- कुख्यात बदमाशों से मुठभेड़ के लिए हुआ था गठन

- नहीं परवान चढ़ सकी योजना, शहीद होते रहे पुलिसकर्मी

- साथी को छोड़कर भागने वालों पर भी नहीं होती है कार्रवाई

LUCKNOW: कुख्यात बदमाशों से मोर्चा लेने के लिए दो साल पहले शुरू हुई 'वार' स्कीम अब केवल फाइलों में हैं। अफसर बदलने के साथ इस महत्वपूर्ण योजना को दफन कर दिया गया। नतीजतन पुलिस महकमे में जांबाजी दिखाने वाले कर्मचारी शहीद होते रहे। यह स्कीम यदि अमल में लायी जाती तो कई कुख्यात बदमाशों को ठिकाने लगाने के साथ कई पुलिसकर्मियों की जानें भी बचाई जा सकती थी।

अत्याधुनिक असलहों से थे लैस

अमेरिका की स्पेशल वेपन एंड टैक्टिक्स (स्वाट) की तर्ज पर यूपी पुलिस ने 'वार' टीम का गठन किया था। ग्लॉक पिस्टल, एमपी-5 जैसे हल्के असलहों, बुलेटप्रूफ हेलमेट और काले रंग की बुलेटप्रूफ वर्दी से लैस पीएसी के 20 कमांडो को कुख्यात बदमाशों और आतंकियों के साथ होने वाली मुठभेड़ के लिए तैयार किया जाना था। इन्हें छह हफ्ते की विशेष ट्रेनिंग भी दी गयी थी। कमांडो चुनते वक्त यह भी देखा गया था कि वे पहले एनएसजी अथवा किसी अन्य स्पेशल सिक्योरिटी एजेंसी की ट्रेनिंग ले चुके हो। इसी बीच आईजी एसटीएफ आशीष गुप्ता का तबादला हो गया और टीम बिखर गयी। सभी कमांडो ने अपने मूल तैनाती स्थान पीएसी की 32वीं व 35वीं वाहिनी में आमद करा ली और 'वार' टीम के गठन का सपना बिखर गया। दरअसल इसकी शुरुआत आईपीएस असीम अरुण ने की थी। आगरा में एसएसपी रहने के दौरान उन्होंने स्वाट टीम गठित की थी।

कुंडा कांड में भी भाग गये थे पुलिसकर्मी

नोएडा में इंस्पेक्टर को बदमाशों से घिरा देखने के बावजूद साथी पुलिसकर्मियों का भाग जाना कोई नई बात नहीं है। तीन साल पहले कुण्डा में डिप्टी एसपी जियाउल हक की हत्या भी इन्हीं परिस्थितियों में हुई थी। जियाउल के साथ प्रतापगढ़ के कुंडा स्थित बलीपुर गांव गयी पुलिस टीम उन्हें हमलावर ग्रामीणों के बीच छोड़कर भाग निकली थी। इनमें जियाउल हक का गनर इमरान भी शामिल था। बाद में सीबीआई ने इस मामले की जांच के बाद भाग जाने वाले छह पुलिसकर्मियों के खिलाफ वृहद दंड की सिफारिश की थी, लेकिन इसे भी फाइलों में दफन कर दिया गया।