Vat Savitri Vrat 2020 Puja Vidhi: यह सौभाग्यवती स्त्रियों का प्रमुख पर्व है। इस व्रत को करने का विधान त्रयोदशी से पूर्णिमा अथवा अमावस्या तक है। यह व्रत रखने वाली स्त्रियों का सुहाग अचल रहता है। इस व्रत में प्रातः काल स्नान के बाद बांस की टोकरी में सप्त धान भरकर ब्रह्मा जी की मूर्ति स्थापित करके, दूसरी टोकरी में सत्यवान व सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करके वट वृक्ष के नीचे रखकर पूजा करनी चाहिए तदोपरान्त बड़ की जड़ में पानी देना चाहिए। जल,मौली,रोली,कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, गुड़, फूल, तथा धूप-दीप से वट वृक्ष की पूजा करनी चाहिए। जल से वट वृक्ष को सींच कर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए। भीगे हुए चनों का वायना निकालकर, उस पर रुपये रखकर सास के चरण स्पर्श कर देना चाहिए। वट तथा सावित्री की पूजा के पश्चात प्रतिदिन पान, सिंदूर तथा कुमकुम से सुवासिनी स्त्री के पूजन का विधान है। व्रत के बाद फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करनी चाहिए। यह व्रत स्त्रियों द्वारा अखण्ड सौभाग्यवती रहने की कामना से किया जाता है। इस व्रत में प्रायः सामूहिक पूजा का विधान भी है।

Vat Savitri Vrat 2020 Mantra

अवैधव्यम च सौभाग्यम देहि त्वं मम सुव्रते।

पुत्रान पौत्राश सौख्यमं च ग्रहणधैर्य नमोस्तुते।

Vat Purnima Vrat Importance

इस दुनिया में अनेक प्रकार के वृक्ष हैं, उनमें से बरगद के वृक्ष यानि वट वृक्ष का विशेष महत्व है। वट वृक्ष दीर्घायु और अमरत्व का प्रतीक है क्योंकि इसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनो का निवास होता है। इस वृक्ष के नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकूल फलों की प्राप्ति होती है। सुहागन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा यही समझकर करतीं हैं कि मेरे पति भी जीवन पर्यन्त वट की तरह विशाल और दीर्घायु बने रहें।

Vat Savitri Vrat Katha

पौरणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन काल में भद्र देश के राजा अश्वपति अपनी पत्नी सहित संतान प्राप्ति के लिए हर रोज यज्ञ और हवन किया करते थे, जिसमें गायत्री मंत्रोच्चारण के साथ आहुतियां दी जाती थीं। उनके इस पुण्य प्राप्त से एक दिन माता गायत्री ने प्रकट होकर उन्हें मनचाहा वरदान देते हुए उन्हें पुत्री प्राप्ति का वरदान दिया. कालांतर में राजा अश्वपति के घर बेहद रूपवान कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम सावित्री रखा गया। जब सावित्री बड़ी हुई तो उनके लिए योग्य वर नहीं मिला तो राजा ने अपनी कन्या को अपने मंत्री के साथ स्वयं मनचाहा वर ढूढ़ने के लिए भेजा। तब सावित्री को एक दिन वन में महाराज द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान मिले। सावित्री ने मन ही मन उन्हें अपना पति मान लिया। जब वह सत्यवान को वर रूप में चुनने के बाद आईं तो उसी समय देवर्षि नारद ने सभी को बताया कि महाराज द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान की शादी के 12 वर्ष पश्चात मृत्यु हो जाएगी। इसे सुनकर राजा ने पुत्री सावित्री से किसी दूसरे वर को चुनने के लिए कहा मगर सावित्री नहीं मानी। नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय ज्ञात करने के बाद वह पति व सास-ससुर के साथ जंगल में रहने लगीं। इसके बाद नारदजी के बताए समय के कुछ दिनों पूर्व से ही सावित्री ने व्रत रखना शुरू कर दिया। नारद जी के कहे अनुसार सत्यवान की मृत्यु हो गई। उस समय सावित्री अपने पति को गोदकर में लेकर बैठी थी। जब यमराज उनके पति सत्यवान को साथ लेने आए तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ी। यमराज के बहुत मनाने के बाद भी सावित्री नहीं मानीं तो यमराज ने उन्हें वरदान मांगने का कहा, तब सावित्री ने अपने पहले वरदान में सास-ससुर की दिव्य ज्योति मांगी, दूसरे वरदान में छिना राज-पाट मांगा और तीसरे वरदान में सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान मांगा, जिसे यमराज ने तथास्तु कह स्वीकार कर लिया। इसके बाद भी जब सावित्री यमराज के पीछे आने लगीं तो यमराज ने कहा-हे देवी ! अब आपको क्या चाहिए ? तब सावित्री ने कहा-हे यमदेव आपने सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान तो दे दिया, लेकिन बिना पति के मैं मां कैसे बन सकती हूं? यह सुन यमराज स्तब्ध रह गए। इसके बाद यमराज को विवश होकर सावित्री के पति सत्यवान के प्राण वापस करने पड़े। यमदेव ने चने के रूप में सत्यवान के प्राण लौटाए थे। इसलिए प्राण रूप में वटसावित्री व्रत में चने का प्रसाद अर्पित किया जाता है। तभी से वट सावित्री अमावस्या के दिन वट वृक्ष का पूजन-अर्चन करने का विधान है। इस दिन व्रत करने से सौभाग्यवती महिलाओं की मनोकामना पूर्ण होती है और उनका सौभाग्य अखंड रहता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं उपवास रखकर, विधिवत पूजन करके अपनी पति की लंबी आयु की कामना यमराज से करती है।

- ज्‍योतिषाचार्य पं. राजीव शर्मा