- स्टूडेंट वेलफेयर फंड में युनिवर्सिटी का खेल

- मैड संस्था ने आरटीआई के तहत मांगी इंफॉर्मेशन

DEHRADUN : एक तो कुदरत का कहर, ऊपर से यूनिवर्सिटी की मार। कुछ ऐसा ही हो रहा है उन बेसहारा स्टूडेंट्स के साथ जिनके सर से ऊपर वाले ने भरण-पोषण करने वाले मां-बाप का साया छीन लिया। ऐसे स्टूडेंट्स के लिए बनाए गए स्टूडेंट वेलफेयर फंड में युनिवर्सिटी लेवल पर हो रहे खेल के कारण इसका लाभ भी इन स्टूडेंट्स को नहीं मिल पा रहा है। मैड नामक संस्था ने इस मामले में आरटीआई के तहत जानकारी प्राप्त कर ये खुलासा किया कि क्ख्भ् पीडि़त स्टूडेंट्स को लेकर युनिवर्सिटी का रवैया गैरजिम्मेदाराना है।

आरटीआई में हुआ खुलासा

मेकिंग ए डिफरेंस बाई बीईग द डिफरेंस नाम की संस्था ने आरटीआई के तहत स्टेट की उत्तराखंड टेक्निकल युनिवर्सिटी में हो रहे गड़बड़ झाले का खुलासा किया है। संस्था के फाउंडर अभिजय नेगी ने युनिवर्सिटी पर स्टूडेंट्स के हितों के हनन का आरोप लगाया है। उन्होंने बताया कि उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय के बाद स्टेट गवर्नमेंट ने एक जीओ के जरिए मार्च ख्0क्0 में युनिवर्सिटी में छात्र कल्याण निधि की शुरुआत की थी। जीओ के मुताबिक यूटीयू से एफिलिएटेड सभी कॉलेजेज में स्ट्डीज कर रहे स्टूडेंट्स जिनके सर से माता या पिता का साया उठ गया हो और घर में कोई कमाई का साधन न हो, ऐसे स्टूडेंट्स को इस निधि का लाभ मिलना था। उस वक्त युनिवर्सिटी के वीसी प्रो। डीएस चौहान थे। जिन्होंने इस निधि को सुचारू रूप से चलाया। उनके कार्यकाल में ऐसे स्टूडेंट्स को लाभ भी दिया गया। जिसके तहत ऐसे स्टूडेंट्स की ट्यूशन फीस युनिवर्सिटी की निधि द्वारा जमा की जाती थी, लेकिन इसके बाद वीसी बदलने के बाद यह निधि बंद कर दी गई।

नाम मात्र की कमेटी

मैड संस्था के फाउंडर अभिजय नेगी ने बताया कि नए कुलपति प्रो। वीके जैन ने कार्यभार संभालते ही इस निधि के लिए एक कमेटी गठित की। जो ऐसे मामलों पर वीसी की उपस्थिति में अंतिम निर्णय लेती है, लेकिन इस कमेटी ने ख्0क्ख् के बाद से आज तक कोई बैठक ही नहीं ली। उन्होंने बताया कमेटी के पास ख्0क्ख् के समय के करीब क्ख्भ् मामले हैं, जिनमें से केवल ब्म् मामले पर उस वक्त ही निर्णय लिया गया था। तब से आज तक कोई निर्णय बाकी मामलों पर नहीं लिया गया।

युनिवर्सिटी ने जीओ को नकारा

आरटीआई में युनिवर्सिटी द्वारा दिए गए जवाब में एक अजब ही बात सामने आई है। यूटीयू ने म् फरवरी की एडवाइजरी कमेटी बैठक में जीओ को सिरे से नकारते हुए नए नियमों के प्रस्ताव रख दिए। जबकि किसी युनिवर्सिटी को जीओ में फेरबदल करने का अधिकार प्राप्त नहीं है। दूसरी ओर युनिवर्सिटी के एग्जाम कंट्रोलर और एडमिशन एडवाइजरी कमेटी के अध्यक्ष प्रो। आरके सिंह का कहना है कि युनिवर्सिटी में लगातार घटते एडमिशंस और आर्थिक संकट के चलते यह निधि में बदलाव किया जाने का प्रस्ताव रखा है। हालांकि यह रिकमंडेशंस ईसी और फाइनेंस कमेटी के फाइनल डिसीजन के बाद ही अमल में लाई जाएंगी। तब तक के लिए पुरानी व्यवस्था ही लागू है, लेकिन अगर पुरानी व्यवस्था लागू है तो पुराने आवेदनों को रोकने का मकसद भी युनिवर्सिटी अधिकारियों ने साफ नहीं किया।

इन बदलावों की है रिकमंडेशंस

- यूटीयू केवल भ्0 परसेंट ट्यूशन फीस माफ करेगा।

- यह भ्0 परसेंट फीस माफ तभी की जाएगी जब बाकी फीस को कॉलेज द्वारा वहन किया जाएगा।

- कॉलेज युनिवर्सिटी द्वारा एफिलिएटेड होना चाहिए।

- आर्थिक संकट के चलते यूटीयू आगे की निधि को रोकना।

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नए जीओ के लिए संकट गायब

यूटीयू का यह आर्थिक संकट तब गायब हो जाता है, जब आपदाग्रस्त क्षेत्रों के संबंध में एक नए जीओ की बात कही जाती है। जिसमें आपदाग्रस्त इलाकों के स्टूडेंट्स को यूटीयू द्वारा मदद की जाएगी, लेकिन इसके लिए जीओ आने के बाद ही कोई कार्रवाई की जाएगी। गौरतलब है कि जिन गरीब बच्चों के लिए एक जीओ पहले से मौजूद है, उनके साथ यूटीयू सौतेला व्यवहार कर रहा है। ऐसे में वो स्टूडेंट्स जो पहले ही कुदरत की मार झेल रहे थे उन पर युनिवर्सिटी के इस गैरजिम्मेदाराना रवैये से मार दोगुनी हो गई है।

'निधि भ् मार्च ख्0क्0 में चीफ सेक्रेट्री राकेश शर्मा द्वारा स्टार्ट की गई थी, लेकिन कमेटी सिस्टम बनाने के बाद इन मामलों पर कोई ध्यान ही नहीं दिया गया। हमने इस मामले में चीफ सेक्रेट्री, सेक्रेट्री हायर एजुकेशन सभी को इस मामले में जानकारी दे दी है। निधि के मामले में जल्द कुछ नहीं किया गया तो जरूरतमंद बच्चों के लिए हम न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाएंगे.'

-अभिजय नेगी, फाउंडर, मैड संस्था

छात्र कल्याण निधि के लिए कोई जीओ नहीं है। इस निधि को युनिवर्सिटी वहन करती है। बैठक में नए प्रस्ताव की बात मेरे संज्ञान में कमेटी ने अभी नहीं रखी है। नए नियम लागू करने से पहले काफी लंबा प्रॉसेस होता है। अभी कोई नए नियम लागू नहीं है।

- प्रो। वीके जैन, वाइस चांसलर, यूटीयू