- जर्जर हालत के बावजूद रोडवेज ड्राइवर कर रहे सेफ ड्राइविंग

- बसों के टायर रबड़ चढ़े, मीटर बॉक्स टूटा, बॉडी भी खस्ताहाल

- जून के बाद सैलरी तक नहीं मिली ड्राइवर कंडक्टर्स को

देहरादून,

रोडवेज बसों की हालत जर्जर हो चुकी है, टूट चुके पा‌र्ट्स वेल्डिंग करके जोड़े गये हैं, टायर रबड़ृ चढ़ाकर इस्तेमाल किये जा रहे हैं, सीटों की हालत बुरी है और ड्राइवर-कंडक्टर्स की सैलरी जून के बाद अब तक नहीं मिली है। इस सबके बावजूद उत्तराखंड रोडवेज में सुरक्षित बस संचालन के लिए पुरस्कार मिला है। ऐसा ड्राइवर्स की कुशलता और कर्तव्यनिष्ठा से ही संभव हो पाया है।

रोडवेज बसों का रियलिटी चेक

दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने रोडवेज को मिले अवॉर्ड के बाद ट्यूजडे को आईएसबीटी जाकर बसों का रियलिटी चेक किया तो पाया कि लंबे रूट्स पर ज्यादातर ऐसी बसें चलाई जा रही हैं, जो तय सीमा से ज्यादा का सफर पूरा कर चुकी हैं। ये बसें बेहद जर्जर हालत में हैं। बताया गया कि कई बार ये बसें रास्ते में खराब हो जाती हैं। ऐसे में पैसेंजर्स को किसी दूसरी बस में बिठाने की व्यवस्था करनी पड़ती है या फिर उनके पैसे लौटाकर बीच रास्ते में उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है।

9 लाख किमी चल चुकी बस

देहरादून से चलने वाली बसों में कानपुर जाने वाली बस का रूट सबसे लंबा है, लेकिन इस रूट में सबसे पुरानी बसें चलाई जा रही हैं। ट्यूजडे दोपहर जो बस इस रूट पर रवाना हुई बताया गया कि वह अब तक 9 लाख किमी की दूरी तय कर चुकी है और बेहद जर्जर हालत में है। आमतौर पर 5 लाख किमी से चल चुकने के बाद बसों को लंबे रूट में नहीं भेजा जाता, जबकि 750 किमी के बाद बसें बेड़े से हटा दी जानी चाहिए।

टायरों पर चढ़ी है रबड़

रोडवेज की ज्यादातर बसों के पिछले टायर पुराने हैं और ज्यादा घिस जाने के कारण उन्हें रबड़ चढ़ाकर चलने लायक बनाया गया है। कई बसों का सामने वाला हिस्सा टूट जाने के कारण वेल्डिंग करके कामचलाऊ बनाया गया है। कई बसों की सीटें भी टूटी फूटी हुई हैं। मीटर बोर्ड टूट-फूट गये हैं और मीटर प्रॉपर काम नहीं कर रहे हैं।

फायर एक्सिटिंग्विशर रिफिल नहीं

बसों में फायर एक्सटिंग्विशर तो रखे हैं लेकिन वे कभी रिफिल नहीं किये जाते। पैरामीटर्स के अनुसार इन्हें समय-समय पर नये सिरे से रिफिल किया जाना चाहिए और इन पर रिफिल और एक्सपायरी डेट लिखी जानी चाहिए। लेकिन बसों में लगे एक्सिटिंग्विशर पर कभी ध्यान नहीं दिया जाता। बताया गए कि कई साल चलने के बावजूद एक बार भी इन्हें रिफिल नहीं करवाया गया।

खाली फ‌र्स्ट एड बॉक्स

बसों में कहने को तो फ‌र्स्ट एड बॉक्स भी लगे हैं, लेकिन खोलने पर पता चला कि ये पूरी तरह से खाली हैं। नियमानुसार फ‌र्स्ट एड बॉक्स में जरूरी दवाइयां और मरहम पट्टी का सामान अनिवार्य रूप से रखा होना चाहिए।

जुगाड़ की व्यवस्थाएं

ज्यादातर पुरानी बसों में ड्राइवर्स ने जुगाड़ की व्यवस्था की हुई है। डेश बोर्ड, हॉर्न, ज्यादा बीम वाली लाइट जैसी ज्यादातर चीजें ड्राइवर्स ने जुगाड़ करके तैयार की हैं। बताया गया कि यदि बस का शीशा आदि टूट जाता है कि इसके लिए भी कोई पैसा नहीं दिया जाता। ड्राइवर और कंडक्टर अपनी जेब से पैसा खर्च करके शीशा लगवाते हैं।

जून से सैलरी नहीं मिली

इन सब अव्यवस्थाओं के साथ ही ड्राइवर्स और कंडक्टर्स को सैलरी न मिलने के कारण पैदा होने वाली निजी परिस्थितियों से भी दो-चार होना पड़ रहा है। बताया गया कि जून के बाद से अब तक ड्राइवर्स और कंडटर्स की सैलरी नहीं दी गई है। इससे उन्हें आर्थिक परेशानियों का भी सामना करना पड़ रहा है। घर का खर्च चलाने के अलावा उन्हें बसों में रास्ते में आने वाली छोटी-मोटी दिक्कतों को ठीक करवाने के लिए भी पैसे की व्यवस्था रखनी होती है।

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हमारे पास कोई पुरानी बस नहीं है। लंबे रूटों में चलने वाली बसें सिर्फ साढ़े तीन साल पुरानी हैं। कई बसों का तो अभी लोन भी चुकता नहीं किया गया है। बसों को वर्कशॉप के अच्छी तरह चेक करके ही रूट पर रवाना किया जाता है।

दीपक जैन, जीएम

उत्तराखंड रोडवेज