रुद्राक्ष या कहें रुद्र का अक्ष यानी आंसू। रुद्राक्ष की उत्पत्ति देवादिदेव भगवान शिव के आंसू से हुई थी। रुद्राक्ष के प्रयोग से शनि की पीड़ा दूर होती हैं। और शनिदेव की कृपा भी हासिल की जा सकती है। लेकिन रुद्राक्ष धारण करने के लिए धैर्य का पालन करना चाहिए। तभी यह पूर्ण रूप से सार्थकता प्रदान करता है। ज्योतिष के तमाम ग्रंथों में वर्णित है कि रुद्राक्ष धारण करने से जीवन में आने वाले संघर्षों को दूर किया जा सकता है। जिससे शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है। रुद्राक्ष को कलाई, गला और हृदय पर धारण किया जा सकता है। जो भी व्यक्ति रुद्राक्ष धारण करता है उसे सात्विक रहना चाहिए। नहीं तो इसका प्रभाव निष्फल हो जाता है। शनि की पीड़ा से निपटने के लिए दस मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। इसे शनिवार को लाल धागे में गले में धारण करें। वहीं, कुंडली में शनि का अशुभ प्रभाव हो तो एक मुखी और ग्यारह मुखी रुद्राक्ष एक साथ धारण करें।
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