- तीन दिनों तक पहाड़ों की लोक संस्कृति से सराबोर रही नाथ नगरी

- रंगारंग प्रस्तुतियों के साथ उत्तरायणी मेले का सोमवार को हुआ समापन

BAREILLY

: तीन दिन तक नाथ नगरी को पहाड़ों की लोक संस्कृति से सराबोर करने वाले उत्तरायणी मेले का मंडे को समापन हो गया। इस साल की यादों को सजोय विदा हुए कलाकार मैदान में अमिट छाप छोड़ गए। देर रात पहाड़ों की ओर कूच कर गए।

खाद्य उत्पादों की जमकर हुई खरीदारी

पहाड़ी संस्कृति से ओत-प्रोत उत्तरायणी मेले के समापन पर सुबह के सत्र का शुभारंभ भारतीय जीवन बीमा निगम के वरिष्ठ मंडल प्रबंधक यंगजोर ने किया। सांध्य कालीन सत्र में केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार, आंवला सांसद धर्मेद्र कश्यप, बिथरी विधायक पप्पू भरतौल, भाजपा महानगर अध्यक्ष केएम अरोरा, प्रमुख उद्यमी धनश्याम खंडेलवाल व अन्य ने किया। इस मौके पर अतिथियों ने उत्तरायणी जन कल्याण समिति के प्रयासों की सराहना की। मेले में पहुंचकर लोगों ने पहाड़ों के हस्तशिल्प व खाद्य उत्पादों की खरीदी की। फूड कोट में लजीज व्यंजनों का स्वाद चखा। आकर्षक झूलों पर झूलकर मनोरंजन किया।

लोकगीतों पर मचाया धमाल

मंच पर कलाकारों ने दमदार प्रस्तुति दी। शाम ढलते धमाल मचाया। लोक गायक जितेंद्र तोमवयाल के संगीता मैं फौन करूलू, खिड़की में बैठी तू बाल बनूगी गीतों की तान जैसे ही छेड़ी प्रांगण तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। राकेश खनवाल, गौरव जैसवाल, के गीतों ने मंत्रमुगध किया। लोक गायिका दीपा नगरकोटी, राज भारती ने भी अपना जलवा बिखेरा। टिहरी की मंजुला आर्य ने जौनसारी, कुमाऊंनी व गढ़वाली लोकगीतों पर दर्शक झ्ाूम उठे।

स्वाद व सेहत का संगम गहत की दाल

पहाड़ के खाने में शरीर की जरूरत के अनुसार पर्याप्त ऊर्जा, पोषण के साथ मौसम का विशेष ध्यान रखा जाता है। गर्म तासरी वाली पहाड़ों की गहत दाल को सर्द मौसम में खासा पंसद किया जाता है। इसमें प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन, फारफोरस, कार्बोहाइड्रेट आदि पोषक तत्व पाए हैं। यह दाल इंसुलिन रेजिस्टेंस को नियमित करती है। वजन को कम करने के साथ लीवर के लिए काफी फायदेमंद होती है। गुर्दे पथरी को गलाने की क्षमता है। इसलिए आयुर्वेद में इसे चिकित्सकीय गुणों वाले भोजन का दर्जा दिया गया है। उत्तरायणी मेले में इसकी खूब ब्रिकी हुई। इसका लुत्फ उठाने के लिए स्टॉलों पर जमकर खरीदारी हुई।

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छोड़ रहे संस्कृति की अमिट छाप

- खुद के साथ पहाड़ी संस्कृति को बढ़ा रहे आगे

- मंच पर उतरे कलाकारों ने व्यक्त किए विचार

: सांस्कृतिक कार्यक्रमों को प्रस्तुत कर रही मंडली में ऐसे युवा कलाकार भी शामिल रहे। जो पढ़ाई के साथ अपनी लोक संस्कृति को आगे बढ़ा रहे हैं। अपना करियर संवार संस्कृति की अमिट छाप छोड़ रहे हैं। किसान परिवार में जन्मी वर्षा भी खटीमा के ऐसे ही एक ग्रुप में शामिल थी। जो स्नातक की पढ़ाई कर रही है। खुद शिक्षित होकर बच्चों को ज्ञान बांट रही हैं। उन्होंने बताया, पहाड़ों की संस्कृति अतुल्य है। जिसे जन-जन तक पहुंचाने का मौका मिलता है तो मंच पर उतरने से नहीं चूकती। उत्तराखंड में पली बढ़ी राज भारती भी अपनी लोक कला से लोगों को परिचित कराने में लगी है। इस बार उत्तरायणी मेले में आकर मंच पर लोक गीत की धमाकेदार प्रस्तुति दी। उन्होंने बताया, आगे बढ़ने का मतलब यह नहीं कि अपनी संस्कृति को भूल जाए, अपनी संस्कृति की अमिट छाप लोगों के जहन में उभर आए। इस सोच के साथ अपना भविष्य संवारना चाहिए।

एसएस विष्ट व डॉ। बोरा को किया सम्मानित

उत्तरायणी जन कल्याण समिति के मुख्य संरक्षक सुरेंद्र सिंह विष्ट को समाज में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार, आंवला सांसद धर्मेद्र कश्यप व अन्य पदाधिकारियों ने सम्मानित किया। इसके अलावा नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ.सुविधा महर बोरा को चिकित्सा क्षेत्र में बेहतर योगदान पर सम्मानित किया गया।

इनका रहा सहयोग

मेले में पीसी पाठक, सुरेंद्र सिंह बिष्ट, दिनेश पंत, रमेशचंद्र शर्मा, भवानी दत्त जोशी, मोहन जोशी, मनोज कांडपाल, देवेंद्र जोशी, डीडी बेलवाल, अनूप पांडेय, रमा पाठक, जया विष्ट, भूपाल सिंह विष्ट, प्रमोद विष्ट, गिरीश पांडेय, दिनेश पांडेय, माधवानंद तिवारी, कमल कांत बेलवाल, डॉ। अचल अहेरी आदि का सहयोग रहा।