए केंद्र सरकार से भी परमिशन ली गई है। जिसके तहत 5 बड्र्स स्पेसीज पर सेटेलाइट टैग लगाए जा सकेंगे। बताया गया है कि इस स्टडी के माध्यम से इन शिकारी पक्षियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले क्षेत्रों व प्रयोग किए जाने वाले संसाधनों के बारे में जानकारियां एकत्रित की जाएंगी। जिसका उपयोग उनके बेहतर मैनेजमेंट के लिए किया जा सकेगा।

पार्क के इतिहास में पहली बार प्रयास
राजाजी टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर डॉ। साकेत बडोला के अनुसार राजाजी टाइगर रिजर्व के इतिहास में पहली बार रेड हैडेड वल्चर को पकड़कर सेटेलाइट टैग लगाया गया। इससे पहले पक्षी का चेकअप किया गया। सैंपल लिए गए। उसके बाद टैगिंग की गई और आखिर में टाइगर रिजर्व के चीला रेंज में सुरक्षित छोड़ा गया। इस दौरान चीला वन्यजीव हॉस्पिटल के पशुचिकित्सा अधिकारी डॉ। राकेश कुमार नौटियाल, वन क्षेत्राधिकारी चीला रेंज विजेंद्र दत्त तिवारी, मेघपाल सिंह, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के डॉ। जी अरिन्द्रन, डॉ। अनिल कुमार सिंह श्रिंगारपुरे, सन्नी जोशी, डॉ। नित्लुपाल माहन्ता आदि मौजूद रहे।

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