देहरादून (ब्यूरो)। उत्तराखंड देश का पहला राज्य है, जिसने जीईपी के आकलन का निर्णय लिया है। असल में पर्यावरणविद् पद्मभूषण डॉ। अनिल प्रकाश जोशी वर्ष 2010 से लगातार जीईपी का मुद्दा उठाते आ रहे हैं। उनका प्रयास रंग लाया और प्रदेश सरकार ने जीईपी के महत्व को समझते हुए इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर एलान किया कि वह जीडीपी की तर्ज पर जीईपी का आकलन कराएगी। बीती छह दिसंबर को हुई धामी कैबिनेट की बैठक में इस पर मुहर लगाई गई।

इकोनॉमी में मिलेगी मदद
अब अपर मुख्य सचिव (वन एवं पर्यावरण) आनंद बर्द्धन की ओर से जीईपी के संबंध में अधिसूचना जारी कर दी गई है। इसके अनुसार जीडीपी एक विशिष्ट समयावधि में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के कुल बाजार मूल्य का आकलन करता है। यह अर्थव्यवस्था में पर्यावरण (प्राकृतिक पूंजी, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं) के योगदान, प्राकृतिक संसाधनों के ह्रास से उत्पन्न नकारात्मक प्रभाव और आर्थिक गतिविधियों के नकारात्मक कारकों से उत्पन्न पर्यावरणीय लागत का आकलन नहीं करता है। साफ है कि यह जीडीपी की वास्तविक तस्वीर को प्रदर्शित नहीं करता।

उत्तराखंड में हैं संभावनाएं
अधिसूचना के अनुसार उत्तराखंड उच्च पारिस्थितिक संवेदनशीलता वाला प्राकृतिक संसाधन समृद्ध राज्य है। इसके दृष्टिगत राज्य के विकास एजेंडे में पर्यावरणीय चिंता का निदान जरूरी है। ऐसे में जीईपी का आकलन प्रासंगिक है। यह ऐसा माप है, जो पर्यावरण के साथ ही अर्थव्यवस्था के सभी सकारात्मक, नकारात्मक क्रियाओं को ध्यान में रखता है। साथ ही पर्यावरण पर अर्थव्यवस्था के प्रभावों और अर्थव्यवस्था में पर्यावरण के योगदान का आकलन करता है।

यह होगा फार्मूला
जीईपी के आकलन को फार्मूला भी तय किया गया है। इसके अनुसार पारंपरिक जीडीपी (वस्तुओं व सेवाओं का मूल्य) और पर्यावरणीय वस्तुओं व सेवाओं के मूल्य को जोड़कर इसमें से पर्यावरणीय लागत घटाई जाएगी। अधिसूचना के अनुसार जीईपी के आकलन को व्यापक ढांचा विकसित किया जाएगा।