- आज है नेशनल स्पो‌र्ट्स डे

- वादा किए बीते तीन साल, न हॉकी स्टेडियम न ढंग का ट्रेनिंग कॉलेज

- हॉकी प्लेयर्स को नहीं मिलता प्रैक्टिस के लिए ग्राउंड, फिजिकल ट्रेनिंग कॉलेज की हालत भी जर्जर

- स्टेट गवर्नमेंट ने तीन साल पहले किया था हॉकी स्टेडियम बनाने का वादा

PATNA : आज पूरा देश महान हॉकी प्लेयर मेजर ध्यानचंद को याद कर राष्ट्रीय खेल दिवस मना रहा है। लेकिन विडंबना यह है कि इतने प्रतिष्ठित नाम पर बिहार गवर्नमेंट सिर्फ घोषण कर सो जाती है। हम बात कर रहें हैं राजेंद्र नगर में प्रेमचंद मार्ग पर स्थित फिजिकल ट्रेनिंग कॉलेज की। यहां हॉकी का नेशनल लेबल का एक स्टेडियम बनना था। तीन साल पहले ख्0क्क् में खेल दिवस के अवसर पर बिहार के तत्कालीन सीएम नीतीश कुमार ने यह घोषणा की थी, लेकिन इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ। आजकल इस कैंपस में मवेशियों को चराया जा रहा है।

बिहार में कोई हॉकी स्टेडियम नहीं

बिहार में हॉकी की कोई स्टेडियम नहीं है। अगर राजेन्द्र नगर में यह स्टेडियम बनता तो हॉकी को बढ़ावा देने में यह एक बड़ा कदम होता, लेकिन तीन साल में एक बार भी इस बारे में इसकी स्थिति के बारे में बात तक नहीं की गयी। इस बारे में बिहार हॉकी के सेक्रेटरी मो। मुस्ताक अहमद का कहना है कि ध्यानचंद जैसे महान हॉकी प्लेयर के नाम पर इतनी बड़ी घोषणा का यह हाल शर्मनाक है। इसका जबाव गवर्नमेंट को देना होगा। उन्होंने बताया कि बार-बार इस खेल के लिए किसी के निजी एरिया को ही यूज करने के लिए बाध्य है। ख्0क्क् में इस्ट जोन (मेन एंड वूमेन) दानापुर आर्मी ग्राउंड में कराया गया। इसमें इस्ट जोन के करीब क्क् स्टेट के प्लेयर्स पार्टिसिपेट किये थे। इसमें बिहार की टीम विनर हुई थी। इसके बाद ख्0क्ख् में इंटर-स्टेट हॉकी गेम बीएमपी ग्राउंड फाइव में की गयी थी। इसमें बिहार ब्यॉज का थर्ड और ग‌र्ल्स का सेकेंड पोजीशन था।

दो दशकों से खड़ा लेकिन जर्जर हालत में

राजेंद्र नगर में प्रेमचंद मार्ग स्थित फिजिकल एजुकेशन ट्रेनिंग कालेज अपने वजूद पर रो रहा है। यहां आउटडोर स्टेडियम का शिलान्यास तत्कालीन कला संस्कृति एंव युवा मंत्री सुखदा पाण्डेय के द्वारा किया गया था। उसके बाद इसके बारे में स्टेट गवर्नमेंट भूल गयी। आज ग्रांउड की हालत नारकीय है। यहां ग्रांडड पर घास और बड़े-बड़े गड्डे हैं। इस बारे में बिहार हॉकी के सेक्रेट्री मो। मुस्ताक अहमद का कहना है कि स्टेट में एक भी हॉकी स्टेडियम नहीं होने के कारण प्लेयर्स को प्रैक्टिस करने में असुविधा होती है। अगर इसकी सही मेनटेनेंस की गयी होती तो यह राष्ट्रीय स्तर का एक मानक स्टेडियम-कम-फिजिकल ट्रेनिंग सेंटर होता।

कई ट्रेनर बनते, लेकिन

यह मुख्य रूप से फिजिकल ट्रेनिंग कॉलेज रहा है, लेकिन गवर्नमेंट के उदासीन रवैये के कारण ही यहां ट्रेनिंग की सबसे अधिक परेशानी है। बिहार के यूथ प्लेयर जिन्होंनें ख्00ब् तक बिहार के लिए नेशनल लेबल पर खेला और इन दिनों वे विदेश में एक फिजिकल ट्रेनर के रूप में काम कर रहें हैं, का कहना है कि गवर्नमेंट यहां फिजिकल ट्रेनिंग को इग्नोर कर रही है। अगर इस पर ध्यान दिया गया होता तो बिहार में कम से कम क्ख्00 ट्रेनर हो गए होते। इससे इनडोर और आउटडोर गेम को प्रमोट करने का भी एक सिलसिला बनता। दूसरी ओर मेरी तरह जो प्लेयस और ट्रेनर विदेश में नौकरी कर रहे हैं, वे अपने स्टेट में ही काम कर इससे खेल की नई जेनेरेशन को तैयार करने में एक अहम भूमिका निभाते।

गवर्नमेंट फिजिकल ट्रेनिंग को इग्नोर रह रही है। अगर इसका सिलसिला बनता तो इंडोर और आउटडोर के गेम को प्रमोट करने कर कई प्लेयर्स और ट्रेनर को तैयार किया जा सकता था।

- करूणेश कुमार, फिजिकल एजुकेशन ट्रेनर, दुबई में वर्किंग।