- डिस्ट्रिक्ट फुटबॉल एसोसिएशन साल भर नहीं दिखाता इंटरेस्ट, लीग से पूरा करते कोरम

- जुगाड़ से तैयार कर भेज देते कॉम्प्टीशन के लिए टीम, एक मैदान तक खिलाडि़यों को नसीब नहीं

GORAKHPUR: फुटबॉल की फील्ड में यूं तो खिलाडि़यों की फौज खड़ी हुई है। मगर उनके पास लड़ने के लिए न तो मैदान है और न ही कोई साजो-सामान। यही वजह है कि लाख कोशिशों के बाद भी उन्हें वह मुकाम हासिल नहीं हो पाता, जिसके वह असल हकदार हैं। गोरखपुर में फुटबॉल के हाल की बात करें तो साल भर यहां सूखा पड़ा रहता है। सिर्फ लीग से कोरम पूरा हो जाता है। 25 दिनों तक ताबड़तोड़ मैच का दौर चलता है, तो वहीं बाकी साल के 340 दिन खिलाड़ी फुटबॉल एक्टिविटी का इंतजार करते हैं। एसोसिएशन की लापरवाही से फुटबॉल लवर्स को काफी निराश होना पड़ता है।

नहीं लगता है कोई कैंप

खिलाडि़यों का मनोबल बढ़ाने और उनके अंदर छिपे टैलेंट को निखारने के लिए भी एसोसिएशन के जिम्मेदार कोई पहल नहीं करते हैं। सिर्फ लीग के अलावा न तो कोई स्पेशल ट्रेनिंग प्रोग्राम ऑर्गनाइज किए जाते और न ही किसी तरह का कैंप लगता है, जिसमें खिलाडि़यों के हुनर को निखारा जा सके। सिर्फ खिलाडि़यों के लिए फुटबॉल के नाम पर लीग मैच ऑर्गनाइज होते हैं, उसमें भी टीम्स के बीच भिड़ंत में कई खिलाडि़यों को अपना हुनर दिखाने का मौका नहीं मिल पाता है।

टूर्नामेंट में नहीं दिखाते इंटरेस्ट

एसोसिएशन की हालत ऐसी है कि न तो यह रेग्युलर फुटबॉल कराने की कोई पहल करते हैं और न ही खिलाडि़यों को बूस्ट अप करने के लिए किसी तरह के कॉम्प्टीशन ही होते हैं। यहां तक कि कोई टूर्नामेंट भी नहीं ऑर्गनाइज होते, जिसमें खिलाड़ी हिस्सा ले सकें। जब टीम बाहर जानी होती है, तो झटपट ट्रायल में खिलाड़ी चुन लिए जाते हैं और उनको गेम्स के लिए भेज दिया जाता है।

अपना मैदान तक नहीं

एसोसिएशन की एक्टिवनेस की बात करें तो उनके पास तो एक अदद मैदान भी मौजूद नहीं है। जब कोई बड़ा टूर्नामेंट या लीग मैच कराना होता है तो रीजनल स्पो‌र्ट्स स्टेडियम के साथ ही कुछ स्कूल के ग्राउंड को जुगाड़ से मैनेज किया जाता है, जहां पर फुटबॉल लीग ऑर्गनाइज की जाती है। स्टेडियम या दूसरे ग्राउंड ज्यादा देर तक इनगेज न रह सकें, इसके लिए दो-तीन ग्राउंड पर एक दिन में छह-छह मैच करा दिए जाते हैं, जिससे 20-25 दिन में पूरी लीग खत्म हो जाए।

वर्जन

पर्सनल अप्रोच से जितना हो सकता है करने की कोशिश की जाती है। कोई फाइनेंशियल एड नहीं मिलती है, जिससे खिलाडि़यों को बेहतर सुविधाएं मुहैया कराई जा सकें। अपने पास से जो मुमकिन होता है, वह देने की कोशिश करता हूं।

- मोहम्मद आमिर खान, सेक्रेटरी, डिस्ट्रिक्ट फुटबॉल एसोसिएशन