--हाईकोर्ट के ऑर्डर की भी हो रही है अनदेखी

RANCHI

हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी रिम्स के कॉटेज में दो वीआईपी कैदी अपना इलाज करा रहे हैं, जिनमें पूर्व मंत्री और विधायक भानु प्रताप शाही और जितेंद्र महतो शामिल हैं। ये दोनों पिछले चार माह से कॉटेज में रहकर अपनी बीमारी का इलाज करा रहे हैं। शुक्रवार को हाइकोर्ट ने आदेश दिया था कि किसी भी परिस्थिति में कैदियों को रिम्स में कॉटेज नहीं दिया जाएगा। इसके बावजूद रिम्स प्रबंधन ने इनसे कॉटेज खाली नहीं कराया है। इससे पहले भी नौ जुलाई को हाईकोर्ट ने कहा था कि किसी भी वीआईपी को क्भ् दिन से ज्यादा कॉटेज नहीं दिए जाएं, लेकिन इस आदेश के डेढ़ महीने बीत जाने के बाद भी दोनों रिम्स कॉटेज में जमे हुए हैं। इस बारे में जब रिम्स के सुपरिंटेंडेंट डॉक्टर एसके चौधरी से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि इसके लिए कानूनी प्रक्रिया चल रही है। संबंधित विभागों को इसकी जानकारी दे दी गई है।

हाईकोर्ट ने जारी िकया था पत्र

बताते चलें कि पिछले माह हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग को एक पत्र जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि किसी कैदी को एक सप्ताह से अधिक रिम्स में भर्ती नहीं किया जाएगा। इसके साथ ही विशेष परिस्थिति में ही स्पेशल टीम की अनुशंसा पर उसे क्भ् दिनों तक एक्सटेंशन देने की भी बात कही थी। लेकिन रिम्स प्रबंधन ने आदेश जारी होने के बाद भी कॉटेज खाली नहीं कराया है।

रांची यूनिवर्सिटी की फर्जी वेबसाइट मामले में एफआइआर

रांची यूनिवर्सिटी प्रशासन ने यूनिवर्सिटी की फर्जी वेबसाइट चलाने को लेकर अज्ञात के खिलाफ कोतवाली थाने में मामला दर्ज कराया है। इससे पहले यूनिवर्सिटी प्रशासन ने साइबर सेल में भी रांची यूनिवर्सिटी की फर्जी वेबसाइट चलाने को लेकर कंप्लेन दर्ज कराई थी। बताते चलें कि रांची यूनिवर्सिटी की दो साइटें चल रही थीं। जिसमें एक साइट फर्जी थी और उसमे कई लिंक ऐसे थे जो लोगों को परेशानी में डाल सकते थे। इस मामले में आइनेक्स्ट ने क्ब् अगस्त को खबर छापी थी कि आरयू की दो-दो वेबसाइट चल रही है। इस वजह से स्टूडेंट्स भी कंफ्यूज थे और यूनिवर्सिटी प्रशासन को भी आगाह किया गया था। इसके बाद यूनिवर्सिटी में नोटिस भी लगा दिया गया था कि आरयू के नाम से एक फर्जी वेबसाइट चल रही है और साइबर सेल में इसकी शिकायत भी की गई है। साथ ही यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर भी यह नोटिस डाला गया था कि रांची यूनिवर्सिटी डॉट ओआरजी फर्जी वेबसाइट है। इस वेबसाइट पर मिली जानकारी के लिए यूनिवर्सिटी जिम्मेवार नहीं होगी।