RISHIKESH: आध्यात्मिक गुरु व योगाचार्य स्वामी आत्मस्वरूपानंद महाराज ने कहा कि योग हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों की एक बहुमूल्य आध्यात्मिक विरासत के रूप में हमें प्राप्त हुआ है। योग का मुख्य लक्ष्य मनुष्य को अनुशासित ढंग से आध्यात्मिक पथ के उच्चतम शिखर पर पहुंचना है।

योग साधकों का किया मार्गदर्शन

गढ़वाल मंडल विकास नगम (जीएमवीएन) व उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद के संयुक्त तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय योग महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। पांचवें दिन मुख्य पांडाल में स्वामी निरंजनानंद योग केंद्र जमुई बिहार के स्वामी आत्मस्वरूपानंद ने योग साधकों का मार्गदर्शन किया। उन्होनें कहा कि 21वीं सदी में योग व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति के अतिरिक्त सामाजिक कुरीतियों से जूझने की भी शक्ति प्रदान कर रहा है। ऐसे समय में जब पूरा विश्व पुराने मूल्यों को नए मूल्यों से प्रतिस्थापित किए बिना ही उन्हें अस्वीकार कर चैराहे पर ¨ककर्तव्यविमूढ़ होकर खड़ा है, तब योग नागरिकों को अपने वास्तविक स्वरूप से जुड़ने का साधन प्रदान कर रहा है। महोत्सव में चौधरी बृजपाल सिंह ने योग व प्राणायाम के बारे में विस्तार से बताया। दूसरी तरफ योगा हॉल में शशिकांत दुबे ने आसन, प्राणायाम एवं ध्यान के बारे में साधकों को जानकारी दी। कहा कि नियमित रूप से योग से जुड़कर हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं। योग न केवल शरीर वरन मस्तिष्क को भी स्वस्थ रखता है।

सात्विक भोजन ही मनुष्य के लिए सर्वोपरि

जीएमवीएन के लाइट एंड साउंड हॉल में मास्टर शेफ सीजन-1 की विजेता पंकज भदौरिया ने योग साधकों को स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद भोजन की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि हम जो कुछ खाते है, वह हमारे तन और मन पर वैसा ही प्रभाव डालता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने भेाजन के सात्विक, राजसिक व तामसिक तीन प्रकार बताए हैं। जिनमें से सात्विक भोजन ही मनुष्य के लिए सर्वोपरि है।