रोहित आठवीं कक्षा का छात्र था। वह बहुत आज्ञाकारी था और हमेशा औरों की मदद के लिए तैयार रहता था। वह शहर के एक साधारण मोहल्ले में रहता था, जहां रास्तों पर बिजली के खंभे तो लगे थे, पर उनपर लगे बल्ब सालों से खराब थे। बार-बार शिकायत करने पर भी कोई उन्हें ठीक नहीं करता था। रोहित अक्सर सड़क पर आने-जाने वाले लोगों को अंधेरे के कारण परेशान होते देखता था। उसके दिल में आता कि वो कैसे इस समस्या को दूर करे। जब वो अपने माता—पिता या पड़ोसियों से इस समस्या के बारे में बात करता तो सब इसे सरकार और प्रशासन की लापरवाही कहकर टाल देते।

ऐसे ही कुछ महीने और बीत गए। फिर एक दिन रोहित ने निश्चय किया कि अब वो इस समस्या को दूर करके ही रहेगा। वह कहीं से एक लंबा सा बांस और बिजली का तार लेकर आया और अपने कुछ दोस्तों की मदद से बांस को अपने घर के सामने गाड़कर उस पर एक बल्ब लगाने लगा। आस-पड़ोस के लोगों ने देखा तो पूछा, 'अरे! तुम यह क्या कर रहे हो?’ 'मैं अपने घर के सामने एक बल्ब लगाने का प्रयास कर रहा हूं?’ रोहित बोला। 'अरे! इससे क्या होगा? अगर तुम एक बल्ब लगा भी लोगे तो भी पूरे मोहल्ले में प्रकाश थोड़े ही फैल जाएगा। आने-जाने वालों को तब भी तो परेशानी उठानी ही पड़ेगी?’ पड़ोसियों ने सवाल उठाया।

रोहित बोला, 'आपकी बात सही है, पर ऐसा करके मैं कम से कम अपने घर के सामने से जाने वाले लोगों को तो परेशानी से बचा ही पाऊंगा.’ ऐसा कहते हुए उसने एक बल्ब वहां टांग दिया। रात को जब बल्ब जला तो बात पूरे मोहल्ले में फैल गई। किसी ने रोहित के इस कदम की खिल्ली उड़ाई तो किसी ने उसकी प्रशंसा की। एक-दो दिन बीते तो लोगों ने देखा कि कुछ और घरों के सामने लोगों ने बल्ब टांग दिए हैं। फिर क्या था, महीना बीतते-बीतते पूरा मोहल्ला प्रकाश से जगमगा उठा।

एक छोटे से लड़के के एक कदम ने इतना बड़ा बदलाव ला दिया था कि धीरे-धीरे पूरे शहर में यह बात फैल गई। अंतत: प्रशासन ने मोहल्ले में स्ट्रीट-लाइट्स ठीक करवा दीं।

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