-तेजी से गिर रहा है देहरादून का भूजल स्तर

-हाउसिंग प्रोजेक्ट्स और कॉमर्शियल निर्माण में नहीं ली जा रही एनओसी

-दून में 170 हाउसिंग प्रोजेक्ट ने नहीं ली एनओसी

-पांच हजार से अधिक कॉमर्शियल निर्माण में तोडे़ गए नियम

देहरादून,

यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब दूनाइट्स को बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ेगा। देहरादून में पानी को लेकर चिंता तो जताई जा रही है, लेकिन भूजल स्तर को लेकर कोई प्रभावी काम नहीं हो रहा है। बिना रोकटोक धरती से हो रही पानी के दोहन के कारण भूजल स्तर लगातार नीचे गिर रहा है। कई इलाकों में तो भूजल स्तर दस से बीस मीटर तक नीचे जा चुका है। राजधानी में सबसे अधिक लापरवाही कॉमर्शियल निर्माण में बरती जा रही है। शासन स्तर से भई जल संरक्षण को लेकर न कोई नीति बनाई गई है और न ही कोई रोकटोक।

ऐसे तोडे़ जा रहे हैं नियम

देहरादून में पिछले एक साल में 190 से अधिक हाउसिंग प्रोजेक्ट्स को हरी झंडी दी गई। इनमें से 90 प्रतिशत से अधिक ने केंद्रीय भूजल बोर्ड से एनओसी तक नहीं ली। वहीं एनओसी न लेने वाले कॉमर्शियल भवनों की संख्या पांच हजार से अधिक है। नियम के मुताबिक ऐसे निर्माण में बोरिंग से पहले केंद्रीय भूजल बोर्ड से एनओसी लेनी जरूरी होता है।

एनओसी लेना खुद की जिम्मेदारी

हाउसिंग प्रोजेक्ट का नक्शा पास करते समय एमडीडीए भी एनओसी को अनिवार्य नहीं कर रहा है। एनडीडीए प्रदूषण विभाग और भू-जल बोर्ड जैसे विभागों की एनओसी को बिल्डर्स की खुद की जिम्मेदारी पर छोड़ देता है। ऐसे में नक्शा पास होने के बाद कोई एनओसी तक लेना गंवारा नहीं समझता।

वॉटर हार्वेस्टिंग का नहीं इंतजाम

भूजल स्तर के सुधार के लिए बारिश के पानी का संरक्षण जरूरी है। वॉटर हार्वेस्टिंग के जरिए बारिश के पानी को धरती के नीचे पहुंचाया जा सकता है, लेकिन यह व्यवस्था न होने से नालों और नदियों के रास्ते बारिश का सारा पानी बड़ी नदियों में बहकर आगे निकल जाता है। ऐसे में देहरादून में कुछ स्थान ऐसे भी हैं, जहां भूजल स्तर 70 मीटर से भी नीचे पहुंच चुका है।

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यह है ग्राउंड वॉटर की स्थिति

जगह वर्ष 2012 का सर्वे

कांवली 14.88 मीटर

कुआवाला 9.45 मीटर

हरबर्टपुर 9.23 मीटर

छरबा 17.66 मीटर

झाझरा 12.31 मीटर

सेलाकुई 9.07 मीटर

सिंघनीवाला 9.41 मीटर

नंदा की चौकी 10.13 मीटर

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नोट-दस सालों में इन क्षेत्रों में भूजल स्तर पांच से नौ मीटर तक गिरा है।

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गिरता भूजल स्तर चिंता का विषय है। एमडीडीए को भी पत्र लिखा गया है, ताकि वह नक्शा पास करते समय वॉटर हार्वेस्टिंग की स्थिति भी देखे।

-विनोद चमोली, मेयर, नगर निगम