प्रोडक्शन पर लगे लगाम तभी पॉलीथिन बैन होगा सफल

दैनिक जागरण आई नेक्स्ट के पैनल डिस्कशन में अतिथियों ने रखे विचार

Meerut । प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण के मद्देनजर पॉलीथिन को प्रतिबंधित कर दिया गया है। शहर में पॉलीथिन बैन को लेकर अभियान चल रहा है। शहर में पॉलीथिन प्रतिबंधित हुई, तो कुछ बदलाव भी देखने को मिल रहे हैं। रविवार को डीजे आई नेक्स्ट के ऑफिस में आयोजित पैनल डिस्कशन में आए शहरवासियों ने अपने विचार रखे। पैनल में हियर द साइलेंस एनजीओ संचालिका नेहा कक्कड़, गायनोकोलोजिस्ट डॉ। सरिता त्यागी, आरजी कॉलेज की शिक्षिका आयुषी गुप्ता, समाज सेवी कल्पना पांडेय, व्यापारी अजित शर्मा और अजय शर्मा मौजूद रहे।

पॉलीथिन बैन अभियान की सफलता प्रोडक्शन हाउस को बंद करने या उनको डी ग्रेडेबल बनाने से ही होगी। यदि हम प्रोडक्शन ही बंद नही करेंगे तो उनका प्रयोग कैसे कम होगा। मॉल्स में थैलों के लिए पांच से सात रुपए चार्ज किया जाता है, इसलिए लोग लेने से कतराते हैं इनको भी निशुल्क देना चाहिए। हमें दादी नानी के समय की आदतों को अपनाना होगा।

नेहा कक्कड़, समाजसेवी

प्लास्टिक व पॉलीथिन के कारण गांव देहात में लघु उद्योग से जुडे़ रोजगार खत्म हो गए हैं आज गांव में मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार और थैले सिलने वाले दर्जी का व्यवसाय खत्म हो चुका है। प्लास्टिक के बर्तनों ने मिट्टी के बर्तनों की जगह ले ली है। हमें वापस मिट्टी के बर्तनों और कपड़ों के थैलों को अपनाने की आदत डालनी होगी इससे पर्यावरण भी सुरक्षित होगा और रोजगार भी बढ़ेगा।

डॉ। सरिता त्यागी

दही या मट्ठा तीन दिन बाद खट्टा होता है, लेकिन आज फ्रिज में रखा दही या मट्ठा 8 घंटे बाद ही खट्टा हो जाता है। यह भी प्रदूषण का ही एक रुप हैं क्योंकि आज दही या मट्ठा पॉलीथिन की पैकिंग में बेचा जा रहा है दुकानों से लेकर घरों तक यह पॉलीथिन की पैकिंग में ही आ रहा है। इस पर भी रोक लगनी चाहिए।

अजित शर्मा

पॉलीथिन का दुष्प्रभाव आज केवल इंसानों पर नही बल्कि जानवरों पर भी पड़ रहा है जो पॉलीथिन हम कूडे़ में फेंक देते हैं वो जानवर खा लेते हैं और उनको भी बीमारियां लग रही हैं। हमें पश्चिमी कल्चर से अधिक खुद अपनी कल्चर के अनुसार खानपान करना चाहिए इससे पर्यावरण भी शुद्ध रहेगा और सेहत भी ठीक रहेगी।

आयुषी गुप्ता, टीचर

प्रशासन को इस बार सख्ती के साथ अभियान चलाना चाहिए, ताकि अभियान का असर हो ओर लोग खुद अपने आप पॉलीथिन के बजाए कपड़े के थैलों का प्रयोग करें। इसके लिए जरुरी है कि प्रोडक्शन को बंद किया जाए।

कल्पना पांडे

जब हम कोई कैंपेन निरंतर चलाते हैं तो उसका असर होता है। हमें स्कूल कॉलेज स्तर पर अभियान चलाने चाहिए। बच्चों को पॉलीथिन प्रयोग के नुकसान ही जानकारी देनी चाहिए तभी भविष्य सुरक्षित होगा।

अजय शर्मा