रिस्पना से ऋषिपर्णा

- पीएम के मन की बात में भी उठ चुका रिस्पना का मुद्दा

- स्रोत से ही नदी का पानी जा रहा अंडरग्राउंड नहर में

देहरादून,

राज्य सरकार की करीब तीन वर्षो की कवायद के बावजूद रिस्पना नदी को ऋषिपर्णा बनाने का मिशन इंच भर भी आगे नहीं बढ़ पाया है। जिला प्रशासन का कहना है कि नदी के कैचमेंट एरिया में काफी काम हो गया है और अब शहरी क्षेत्र में नदी को साफ करने का काम शुरू किया जाएगा। जिला प्रशासन ने विभिन्न विभागों से इसके लिए कार्य योजना बनाने को कहा है। लेकिन, जानकारों को कहना है रिस्पना का सारा का सारा पानी इसके स्रोत से ही नहर में डाला जा रहा है और बचा हुआ पानी पेयजल योजना के तहत लिया जा रहा है। ऐसे में रिस्पना का साफ हो पानी किसी भी हाल में संभव नहीं है।

क्या है मिशन रिस्पना

मिशन रिस्पना की योजना राज्य सरकार के निर्देश पर 2017 में बनाई गई थी। इस मिशन में रिस्पना से ऋषिपर्णा नाम दिया गया था। योजना यह बनाई गई थी कि देहरादून जिले में रिस्पना के करीब 20 किमी लंबे बहाव क्षेत्र में मृत रिस्पना नदी को पुनर्जीवित किया जाएगा। मई 2018 में इस मिशन को जोर-शोर से शुरू किया गया और नदी के दोनों ओर वृक्षारोपण किया गया।

एक दिन में 2 लाख पौधे रोपने का दावा

20 मई 2018 में रिस्पना के किनारे एक ही दिन में 2 लाख पौधे रोपने का दावा किया गया। इसके लिए वन विभाग और ईको टास्क फोर्स को नोडल एजेंसी बनाया गया था। वृक्षारोपण के लिए कई दिन पहले से गड्ढे खोदे गये और लगभग सभी विभागों के साथ ही स्कूली बच्चों को भी वृक्षारोपण के लिए बुलाया गया। वृक्षारोपण नदी के कैचमेंट एरिया से लेकर मोथरावाला तक किया गया था।

नहीं निकला रिजल्ट

करीब ढाई साल के बाद भी इसका कोई रिजल्ट नहीं निकल पाया है। जिला प्रशासन एक बार फिर से सभी विभागों से रिस्पना पुनर्जीवन के लिए कार्य योजना बनाने के लिए कह रहा है, लेकिन पिछली बार भी इस तरह की कार्ययोजना बनी थी, उसका क्या हुआ इस पर कोई चर्चा नहीं हो रही है।

जनभागीदारी की जरूरत

एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल का कहना है कि इसमें संदेह नहीं कि सरकार और प्रशासन ने रिस्पना पुनर्जीवन के लिए प्रयास किये हैं, लेकिन सवाल ये है कि नतीजे क्या निकले। दरअसल इस मिशन में जनभागीदारी का अभाव रहा है। आज भी रिस्पना को लेकर जो बैठकें होती हैं, वे सिर्फ सरकारी बैठकें होती हैं। शुरुआती दौर में लगा था कि इसमें महत्वपूर्ण जनभागीदारी होगी, लेकिन बाद भी यह मिशन सरकारी कार्यक्रम बन गया।

नदी का पानी वापस मिले

स्पेक्स संस्था के डॉ। बृजमोहन शर्मा का कहना है मिशन रिस्पना एक क्रांतिकारी मिशन साबित हो सकता है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि बिना पानी के नदी कैसी होगी। रिस्पना का कुछ पानी स्रोत से ही नहर में डाला जा रहा है जो नहर पूरे शहर में अंडरग्राउंड है। बाकी पानी पेयजल योजना में इस्तेमाल किया जा रहा है। नियमानुसार किसी भी नदी को ज्यादा से ज्यादा 60 परसेंट पानी लिया जा सकता है। लेकिन रिस्पना ऐसी नदी है, जिसका 100 परसेंट पानी लिया जा रहा है।

बिन पानी ऋषिपर्णा सिर्फ सपना

लेखक और पत्रकार जयसिंह रावत का कहना है कि रिस्पना तो उसी दिन मर गई थी, जिस दिन रानी कर्णावती ने राजपुर नहर बनाई थी। जो बाकी पानी था, वह भी निकाल लिया। अब तो रिस्पना में केवल घरों से निकला मलमूत्र है। वास्तव में रिस्पना को पुनर्जीवित करना है तो राजपुर नहर बंद करनी होगी। हाल के दिनों में सौंग नदी पर बांध बनाकर उसका पानी लाने की बात हो रही है, लेकिन वह भी बारहमासी नदी नहीं है। रिस्पना को लेकर केवल हवाई बातें हो रही हैं। इस पर गंभीरता से बात होनी चाहिए।