एसआरएन, बेली और काल्विन में वेंटीलेटर के अभाव में दम तोड़ रहे मरीज

प्राइवेट हॉस्पिटल्स में लगती है मोटी रकम, हर आदमी के बस में नहीं यहां इलाज कराना

ALLAHABAD: गोरखपुर बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से कई मरीजों की मौत हो गई। लेकिन, संगम नगरी के हालात इससे भी गए गुजरे हैं। यहां के सरकारी हॉस्पिटल्स में वेंटीलेटर ही नही हैं। इससे कई बार सीरियस मरीजों की जान बचानी मुश्किल हो जाती है। जिनके पास महंगा इलाज कराने की कुवत है वे अपने मरीज को रेफर करा ले जाते हैं, लेकिन बाकी हॉस्पिटल की चौखट पर ही दम तोड़ देते हैं। कई बार शासन से मांग के बावजूद यहां वेंटीलेटर उपलब्ध कराने की दिशा में कोई पहल नहीं की गई है।

रास्ते में टूट जाती है सांस

शहर के बेली और काल्विन हॉस्पिटल में तो वेंटीलेटर है ही नहीं। यहां आने वाले सीरियस मरीजों को एसआरएन हॉस्पिटल रेफर किया जाता है। वहां पहुंचते-पहुंचते कई मरीजों की सांस रास्ते में ही टूट जाती है। कई बार तो मरीजों को प्राइवेट हॉस्पिटल का रुख करना पड़ता है। तेलियरगंज स्थित टीबी हॉस्पिटल में भी वेंटीलेटर नहीं है।

एसआरएन में भी गारंटी नहीं

एसआरएन हॉस्पिटल में यदि मरीज पहुंच भी गया तो जरूरी नहीं कि उसे वेंटीलेटर मिल ही जाए। हॉस्पिटल में कुल 11 वेंटीलेटर लगे हैं, लेकिन डिमांड इससे कई गुना अधिक है। एनिस्थिसिया आईसीयू में पांच, मेडिसिन आईसीयू में चार और अन्य वार्डो में कुल दो वेंटीलेटर लगाए गए हैं। ये चौबीस घंटे भरे रहते हैं। ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर्स की मानें तो कई बार गंभीर मरीजों को बमुश्किल भर्ती किया जाता है। जितने मरीज भर्ती होते हैं उनसे ज्यादा वेंटिंग में रहते हैं। ऐसे में मरीजों को मजबूरी में बैंबू बैग के जरिए आक्सीजन दी जाती है।

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पैसा दो आक्सीजन लो

शहर के प्राइवेट हॉस्पिटल्स में वेंटीलेटर मौजूद हैं लेकिन इनके एक दिन फीस पांच से दस हजार रुपए है। इसकी वजह से गरीब व असहाय मरीज आक्सीजन के अभाव में दम तोड़ देते हैं। कई बार वेंटीलेटर की अधिक फीस को लेकर मरीज के परिजनों और हॉस्पिटल स्टाफ के बीच मारपीट की घटनाएं भी होती हैं। सरकारी हॉस्पिटल में एक दिन की वेंटीलेटर की फीस महज एक से डेढ़ हजार रुपए है।

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बुक था वेंटीलेटर, सरोज का निकला दम

आक्सीजन नहीं मिलने से कई बार पेशेंट दम तोड़ देते हैं। इसी साल तीस मई की देर रात कर्वी चित्रकूट भानपुर की सरोज देवी सीरियस हाल में एसआरएन हॉस्पिटल पहुंचीं। वेंटीलेटर नहीं मिलने से उसकी हालत बिगड़ती चली गई और सुबह तक जान चली गई। परिजनों का आरोप था कि वेंटीलेटर किसी वीआईपी के लिए बुक था, इसलिए हमें इंकार कर दिया गया।

फैक्ट फाइल

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वेंटीलेटर लगे हैं एसआरएन हॉस्पिटल में

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वेंटीलेटर हैं बेली हॉस्पिटल में

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वेंटीलेटर हैं कॉल्विन हॉस्पिटल में

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से 10 हजार रुपये तक है प्राइवेट हॉस्पिटल्स में वेंटीलेटर का चार्ज

1500

रुपये है सरकारी हॉस्पिटल में वेंटीलेटर का एक दिन का चार्ज

सरकारी हॉस्पिटल्स में वेंटीलेटर जैसी सुविधाएं तो उपलब्ध होनी ही चाहिए। ट्रामा पेंशेंट्स को इसकी अधिक आवश्यकता है। अगर मौके पर इलाज नहीं मिले तो मरीज की जान चली जाती है।

विकास बेदी

प्राइवेट हॉस्पिटल्स में इलाज कराना सबके बस की बात नहीं है। सरकार इस बात को अच्छी तरह से जानती है, इसके बावजूद समुचित व्यवस्था नहीं की जाती, इससे गरीब मरीज की जान चली जाती है।

लकी सिंह

एसआरएन में यदि किसी मरीज को वेंटीलेटर की जरूरत होती है तो तत्काल नहीं मिल पाता। ऐसे में गंभीर मरीजों को या तो प्राइवेट में भेजा जाता है या वे अस्पताल में रहकर अंतिम घडि़या गिनते हैं।

शिव वर्मा

गोरखपुर जैसी घटनाओं सरकारी तंत्र कभी सबक नहीं लेता है। यदि हॉस्पिटल्स में पर्याप्त मात्रा में वेंटीलेटर और आक्सीजन मौजूद रहे तो मरीजों की जान बचाई जा सकती है।

पवन त्रिपाठी