-सरकारी हॉस्पिटल में बन रहे हैं प्रमाण पत्र, बढ़ते जा रहे मरीज

-जागरुकता से ऐसे बच्चों को मिल सकता है नया जीवन

PRAYAGARAJ: शारीरिक दिव्यांगता की तरह मानसिक दिव्यांगता भी कम खतरनाक नहीं है। इससे बच्चे का जीवन चौपट हो सकता है। इसलिए प्रजेंट सिनैरियो में जागरुकता बेहद जरूरी है। शुरुआती लक्षणों को पहचान ऐसे बच्चों को नया जीवन दिया जा सकता है। सरकार द्वारा दिव्यांगता की श्रेणी में मानसिक बीमारी को स्थान दिए जाने के बाद हॉस्पिटल्स में प्रमाण पत्र बनवाने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है।

रोजाना बनते हैं तीन से चार प्रमाण पत्र

मानसिक दिव्यांगता की व्यापकता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रोजाना तीन से चार प्रमाण पत्र हॉस्पिटल में बनाए जाते हैं। जिस दिन कैंप होता है तब मरीजों की संख्या बढ़कर दो दर्जन के आसपास होती है। जानकारी के मुताबिक इस श्रेणी में दो तरह के मरीजों को शामिल किया जाता है। इनमें एक क्रॉनिक मेंटल इलनेस तो दूसरे मरीज मानसिक मंदता के होते हैं। लेकिन, दोनों का प्रमाण पत्र बनाया जाता है।

इन लक्षणों से होशियार

-अगर बच्चा अपरिपक्व यानि समय से पहले पैदा हुआ है और जन्म के समय वजन दो किलोग्राम से कम है।

-अगर शुरुआती नवजात काल में उसे बार बार मरोड़ या ऐंठन होती है।

-अगर शिशु निष्क्रिय या शिथिल है या बहुत शक्तिहीन या सुस्त है।

-अगर बच्चा 4-5 साल तक की उम्र में भी अपनी देखभाल नहीं कर पाता है। जैसे खाना, कपड़े पहनना या ट्टटी पेशाब पर नियंत्रण रख पाना।

-अगर बच्चे को उम्र के हिसाब से विकास के क्रमिक पड़ावों तक पहुंचने में विलंब होता है।

इन कारणों से होती है मानसिक दिव्यांगता

-गर्भ के समय गर्भनाल संबंधी गड़बड़ी

-मां के हृदय या गुर्दे में कोई समस्या

-अपरिपक्व जन्म

-जन्म के समय में बहुत कम वजन

-जन्म देते समय का मानसिक आघात या कटु अनुभव

-जन्म के चार सप्ताह में या नवजात शिशु संबंधी कारण

-बच्चे को पीलिया, हाइपोग्लाईसिमिया, सेप्टीसिमिया, नवजात काल और बाल्यावस्था में दिमागी संक्रमण जैसे टीबी या मेनिनजाइटिस, अधिक समय तक कुपोषण या सिर पर चोट आदि।

-ऊपर दिए गए कारणों या लक्षणों में एक भी नजर आता है तो तत्काल डॉक्टर से संपर्क करें।

ऐसे होगा बचाव

-21 साल से पहले गर्भधारण से बचें। इससे प्रसव में मुश्किलें आने के जोखिम बढ़ जाते हैं।

-35 साल के बाद भी गर्भ धारण से बचें। उस समय क्रोमोसोम से जुड़े विकार जैसे डाउन सिंड्रोम होने की आशंका बढ़ जाती है।

-दो बच्चों के जन्म के बीच उचित समयातंराल।

-गर्भावस्था में निकोटीन, अल्कोहल व कोकीन आदि से दूरी

-बचपन में अधिक डायरिया या दिमागी संक्रमण का इलाज

वर्जन

दिव्यांगता की अलग-अलग कैटैगरी में प्रमाण पत्र बनाए जाते हैं। हमारे सेंटर में प्रतिदिन तीन से चार बच्चों की जांच व प्रमाण पत्र बनाया जाता है। अगर गर्भधारण के दौरान ही माता-पिता जागरुक हो जाएं तो इस बीमारी को काफी हद तक रोका जा सकता है।

-डॉ। राकेश पासवान, मनोचिकित्सक, काल्विन हॉस्पिटल

ऐसे बच्चों का जीवन संवारने के लिए माता-पिता के साथ समाज का भी दायित्व है। काउंसिलिंग के दौरान मरीज से सहानुभूति रखने की सीख दी जाती है। उनको स्वावलंबी बनाना जरूरी है जिससे वह जीवन को सम्मान के साथ जी सकें।

-डॉ। इशन्या राज, क्लीनिकल काउंसलर, काल्विन हॉस्पिटल