वहीदा रहमान को बनना था डॉक्‍टर लेकिन बन गईं एक्‍टर

लाजवाब अभिनेत्री हैं वहीदा रहमान

1990 की फिल्म चौदहवीं का चांद में मोहम्मद रफी का गीत ‘चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो’ वहीदा रहमान पर फिल्माया गया था। आप को जानकर हैरानी होगी कि गाने में वहीदा का नाम भी आया है पर उसका मतलब कुछ और है। लाजवाब को वहीदा भी कहा जाता है।

बचपन से ही नृत्य और संगीत के प्रति दिलचस्पी रखने वाली वहीदा को पद्मश्री और पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। 14 मई 1936 को आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में एक परंपरागत मुस्लिम परिवार में वहीदा रहमान का जन्म हुआ। उनका नाम बॉलीवुड की शीर्ष अभिनेत्रियों में लिया जाता है। बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन उनके सबसे बड़े प्रशंसकों में से एक हैं। बचपन में वहीदा का सपना डॉक्टर बनने का था लेकिन किस्मत ने उन्हें बॉलीवुड की मल्लिका बना दिया। उन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई शुरू की पर फेफड़ों में इन्फेक्शन की वजह से उसे मुकाम ना दे सकीं।

वहीदा रहमान को बनना था डॉक्‍टर लेकिन बन गईं एक्‍टर

1955 में तेलगु फिल्मों से शुरु हुआ करियर

माता-पिता की देखरेख में वहीदा भरतनाट्यम नृत्य में निपुण हो गईं। इसके बाद वह मंचों पर प्रस्तुतियां देने लगीं। जिसके बाद उन्हें नृत्य के कई प्रस्ताव मिले। वहीदा की कम उम्र के चलते उनके अभिभावकों ने सभी प्रस्तावों को ठुकरा दिया। पिता के निधन के बाद घर में आर्थिक संकट के चलते वहीदा ने मनोरंजनकी दुनिया का रुख किया। वर्ष 1955 में उन्होंने दो तेलुगू फिल्मों में काम किया। जिसके बाद हिंदी सिनेमा के अभिनेता, निर्देशक व निर्माता गुरुदत्त ने उनका स्क्रीन टेस्ट लिया। बॉलीवुड में उन्हें पहली फिल्म सीआईडी में खलनायिका का किरदार मिला। अपने अभिनय के हुनर से उन्होंने इस किरदार में जान डाल दी। जिसके बाद उन्हें कई फिल्में मिलनी शुरू हो गईं। सीआईडी की कामयाबी के बाद फिल्म प्यासा में वहीदा रहमान को नायिका के रूप में लिया गया।

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ऐसी रही वहीदा रहमान की लव लाइफ

बात अगर उनकी लव लाइफ की करें तो गुरुदत्त और उनके प्रेम-प्रसंग हमेशा सुर्खियों में रहे। गुरुदत्त और वहीदा रहमान अभिनीत फिल्म ‘कागज के फूल’ 1959 की असफल प्रेमकथा उन दोनों की स्वयं के जीवन पर आधारित थी। इसके बाद दोनों ने फिल्म ‘चौदहवीं का चांद’ 1960 और ‘साहब बीवी और गुलाम’ 1962 में में काम किया। वहीदा ने अपने करियर की शुरुआत में गुरुदत्त के साथ तीन साल का कॉन्ट्रैक्ट साइन किया था। जिसमें शर्त थी कि वह कपड़े अपनी मर्जी के पहनेंगी। उन्हें अगर कोई ड्रेस पसंद नहीं आई तो वह पहनने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा। 10 अक्टूबर 1964 को गुरुदत्त ने आत्महत्या कर ली थी। इसके बाद वहीदा अकेली हो गईं। लेकिन उन्होंने अपने करियर से मुंह नहीं मोड़ा।

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नीलकमल ने दिलाई अनोखी पहचान

फिल्म ‘तीसरी कसम’ में राज कपूर के साथ उन्होंने नाचने वाली हीराबाई का किरदार निभाया था। बिहार के फारबिसगंज की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। वर्ष 1965 में ‘गाइड’ के लिए वहीदा को फिल्मफेयर अवार्ड मिला। 1968 में आई ‘नीलकमल’ के बाद एक बार फिर से वहीदा रहमान सभी का आकर्षण रहीं। इस फिल्म में वह अभिनेता मनोज कुमार और राजकुमार के साथ नजर आई। यह फिल्म उनके करियर को बुलंदियों तक पहुंचाने में सफल साबित हुई। अभिनेता कंवलजीत ने शादी का प्रस्ताव रखा और दोनो शादी के बंधन में बंध गये। साल 2002 में उनके पति का आकस्मिक निधन हो गया। वहीदा ने 2006 ‘रंग दे बसंती’ के बाद ‘पार्क एवेन्यू’, ‘मैंने गांधी को नहीं मारा’, ‘ओम जय जगदीश’ जैसी फिल्मों में अपनी अदाकारी का जलवा बिखेरा।

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सुपरहिट थी वहीदा-देव आनंद की जोड़ी

वहीदा और देव आनंद की जोड़ी को भी दर्शकों ने खूब सराहा। ‘सीआईडी’, ‘काला बाजार’, ‘गाइड’ और ‘प्रेम पुजारी’ जैसी सफल फिल्मों में दोनो ने साथ काम किया। फिल्म ‘गाइड’ में वहीदा और देवानंद की जोड़ी सुपरहिट साबित हुई। वहीदा को इस फिल्म के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था। वहीदा ने अपने फिल्मी करियर के दौरान दो बार फिल्मफेयर अवार्ड जीता। पहला सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार फिल्म नीलकमल के लिये उन्होंने 1969 में जीता। 1967 में फिल्म गाइड के लिए उन्होंने दूसरी बार फिल्मफेयर अवार्ड जीता। वहीदा को उनके शानदार अभिनय के लिए 1972 में पद्मश्री और 2011 में पद्मभूषण अवार्ड से सम्मानित किया गया।

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