- 380 बेड

- 350 से अधिक हर समय मरीज भर्ती

-200 से अधिक स्ट्रेचर

- केजीएमयू के ट्रॉमा और ओपीडी में तीमारदारों को घंटों नहीं मिलते स्ट्रेचर

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LUCKNOW:

केस1

हेड इंजरी के इलाज के लिए दूसरे अस्पताल से रेफर किए गए नंदलाल को दोपहर तीन बजे ट्रॉमा सेंटर लगाया गया था, लेकिन पौने पांच बजे तक भी परिजनों को स्ट्रेचर नहीं मिला। परिजनों के साथ ऑटो वाला भी स्ट्रेचर के लिए ट्रॉमा में दूसरी तीसरी मंजिल पर चक्कर काट रहा था।

केस 2.

हेड इंजरी से घायल हुई भावना को 108 एंबुलेंस से बाराबंकी से ट्रॉमा सेंटर लाया गया था। एक घंटे से अधिक समय से परिजन और 108 एंबुलेंस कर्मी ट्रॉमा के अंदर स्ट्रेचर तलाश रहे थे, लेकिन पूरे ट्रॉमा में उन्हें एक भी स्ट्रेचर नहीं मिला।

केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में शनिवार दोपहर बाद कुछ ऐसा ही हाल था। एक स्ट्रेचर खाली हुआ तो कई कई मरीजों के परिजन उस पर टूट पड़ रहे थे। कई तीमारदार तो वार्ड से डिस्चार्ज किए जा रहे मरीजों के पास से स्ट्रेचर के लिए अपना नंबर लगा ले रहे थे ताकि नीचे कोई दूसरे मरीज के लिए स्ट्रेचर न ले ले। पीआरओ काउंटर पर भारी भीड़ थी, लेकिन वह भी लाचार नजर आई।

कहां गए 200 स्ट्रेचर

केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में लगभग 380 बेड हैं, लेकिन इन बेड पर भर्ती मरीजों की संख्या हमेशा 400 से अधिक रहती है। शेष बेड की जगह पर मरीजों को स्ट्रेचर पर ही भर्ती कर लिया जाता है। जिसके कारण स्ट्रेचर भी कम पड़ जा रहे हैं। शायद इसी कारण शनिवार दोपहर बाद बुरा हाल था। बड़ी संख्या में मरीजों को एंबुलेंस में सिर्फ इसीलिए इंतजार करना पड़ रहा था कि उन्हें अंदर जाने के लिए स्ट्रेचर नहीं मिल पा रहे थे।

ट्रॉमा में जाम की स्थिति

स्ट्रेचर की कमी के कारण शनिवार को ट्रॉमा सेंटर में जाम की स्थिति नजर आई। प्रवेश से लेकर निकास द्वार तक दोनों ओर एंबुलेंस की लाइन लग गई। पीछे की ओर जाने वाले रास्ते पर एंबुलेंस खड़ी करनी पड़ी। मरीजों के तीमारदार और एंबुलेंस वाले स्वयं स्ट्रेचर ढूंढ़ते नजर आए।

महंगी दवाएं सब बाहर से

कहने को तो केजीएमयू प्रशासन ट्रॉमा सेंटर में मरीजों को ज्यादातर सुविधाएं मुफ्त उपलब्ध करा रहा है, लेकिन मरीजों के तीमारदारों से ज्यादातर सामान बाहर से मंगाया जा रहा है। तीमारदारों ने आरोप लगाया कि अंदर सिर्फ ग्लूकोज की बोतल और पट्टी, ग्लब्स ही मिलते हैं। बाकी दवाओं के लिए बाहर भेज दिया जाता है।

स्टोर में नहीं हैं दवाएं

तीमारदारों ने बताया कि ट्रॉमा के अंदर बने मेडिकल स्टोर में भी दवाएं नहीं हैं। सस्ती दवाएं तो यहां से मिल जाती है, लेकिन महंगी दवाओं के लिए बाहर चौक में बने स्टोर्स में भेज दिया जाता है। डिप्थीरिया से पीडि़त बच्चों को लगने वाला 18 हजार का इंजेक्शन भी चौक से या फिर अमीनाबाद से लाना पड़ रहा है। जबकि महंगी एंटीबायोटिक भी अंदर के स्टोर पर नहीं मिल पा रही हैं।

कट गया बजट

केजीएमयू के डॉक्टर्स के अनुसार पिछले वर्ष केजीएमयू को 99 करोड़ दवाओं, ऑक्सीजन सप्लाई, बिजली जैसे मदों के भुगतान के लिए मिले थे, लेकिन इस वर्ष घटाकर इसे 49 करोड़ कर दिया गया। जिसके कारण केजीएमयू जो दवाएं पहले फ्री में उपलब्ध करा रहा है उन्हें भी मरीजों को उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है। सामान्य एंटीबायोटिक तक की दिक्कत है। प्रशासन को समझ नहीं आ रहा है कि यदि ये दवाएं दे दी गई तो कंपनियों को पेमेंट कहां से करेंगे। जिसके कारण समस्या लगातार बढ़ रही है।

सामान्य मरीज हो रहे रेफर

ट्रॉमा प्रशासन के अनुसार ज्यादातर मरीजों को बिना जरूरत के ही केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में भेज दिया जा रहा है। रोजाना आने वाले लगभग 300 मरीजों में से एवरेज 120 मरीज रोज भर्ती होते हैं। 30 से 40 मरीजों को फ‌र्स्ट एड देकर वापस किया जाता है। लगभग 150 मरीजों को इमरजेंसी की जरूरत ही नहीं होती है, लेकिन आस पास के जिलों से जिला चिकित्सालयों व अन्य अस्पतालों को मरीजों को बिना जरूरत के ही मरीजों को रेफर कर दिया जाता है। सामान्य सी दिक्कतों को भी दूसरे अस्पताल ट्रीट नहीं कर रहे हैं जिसके कारण अति गंभीर मरीजों को स्ट्रेचर की दिक्कत तो होती ही है। साथ में कई बार उन्हें बेड न उपलब्ध होने के कारण दूसरे अस्पतालों में भेजना पड़ रहा है।

ओपीडी में ताले में स्ट्रेचर

केजीएमयू की नवीन ओपीडी में शनिवार दोपहर मरीजों की लंबी लाइन थी। कई मरीजों को परिजन गोद में उठाकर अंदर ले जा रहे थे, लेकिन ओपीडी भवन के अंदर दर्जन भर से अधिक स्ट्रेचर को ताले से बांध कर रखा गया है। मरीज ओपीडी में भटकते नजर आए।

स्ट्रेचर पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हैं, लेकिन बड़ी संख्या में मरीजों को स्ट्रेचर पर भी भर्ती करना पड़ता है जिससे कई बाद दिक्कत होती है। दवाएं पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं जो कम होंगी मंगा ली जाएंगी।

प्रो। हैदर अब्बास, इंचार्ज, ट्रॉमा सेंटर

कई बार सामान्य मरीज भी दूसरे अस्पतालों से ट्रॉमा सेंटर भेज दिए जाते हैं। जिसके कारण कई बार सीरियस मरीजों के लिए भी बेड खाली रह नहीं पाते। सीरियस मरीज ही यहां भेजे जाएं तो अधिक लोगों को सुविधा दी जा सकेगी।

प्रो। एसएन शंखवार, सीएमएस, केजीएमयू