संत राजिंदर सिंह। हमें अक्सर यही लगता है कि हम जो कुछ भी सोचते या करते हैं, वह सब ठीक है और जितनी भी गलतियां हैं, वे सभी औरों में हैं। इंसान यही सोचता है कि उसकी सोच, आदतें, विचार, बोल, कार्य सभी सही हैं और दूसरों की गलत। हम हमेशा दूसरों को ही बताते रहते हैं कि आपने यह सही नहीं किया और वह काम गलत किया। 

जब हम संतों-महापुरुषों का जीवन देखते हैं, तो पाते हैं कि वे सभी के अंदर सिर्फ अच्छाइयां देखते हैं। चाहे कोई इंसान अच्छा न हो फिर भी वे उसे गले लगाते हैं। उसकी अच्छाई की ओर देखते हैं। वे उसका बाहरी रूप देखने की बजाय उसके आत्मिक रूप की ओर ध्यान देते हैं। हमें भी उनकी तरह औरों की गलतियों की ओर देखने की बजाय स्वयं को बेहतर करने की कोशिश करनी चाहिए।

दुनिया में हम तरह-तरह के लोगों से मिलते हैं। हरेक के कर्म अलग-अलग हैं। हरेक की सोच अलग-अलग होती है। हरेक के विचार अलग-अलग हैं। अगर हम सोचें कि सारे लोग हमारी मर्जी के मुताबिक चलेंगे, तो यह नामुमकिन है। हमें अपनी जिंदगी कुछ इस तरह जीनी चाहिए, जिससे कि हम सबके अंदर भलाई देख सकें। सबके अंदर की अच्छाई देख सकें। ऐसा तभी हो सकेगा जब हम स्वयं अपने अंदर की बुराई को देखना शुरू कर देंगे। स्वयं को सुधारना शुरू कर देंगे। हमें यह जो मानव शरीर मिला है, इसमें आत्मा और परमात्मा दोनों बसते हैं। हमें केवल अपने अंदर की दुनिया को उड़ान देनी है। हमें केवल अपने से ध्यान हटाकर अंतर्मन की ओर करना है। हमें अपनी जिंदगी को सद्गुणों के साथ जीना चाहिए।

संत राजिंदर सिंह। हमें अक्सर यही लगता है कि हम जो कुछ भी सोचते या करते हैं, वह सब ठीक है और जितनी भी गलतियां हैं, वे सभी औरों में हैं। इंसान यही सोचता है कि उसकी सोच, आदतें, विचार, बोल, कार्य सभी सही हैं और दूसरों की गलत। हम हमेशा दूसरों को ही बताते रहते हैं कि आपने यह सही नहीं किया और वह काम गलत किया। 

जब हम संतों-महापुरुषों का जीवन देखते हैं, तो पाते हैं कि वे सभी के अंदर सिर्फ अच्छाइयां देखते हैं। चाहे कोई इंसान अच्छा न हो फिर भी वे उसे गले लगाते हैं। उसकी अच्छाई की ओर देखते हैं। वे उसका बाहरी रूप देखने की बजाय उसके आत्मिक रूप की ओर ध्यान देते हैं। हमें भी उनकी तरह औरों की गलतियों की ओर देखने की बजाय स्वयं को बेहतर करने की कोशिश करनी चाहिए।

दुनिया में हम तरह-तरह के लोगों से मिलते हैं। हरेक के कर्म अलग-अलग हैं। हरेक की सोच अलग-अलग होती है। हरेक के विचार अलग-अलग हैं। अगर हम सोचें कि सारे लोग हमारी मर्जी के मुताबिक चलेंगे, तो यह नामुमकिन है। हमें अपनी जिंदगी कुछ इस तरह जीनी चाहिए, जिससे कि हम सबके अंदर भलाई देख सकें। सबके अंदर की अच्छाई देख सकें। ऐसा तभी हो सकेगा जब हम स्वयं अपने अंदर की बुराई को देखना शुरू कर देंगे। स्वयं को सुधारना शुरू कर देंगे। हमें यह जो मानव शरीर मिला है, इसमें आत्मा और परमात्मा दोनों बसते हैं। हमें केवल अपने अंदर की दुनिया को उड़ान देनी है। हमें केवल अपने से ध्यान हटाकर अंतर्मन की ओर करना है। हमें अपनी जिंदगी को सद्गुणों के साथ जीना चाहिए।

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